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Saturday 30 June 2018

*गुनाहों से पाक होने का ज़रिया*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
     एक मर्तबा हज़रत इसा عليه السلام समन्दर के किनारे से गुज़रे तो उन्होंने एक निहायत ही खूबसूरत परिन्दा देखा जो देखते ही देखते कीचड़ में दाखिल हो गया फिर कीचड़ से लतपत हो कर उसने समन्दर में गुस्ल किया तो वो पहले की तरह खूबसूरत नज़र आने लगा। इस तरह उसने ये अमल पांच मर्तबा किया। आप ये देखकर हैरत में थे कि या अल्लाह ! ये क्या मामला है ? उसी वक़्त हज़रत जिब्राइल عليه السلام तशरीफ़ लाए और अर्ज़ किया : ये उम्मते मुहम्मदिया की पांच नमाज़े की मिसाल है। कीचड़ गुनाह है और समन्दर में गुस्ल करना नमाज़ के मानिन्द है यानी जब वो नमाज़ पढ़ेंगे तो उनके गुनाह धूल जाएंगे।
*✍🏼नुज़हतुल मजालिस*
*✍🏼नमाज़ की अहमियत* 23
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*क़ुरआन का तर्जमा व तफ़्सीर*


*कन्ज़ुल ईमान*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
*सूरए फातेहा* #02

*शानें नज़ूल यानी किन हालात में उतरी*
    ये सूरत मक्कए मुकर्रमा या मदीनए मुनव्वरा या दोनों जगह उतरी. अम्र बिन शर्जील का कहना है कि नबीये करीम (सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम – उन पर अल्लाह तआला के दुरुद और सलाम हों) ने हज़रत ख़दीजा(रदियल्लाहो तआला अन्हा – उनसे अल्लाह राज़ी) से फ़रमाया – मैं एक पुकार सुना करता हूँ जिसमें इक़रा यानी ‘पढ़ों’ कहा जाता है. वरक़ा बिन नोफि़ल को खबर दी गई, उन्होंने अर्ज़ किया – जब यह पुकार आए, आप इत्मीनान से सुनें. इसके बाद हज़रत जिब्रील ने खि़दमत में हाजि़र होकर अर्ज़ किया-फरमाइये: बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम. अल्हम्दु लिल्लाहे रब्बिल आलमीन- यानी अल्लाह के नाम से शुरु जो बहुत मेहरबान, रहमत वाला, सब खूबियाँ अल्लाह को जो मालिक सारे जहान वालों का. इससे मालूम होता है कि उतरने के हिसाब से ये पहली सूरत है मगर दूसरी रिवायत से मालूम होता है कि पहले सूरए इक़रा उतरी. इस सूरत में सिखाने के तौर पर बन्दों की ज़बान में कलाम किया गया है.
    नमाज़ में इस सूरत का पढ़ना वाजिब यानी ज़रुरी है. इमाम और अकेले नमाज़ी के लिये तो हक़ीक़त में अपनी ज़बान से, और मुक्तदी के लिये इमाम की ज़बान से. सही हदीस में है इमाम का पढ़ना ही उसके पीछे नमाज़ पढ़ने वाले का पढ़ना है. कुरआन शरीफ़ में इमाम के पीछे पढ़ने वाले को ख़ामोश रहने और इमाम जो पढ़े उसे सुनेने का हुक्म दिया गया है.
    अल्लाह तआला फ़रमाता है कि जब क़ुरआन पढ़ा जाए तो उसे सुनो और खा़मोश रहो. मुस्लिम शरीफ़ की हदीस है कि जब इमाम क़ुरआन पढ़े, तुम ख़ामोश रहो. और बहुत सी हदीसों में भी इसी तरह की बात कही गई है. जनाजे़ की नमाज़ में दुआ याद न हो तो दुआ की नियत से सूरए फ़ातिहा पढ़ने की इजाज़त है. क़ुरआन पढ़ने की नियत से यह सूरत नहीं पढ़ी जा सकती.
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*हुकूमते अमीरे मुआविया* #01


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
     हुज़ूर ﷺ ने अमीरे मुआविया رضي الله عنه को दुआ से नवाज़ते हुवे फ़रमाया: ऐ अल्लाह इन्हें (अमीरे मुआविया) किताब व हिसाब का इल्म अता फरमा ओर इन्हें शहरों की हुक्मरानी अता फरमा।
     एक मैके पर तो हुज़ूर ﷺ को हुकूमत से अमीरे मुआविया رضي الله عنه को हुकूमत से मुतअल्लिक़ यूँ नसीहत फ़रमाई: अगर तुम्हें कोई ज़िम्मेदारी सौंपी जाए तो अल्लाह से डरना ओर अदल करना। आप رضي الله عنه फरमाते है: आक़ा के इस फरमान के सबब मुझे हाकिम बनने की आज़माइश में मुब्तला होने का यक़ीन हो गया था और आखिरकार में इस आज़माइश में मुब्तला हो गया।
     गैबो के जानने वाले आक़ा की ज़बाने मुबारक से निकला हुवा जुम्ला पथ्थर पर लकीर की मानिन्द है लिहाज़ा इस दुआए मुस्तफा ओर नसीहत का असर कुछ यूं ज़ाहिर हुवा की अल्लाह ने आप رضي الله عنه को हुकूमत अता फ़रमाई, फुतुहात की नेमत आप के हाथ आई और इस्लाम की तरक़्क़ी ओर तरविजो इशाअत का अज़ीम काम भी आप رضي الله عنه के दौरे हुकूमत में हुवा।
*✍फ़ैज़ाने अमीरे मुआविया* 96
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*वुज़ु और साइन्स* #05/15


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
*_मिस्वाक के मदनी फूल_* #01
    दो फरमाने मुस्तफा صلى الله عليه وسلم
★ 2 रकअत मिस्वाक करके पढ़ना बगैर मिस्वाक की 70 रकअतो से अफ़्ज़ल है।
★ मिस्वाक का इस्तिमाल अपने लिये लाज़िम करलो क्यू की ये मुह की सफाई और रब तआला की रिजा का सबब है

     हज़रते इब्ने अब्बास رضي الله عنه से रिवायत है की मिस्वाक में 10 खुबिया है :
★ मुह साफ़ करती, मसूढ़े को मज़बूत बनाती है, बिनाई बढ़ाती, बलगम दूर करती है, मुह की बदबू खत्म करती, सुन्नत के मुवाफ़िक है, फ़रिश्ते खुश होते है, रब राज़ी होता है, नेकी बढ़ाती और मेदा दुरुस्त करती है।
*✍🏽जमउल जवामीअ-लिस्सुयुति, जी-5, स. 239*

     सय्यिदुना इमाम शाफ़ेई رضي الله عنه फरमाते है : 4 चीज़े अक्ल बढ़ाती है :
★ फ़ुज़ूल बातो से परहेज़
★ मिस्वाक का इस्तिमाल
★ सुलहा यानी नेक लोगोकी सोहबत
★ अपने इल्म पर अ'मल
*✍🏽नमाज़ के अहकाम, सफा 64,65*
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Friday 29 June 2018

*तज़किरतुल अम्बिया* #175


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
*यूसीफ عليه السلام के बरी होने पर गवाही*
     आपने कहा इसने मुझे अपनी तरफ मिलान करना चाहा। औरत के घर वालो में से एक गवाह ने गवाही दी कि अगर इनकी क़मीज़ आगे से फ़टी है तो औरत सच्ची और अगर क़मीज़ पीछे से फ़टी है तो औरत झूटी ओर ये सच्चे। जब अज़ीज़े मिस्र ने आपकी क़मीज़ पीछे से फ़टी हुई देखी तो उसने कहा बेशक यह तुम औरत का मकर है बेशक तुम्हारा मकर बड़ा है, ऐ यूसुफ तुम इसका गम न करो और ऐ औरत अपने गुनाहों की माफी मांग बेशक तू खतावारों में से है।
     गवाही देने वाला उस औरत का रिश्तेदार का लड़का था जो अभी शिर ख्वार था उसकी उम्र 3 माह थी, अल्लाह ने उसे बोलने की ताक़त दी उससे गवाही दिलाकर युसूफ عليه السلام की पाकदामनी को साबित करने के लिये काफी था लेकिन अल्लाह ने उससे ऐसा हकीमाना जवाब दिलाया जो बहुत बड़ी क़वी दलील भी बन गया।
*✍तज़किरतुल अम्बिया* 136
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*नमाज़ की बरकतें वाक़ीयात की रौशनी में* #02


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
     नमाज़ की बरकतों के सिलसिले में हज़रत अब्दुर्रहमान सफुरी عليه رحما नुज़हतुल मजालिस में तहरीर फ़रमाते है : नबीए करीम ﷺ ने फ़रमाया : तवील क़याम (यानी नमाज़ में देर तक खड़ा रहना) क़यामत में अमान का ज़ामिन (जमानतदार) है।
*✍🏼नुज़हतुल मजालिस*

     हज़रत ईशा عليه السلام ने फ़रमाया : तवील क़याम पुलसिरात पर अमान का बाइस है और तवील सज्दा अज़ाबे क़ब्र से बचने का ज़रिया है। बाज़ बुज़ुर्गो ने फ़रमाया : सकरात मौत में आसानी का सबब है। आप ने मज़ीद फ़रमाया : तवील सज्दा अल्लाह की महबूबियत का वसीला है।
     हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास رضي الله عنه ने फ़रमाया : लम्बा सज्दा जन्नत में हमेशगी का सबब है।
*✍🏼नुज़हतुल मजालिस*
*✍🏼नमाज़ की अहमियत* 22
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*क़ुरआन का तर्जमा व तफ़्सीर*


*कन्ज़ुल ईमान*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
*सूरए फातिहा के नाम* :
इस सूरत के कई नाम हैं – फातिहा, फातिहतुल किताब, उम्मुल कुरआन, सूरतुल कन्ज़, काफिया, वाफ़िया, शाफ़िया, शिफ़ा, सबए मसानी, नूर, रुकैया, सूरतुल हम्द, सूरतुल दुआ तअलीमुल मसअला, सूरतुल मनाजात सूरतुल तफ़वीद, सूरतुल सवाल, उम्मुल किताब, फातिहतुल क़ुरआन, सूरतुस सलात.
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*अमीरे मुआविया इमामे हुसैन व हसन का इस्तिक़बाल फरमाते*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
     हज़रते मुहम्मद बिन अबू याक़ूब رحمة الله عليه फरमाते है: अमीरे मुआविया رضي الله عنه जब भी इमामे हुसैन व हुसैन رضي الله عنه से मुलाक़ात फरमाते तो खुश आमदीद ऐ इब्ने रसूलल्लाह कहते हुवे उन का इस्तिक़बाल फरमाते ओर हज़रते इमामे हुसैन رضي الله عنه की बारगाह में 3 लाख दिरहम पेश करने का हुक्म फरमाते।

     मीठे ओर प्यारे इस्लामी भाइयो! मालूम हुआ कि अमीरे मुआविया رضي الله عنه नवासए रसूल इमामे हुसैन से न सिर्फ महब्बत फरमाते थे बल्कि इन के फ़ज़ाइलो मनाक़ीब भी लोगों में बयान फरमाते थे। अक्सर आप की बारगाह में तहाइफ पेश फरमाते नीज़ इमामे हसन व हुसैन का आप की तरफ से पहुंचने वाले तहाइफ का क़बूल फ़रमा लेना भी इस बात की दलील है कि आप के दरमियान अदबो महब्बत का रिश्ता क़ाइम था।
*✍फ़ैज़ाने अमीरे मुआविया* 94
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*ख़ुत्बा सुनने व बैठने के एहकाम*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
     जो काम नमाज़ की हालत में करना हराम और मना है, ख़ुत्बा होने की हालत में भी हराम और मना है।
*(हुल्या, जामऊर्-रमुज़, आलमगीरी, फतावा रज़विय्या)*
     ख़ुत्बा सुनना फ़र्ज़ है और ख़ुत्बा इस तरह सुनना फ़र्ज़ है कि हमा-तन (समग्र एकाग्रता) उसी तरफ तवज्जोह दे और किसी काम में मश्गुल न हो। सरापा तमाम आज़ा ए बदन उसी की तरफ मुतवज्जेह होना वाजिब है। अगर किसी ख़ुत्बा सुनने वाले तक खतीब की आवाज़ न पहुचती हो, जब भी उसे चुप रहना और ख़ुत्बा की तरफ तवज्जोह रखना वाजिब है। उसे भी किसी काम में मश्गुल होना हराम है।
*(फत्हुल क़दीर, रद्दुल मोहतार, फतावा रज़विय्या)*
     ख़ुत्बा के वक़्त ख़ुत्बा सुननेवाला "दो जानू" यानी नमाज़ के क़ायदे में जिस तरह बैठते है उस तरह बैठे।
*(आलमगीरी, रद्दुल मोहतार, गुन्या, बहारे शरीअत)*
     ख़ुत्बा हो रहा हो तब सुनने वाले को एक घूंट पानी पीना हराम है और किसी की तरफ गर्दन फेर कर देखना भी हराम है।
     ख़ुत्बा के वक़्त सलाम का जवाब देना भी हराम है।
     जुमुआ के दिन ख़ुत्बा के वक़्त खतीब के सामने जो अज़ान होती है, उस अज़ान का जवाब या दुआ सिर्फ दिल में करें। ज़बान से अस्लन तलफ़्फ़ुज़ (उच्चार) न हो।
     जुमुआ की अज़ाने सानी (ख़ुत्बे से पहले की अज़ान) में हुज़ूर صلى الله عليه وسلم का नाम सुनकर अंगूठा न चूमें और सिर्फ दिल में दुरुद शरीफ पढ़े।
*✍🏼फतावा रज़विय्या*
     ख़ुत्बा में हुज़ूर صلى الله عليه وسلم का नाम सुन कर दिल में दुरुद शरीफ पढ़े, ज़बान से खामोश रहना फ़र्ज़ है।
*(दुर्रे मुख्तार, फतावा रज़विय्या)*
     जब इमाम ख़ुत्बा पढ़ रहा हो, उस वक़्त वज़ीफ़ा पढ़ना मुतलक़न ना जाइज़ है और नफ्ल नमाज़ पढ़ना भी गुनाह है।
     ख़ुत्बा के वक़्त भलाई का हुक्म करना भी हराम है, बल्कि ख़ुत्बा हो रहा हो तब दो हर्फ़ बोलना भी मना है। किसी को सिर्फ "चुप" कहना तक मना और लग्व (व्यर्थ) है।
     सहाह सित्ता (हदिष की 6 सहीह किताबों) में हज़रते अबू हुरैरा رضي الله عنه से रिवायत है कि हुज़ूर صلى الله عليه وسلم फ़रमाते है कि बरोज़े जुमुआ ख़ुत्ब ऐ इमाम के वक़्त तूँ दूसरे से कहे "चुप" तो तूने लग्व (व्यर्थ काम) किया।
     इसी तरह मुसन्दे अहमद, सुनने अबू दाऊद में हज़रत अली كرم الله وجهه الكريم से है कि हुज़ूर ﷺ फ़रमाते है कि जो जुमुआ के दिन (ख़ुत्बा के वक़्त) अपने साथी से "चुप" कहे उसने लग्व किया और जिसने लग्व किया उसके लिये जुमुआ में कुछ "अज्र" (षवाब) नही।
     ख़ुत्बा सुनने की हालत में हरकत (हिलना-डुलना) मना है। और बिला ज़रूरत खड़े हो कर ख़ुत्बा सुनना खिलाफे सुन्नत है। अवाम में ये मामूल है कि जब खतीब ख़ुत्बा के आखिर में इन लफ़्ज़ों पर पहुचता है "व-ल-ज़ीक़रुल्लाहे तआला आला" तो उसको सुनते ही लोग नमाज़ के लिये खड़े हो जाते है। ये हराम है, कि अभी ख़ुत्बा नही हुआ, चंद अलफ़ाज़ बाक़ी है और ख़ुत्बा की हालत में कोई भी अमल करना हराम है।
*✍🏼फतावा रज़विय्या*
*✍🏼मोमिन की नमाज़* 220
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*वुज़ु और साइन्स* #04/15


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
*_मिस्वाक का क़दरदान_*
     मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! वुज़ु में मुतअद्दी सुन्नते है और हर सुन्नत मख़ज़ने हिक्मत है।
     मिस्वाक ही को ले लीजिये ! सब जानते है की वुज़ु में मिस्वाक करना सुन्नत है और इस सुन्नत की बरकतों का क्या कहना !
     एक व्यपारी का कहना है : स्विजरलैंड में एक नौ मुस्लिम से मेरी मुलाक़ात हुई उसको मेने तोहफतन मिस्वाक लेश की, उसने ख़ुश हो कर उसे लिया और चूम कर आखो से लगाया और एक दम उस की आँखों से आसु छलक पड़े। उसने जेब से एक रुमाल निकाला उस की तह खोली तो उस में से तकरीबन 2 इंच का छोटा सा मिस्वाक का टुकड़ा बरामद हुवा। वो कहने लगा : मेरी इस्लाम आवरी के वक़्त मुसलमानो ने मिझे ये तोहफा दिया था। में बहुत संभाल संभाल कर इसको इस्तिमाल कर रहा था, ये खत्म होने को था लिहाज़ा मुझे तश्विश थी के अल्लाह ने करम फ़रमाया और आप ने मुझे मिस्वाल इनायत फरमा दिया।
     फिर उसने बताया के एक अरसे से में दातो और मसूढ़ों की तकलीफ से परेशान था। हमारे यहाँ के डेंटिस्ट से इन का इलाज बन नहीं पड़ रहा था। मेने इस मिस्वाक का इस्तिमाल शुरू किया थोड़े ही दिनों में मुझे फायदा हो गया। में डॉ. के पास गया तो वो हैरान रह गया और पूछने लगा : मेरी दवाई से इतनी जल्दी तुम्हारा मरज़ दूर नहीं हो सकता, सोचो कोई और वजह होंगी। मेने जब ज़हन पर ज़ोर दिया तो ख्याल आया के में मुसलमान हो चूका हू और ये सारी बरकतें मिस्वाक ही की है। जब डॉ को मिस्वाक दिखाया तो वो देखता ही रह गया।
*✍🏽नमाज़ के अहकाम, साफ 61-62*
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Thursday 28 June 2018

*तज़किरतुल अम्बिया* #174


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
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*यूसुफ عليه السلام की पाकदामनी पर दलालत करने वाली अलामात*
     आप ज़ाहिर तौर पर उनके गुलाम थे गुलाम कभी इस किस्म की जुर्रत नहीं कर सकता कि अपने मालिक की ज़ौजा से ज़बरदस्ती बुराई का मुरकीब हो।
     अज़ीज़े मिस्र ओर उसके घर के दूसरे लोगों ने जबीह देख लिया था कि यूसुफ عليه السلام दरवाज़े से निकलने के लिये शदीद तौर पर दौड़ रहे थे तो उन्होंने बजी समझ लिया था कि बुराई को चाहने वाला खुद दौड़कर कभी नहीं निकला करता।
     उन लोगों ने यह भी देख लिया था कि इस औरत ने अपने आपको खुद आरास्ता किया हुआ है लेकिन यूसुफ عليه السلام आम लिबास में है उन्होंने समझ लिया था कि कौन किसे अपनी तरफ माइल कर रहा था।
     वह लोग युसूफ عليه السلام के हालात का एक तवील मुद्दत से मुशाहदा कर रहे थे आपकी आदत आपके अतवार उन से पोशीदा नहीं थे वह खुद ही समझ रहे थे कि युसूफ عليه السلام कभी बुराई का इरादा नहीं कर सकते।
     अज़ीज़े मिस्र नामर्द था औरत की जिंसी ख्वाहिशात उससे पूरी होना तो दरकिनार हासिल ही नहीं हो रही थी इन हालात के पेशे नज़र भी वाज़ेह हो रहा था कि मिलान औरतकी जानिब से था।
*✍तज़किरतुल अम्बिया* 136
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*नमाज़ की बरकतें वाक़ीयात की रौशनी में* #01


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
     हज़रत इमाम ग़ज़ाली عليه رحما मुकाशफतुल कुलूब में तहरीर फ़रमाते है : बाज़ उलमा का कहना है और हदिष में भी है कि जो नमाज़ की पाबन्दी करता है अल्लाह उसे 5 चीजों से सरफ़राज़ फ़रमाता है : 
     (1) उससे तंगदस्ती खत्म कर दी जाती है। 
     (2) उसे अज़ाबे क़ब्र नहीं होगा।
     (3) नामए आमाल उसके दाए हाथ में दिया जाएगा। 
     (4) पुलसिरात से वो बिजली की तरह गुज़रेगा। 
     (5) जन्नत में बिला हिसाब दाखिल होगा।
*✍🏼मकाशफतुल कुलूब* 392
*✍🏼नमाज़ की अहमियत* 22
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*फ़िक्र_का_पहलू*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
     जब कोई औरत इंतिक़ाल कर जाती है तो उसके आस पास हम उसके रिश्तेदारों को देखते हैं की वो कहते हैं इसको ढक दो, चेहरा छिपा दो, कोई गेर मेहरम इसको देखे नहीं.
     तो क्या हमारी ज़िंदा औरतें, मुर्दा औरतों से ज़्यादा हकदार नहीं है कि उनको भी ढक कर और छिपा कर पर्दे मे रखा जाए ???

*इमामे हुसैन का हल्काए दर्स*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
     हज़रते अमीरे मुआविया رضي الله عنه ने हज़रते इमाम हुसैन رضي الله عنه की इल्मी मजलिस की तारीफ करते हुए एक कुरैशी से फ़रमाया: मस्जिदे नबवी में चले जाओ, वहां हलके में लोग हमा तन गोश हो कर यूँ बा अदब बैठे होंगे गोया उन के सरों पर परिंदे बैठे हैं, जान लेना यही हज़रते अबू अब्दुल्लाह इमाम हुसैन رضي الله عنه की मजलिस है। नीज़ उस हलके में मज़ाक़ मसखरी नाम की कोई शै न होगी।

*सिलए रहमी ओर नरमी से पेश आने की वसिय्यत*
     हज़रते अल्लामा अबुल क़ासिम अली बिन हसन शाफेई नक़ल फरमाते है: हज़रते अमीरे मुआविया رضي الله عنه ने मरज़े विसाल में यज़ीद को बुला कर कुछ वसिय्यतें की थी उन में एक ये भी थी कि नवासए रसूल इमामे हुसैन رضي الله عنه पर एहसान व मुरव्वत की नज़र रखना क्योंकि वो लोगों में बहुत मक़बूल है। उन के साथ सिलए रेहमी करना और उन से नरमी करना ही तुम्हारे लिये बेहतर होगा।
*✍फ़ैज़ाने अमीरे मुआविया* 92
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*वुज़ु और साइन्स* #03/15


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
_*वुज़ु और फालिज*_
     वुज़ु में जो तरतीब वार आज़ा धोए जाते है ये भी हिक्मत से खाली नहीं।

     ★ पहले हाथ पानी में डालने से जिस्म का आसाबि निज़ाम मुत्तलअ हो जाता है, और फिर आहिस्ता आहिस्ता चेहरे और दिमाग की रगो की तरफ इस के असरात पहोचते है।

     ★ वुज़ु में पहले हाथ धोने फिर कुल्ली करने फिर नाक में पानी डालने फिर चेहरा और दीगर आज़ा धोने की तरतीब फालिज की रोकथाम के लिये मुफीद है।

     ★ अगर चेहरा धोने और मसह करने से आगाज़ किया जाए तो बदन कई बीमारियो में मुब्तला हो सकता है !
*✍🏽नमाज़ के अहकाम, सफा 60-61*

फालिज यानि लकवा
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
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*तज़किरतुल अम्बिया* #173


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اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
*यूसफ़ عليه السلام पर औरत का इल्ज़ाम*
     जब औरत ने आपको अंदर बंद कर लिया तो आप ने आपने आपको गुनाहों से बचाने के लिये दरवाज़े की तरफ भागना शुरू कर दिया ताकि दरवाज़ा खोल कर बाहर निकल जाये, औरत ने पीछे भागने शुरू किया ताकि आपको पकड़ ले, आपको पकड़ने में तो कामयाब न हुई अलबत्ता आपकी क़मीज़ पीछे से उसने पकड़ ली चुकी आप दौड़ रहे थे तो आप की क़मीज़ पीछे से फट गई।
     उसी दौरान औरत का खाविंद दरवाज़े पर पहुच गया वह तोहमत के डर से जल्दी से अपने ऐब को यूसुफ عليه السلام की तरफ मंसूब करने लगी कि यह तुम्हारी ज़ौजा से बुराई का इरादा रखता था इसलिये क़ैदख़ाने में भेज दो या सख्त सज़ा दो।
     औरत को यूसुफ عليه السلام से चुकी शदीद मुहब्बत थी अगरचे उसने खुद बचने के लिये ऐब आप की तरफ मंसूब कर दिया लेकिन फिर भी आपकी रियायत रखी क़ैदख़ाने पहले ज़िक्र किया सख्त सज़ा बाद में, इसलिये कि मोहिब अपने महबूब को दर्द पहुंचाने की कोशिश नहीं करता।
     फिर ऐसे कोई अल्फ़ाज़ नहीं ज़िक्र किये जिनसे पता चले कि उसने कहा हो कि इनको उम्र भर क़ैद रखो या बहुत लंबा अरसा क़ैद में रखो, बल्कि सिर्फ यह कहा कि क़ैदख़ाने में भेज दो। यानी मतलब यह था कि एक दो दिनों के बाद निकाल लेना।
*✍तज़किरतुल अम्बिया* 135
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