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Wednesday 31 August 2016

शाने खातुने जन्नत

#03
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_फातिमा की वजहे तसमिया_*
     खतूने जन्नत के बाबाजान, रहमते अल्मिय्यान्न , महबूबे रहमान ﷺ का फरमाने आलिशान है : इस ( यानी मेरी बेटी) का नाम फातिमा इस लिए रखा गया क्योंकि अल्लाह तआला ने इस को और इस के मुहिब्बीन को दोज़ख़ से आज़ाद किया है।
*✍🏽कन्ज़ुल उम्माल, 12/50*

     हज़रते सय्यिदुना अब्दुल्लाह बिन मसऊदرضي الله تعالي عنه फार्मते है की हुज़ूर ﷺ ने फरमाया: बेशक फातिमा ने पाक दामनी  इख्तियार कि और अल्लाह तआला ने इस की अवलाद को दोज़ख़ पर हराम फरमा दिया है।
*✍🏽अलमुस्तदरक लिल्हाकिम, 4/135*

     हज़रते सय्यिदुना अनस बिन मालिकرضي الله تعالي عنه फरमाते है में अपनी वालिदा से फातिमातुज़्ज़हराرضي الله تعالي عنها के मुतअल्लिक़ पूछा तो फ़रमाया: सय्यिदि चौदहवीं रात के चाँद की तरह हसिनो जमील थी।
*✍🏽अलमुस्तदरक लिल्हाकिम, 4/149*
*✍🏽शाने खातुने जन्नत, 19*
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क़ब्र में आनेवाला दोस्त

*क़ब्र को जहन्नम का गढ़ा बनाने वाले आमाल* #05
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_ज़कात न देने का वबाल_* #01
     हज़रते मुहम्मद बिन युसूफ फरयाबि अलैरहमा कहते है : हम हज़रते अबी सनान के साथ उनके हमसाए की ताज़िय्यत के लिए गए तो देखा के उसका भाई बहुत आहो बुका कर रहा था, हमने उसे काफी तसल्लिया दी, सब्र की तलकीन की मगर उसकी गिर्या व ज़ारी बराबर जारी रही।
     हमने कहा : क्या तुम्हे मालुम नही के हर शख्स को आखिर मर जाना है ? वो कहने लगा : ये सहीह है मगर में अपने भाई के अज़ाब और रोटा हु। हमने पूछा : क्या अल्लाह ने तुम्हे ग़ैब से तुम्हारे भाई के अज़ाब की खबर दी है ? कहने लगा। : नही, बल्कि हुवा यु के जब सब लोग मेरे भाई को दफ़्न करके चल दिये तो में वही बेठा रहा, में ने उसकी क़ब्र से आवाज़ सुनी वो कह रहा था "आह ! वो मुझे तन्हा छोड़ गए और में अज़ाब में मुब्तला हु, मेरी नमाज़े और रोज़े कहा गए ?" मुझसे बर्दास्त न हो स्का मेने उसकी क़ब्र खोदना शुरू कर दी ताके देखु के मेरा भाई किस हाल में है ? जूही क़ब्र खुली, मेने देखा उसकी क़ब्र में आग दहक रही है और उसकी गर्दन में आग का तौक पड़ा हुवा है, में महब्बत में दीवाना वार आगे बढ़ा और उस तौक को उतारना चाहा मगर नाकाम रहा और मेरा ये हाथ उंगलियो समेत जल गया है।
     रावी का कहना है के हमने देखा वाकइ उसका हाथ बिलकुल सियाह हो चूका था। उस ने उसले कलाम ज़ारी रखते हुए कहा : में ने उसकी क़ब्र पर मिट्टी डाली और वापस लौट आया, अब अगर में न रोउ तो और कौन रोएगा ? हमने पूछा : तेरे भाई का कोई ऐसा काम भी था जिसके बाईस उसे ये सज़ा मिली ? कहा : शायद इस लिए के वो अपने माल की ज़कात न देता था।
*✍🏽मकशफतुल कुलूब, 73*

     ज़कात इस्लाम के 5 अरकान में से एक है, ज़कात की अदाएगी में माल की हिफाज़त, नजाते आख़िरत और रिज़्क़ में बरकत जेसे फवाइद भी पोशीदा है, मगर कुछ लोग ऐसे भि होते है जो हर वक़्त माल, माल और माल की रट लगाने वाले फ़र्ज़ होने के बावुजूद ज़कात अदा नही करते, ऐसो को खूब समज लेना चाहिए के कल बरोज़े क़यामत येही माल उनके लिए वबाले जान बन जाएगा।

बाक़ी अगली पोस्ट में.. انشاء الله
*✍🏽क़ब्र में आनेवाला दोस्त, 44*
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तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान

 #23
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①⑦_*
उनकी कहावत उसकी तरह है जिसने आग रौशन की तो जब उससे आसपास सब जगमगा उठा, अल्लाह उनका नूर ले गया और उन्हें अंधेरियों में छोड़ दिया कि कुछ नहीं सूझता.

*तफ़सीर*
     यह उनकी मिसाल है जिन्हें अल्लाह तआला ने कुछ हिदायत दी या उसपर क़ुदरत बख्शी, फिर उन्होंने उसको ज़ाया कर दिया और हमेशा बाक़ी रहने वाली दौलत को हासिल न किया. उनका अंजाम हसरत, अफसोस, हैरत और ख़ौफ़ है.
     इसमें वो मुनाफ़िक़ भी दाखि़ल हैं जिन्होंने ईमान की नुमाइश की और दिल में कुफ़्र रखकर इक़रार की रौशनी को ज़ाया कर दिया, और वो भी जो ईमान  लाने के बाद दीन से निकल गए, और वो भी जिन्हें समझ दी गई और दलीलों की रौशनी ने सच्चाई को साफ़ कर दिया मगर उन्होंने उससे फ़ायदा न उठाया और गुमराही अपनाई और जब हक़ सुनने, मानने, कहने और सच्चाई की राह देखने से मेहरूम हुए तो कान, ज़बान, आंख, सब बेकार हैं.
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फुतूह अल ग़ैब

*अवामिर की ताअमिल(एहकाम) और नवाहीसे इजतिनाब (परहेज):*
(हिस्सा 15)
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

         अवमिरमें उजलत और नवाहीमें काहिली और आजिज़ी बेहतर है और अपने आपको मुर्दा तसव्वुर करना अच्छा है। क़ज़ा-व-कद्र के आगे अपनी हस्ति  को नस्ती समजो। यही शरबत पीने के काबिल है और यही दुआ ईलाज के लायक है। यही ग़िज़ा है जिससे तवानाइ और कुव्वत मिल सकती है। इसी सूरत मेँ ख्वाहिशाते नफसानी और ईमराज़े मअसीयते तंदुरस्ती मुमकीन है।

*✍🏽फुतूहल ग़ैब*  पेज 33
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खादिमे दिइने नबी ﷺ
 *फ़ैयाज़ सैय्यिद*
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Friday 26 August 2016

तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान

 #18
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①ⓞ_*
उनके दिलों में बीमारी है, तो अल्लाह ने उनकी बीमारी और बढ़ाई और उनके लिये दर्दनाक अज़ाब है बदला उनके झूठ का

*तर्जुमह*
     अल्लाह तआला इससे पाक है कि उसको कोई धोख़ा दे सके. वह छुपे रहस्यों का जानने वाला है.
     मतलब यह कि मुनाफ़िक़ अपने गुमान में ख़ुदा को धोख़ा देना चाहते हैं या यह कि ख़ुदा को धोख़ा देना यही है कि रसूल अलैहिस्सलाम को धोख़ा देना चाहें क्योंकि वह उसके ख़लीफ़ा हैं, और अल्लाह तआला ने अपने हबीब को रहस्यों (छुपी बातों) का इल्म दिया है, वह उन दोग़लों यानि मुनाफ़िक़ों के छुपे कुफ़्र के जानकार हैं और मुसलमान उनके बताए से बाख़बर, तो उन अधर्मियों का धोख़ा न ख़ुदा पर चले न रसूल पर, न ईमान वालों पर, बल्कि हक़ीक़त में वो अपनी जानों को धोख़ा दे रह हैं.
     इस आयत से मालूम हुआ कि तक़ैय्या (दिलों में कुछ और ज़ाहिर कुछ और) बड़ा एब है. जिस धर्म की बुनियाद तक़ैय्या पर हो, वो झूठा है. तक़ैय्या वाले का हाल भरोसे के क़ाबिल नहीं होता, तौबह इत्मीनान के क़ाबिल नहीं होती, इसलिये पढ़े लिखों ने फ़रमाया है “ला तुक़बलो तौबतुज़ ज़िन्दीक़ यानी अधर्मी की तौबह क़बुल किये जाने के क़ाबिल नहीं.
     बुरे अक़ीदे को दिल की बीमारी बताया गया है. मालूम हुआ कि बुरा अक़ीदा रूहानी ज़िन्दग़ी के लिये हानिकारक है. इस आयत से साबित हुआ कि झूठ हराम है, उसपर भारी अजाब दिया जाता है.
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Thursday 25 August 2016

फ़ारुके आज़म का इश्के रसूल

*फ़ारुके आज़म* #01
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     रसूले अकरमﷺ के तमाम सहाबए किराम अपनी अपनी जगह बे मिसालों बे मिसाल है, सब ही आसमाने हिदायत के तारे और अल्लाह और उसके हबीबﷺ के प्यारे है, लेकिन इन में से बाज़ को बाज़ पर फ़ज़ीलत हासिल है और सब सहाबा में अफ्ज़ल खुल्फाए राशिदीन है।
     इन्ही खुल्फा में से दूसरे खकिफए राशिद, अमीरुल मुअमिनिन हज़रते उमरे फ़ारुके आज़मرضي الله تعالي عنه है। आप का यौमे विसाल यकुम मुहर्रमूल हराम है।
     इसी मुनासबत से आप की ज़िन्दगी के एक रोशन पहलू *इश्के रसूल* के बारे में कुछ सआदत हासिल करेंगे अगली पोस्ट में..انشاء الله

*✍🏽फ़ारुके आज़म का इश्के रसूल, 3*
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तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान

#17
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ⑧_*
और कुछ लोग कहते हैं, कि हम अल्लाह और पिछले दीन पर ईमान लाए और वो ईमान वाले नहीं

*तफ़सीर*
     इससे मालूम हुआ कि हिदायत की राहें उनके लिए पहले ही बन्द न थीं कि बहाने की गुंजायश होती. बल्कि उनके कुफ़्र, दुश्मनी और सरकशी व बेदीनी, सत्य के विरोध और नबियों से दुश्मनी का यह अंजाम है जैसे कोई आदमी डाक्टर का विरोध करें और उसके लिये दवा से फ़ायदे की सूरत न रहे तो वह ख़ुद ही अपनी दुर्दशा का ज़िम्मेदार ठहरेगा.

*_सूरतुल बक़रह, आयत ⑨_*
धोखा देना चाहते हैं अल्लाह और ईमान वालों को, और हक़ीक़त में धोखा नहीं देते मगर अपनी जानों को और उन्हें शउर (समज, आभास) नहीं।

*तफ़सीर*
     यहां से तैरह आयतें मुनाफ़िक़ों (दोग़ली प्रवृत्ति वालों) के लिये उतरीं जो अन्दर से काफिर थे और अपने आप को मुसलमान ज़ाहिर करते थे.
     अल्लाह तआला ने फ़रमाया “माहुम बिमूमिनीन” वो ईमान वाले नहीं यानी कलिमा पढ़ना, इस्लाम का दावा करना, नमाज़ रोज़े अदा करना मूमिन होने के लिये काफ़ी नहीं, जब तक दिलों में तस्दीक़ न हो.
     इससे मालूम हुआ कि जितने फ़िरक़े (समुदाय) ईमान का दावा करते हैं और कुफ़्र का अक़ीदा रखते हैं सब का यही हुक्म है कि काफ़िर इस्लाम से बाहर हैं. शरीअत में एसों को मुनाफ़िक़ कहते हैं. उनका नुक़सान खुले काफ़िरों से ज्य़ादा है.
     मिनन नास (कुछ लोग) फ़रमाने में यह इशारा है कि यह गिरोह बेहतर गुणों और इन्सानी कमाल से एसा ख़ाली है कि इसका ज़िक्र किसी वस्फ़ (प्रशंसा) और ख़ूबी के साथ नहीं किया जाता, यूं कहा जाता है कि वो भी आदमी हैं.
     इस से मालूम हुआ कि किसी को बशर कहने में उसके फ़जा़इल और कमालात (विशेष गुणों) के इन्कार का पहलू निकलता है. इसलिये कुरआन में जगह जगह नबियों को बशर कहने वालों को काफ़िर कहा गया और वास्तव में नबियों की शान में एसा शब्द अदब से दूर और काफ़िरों का तरीक़ा है.
     कुछ तफसीर करने वालों ने फरमाया कि मिनन नास (कुछ लोगों) में सुनने वालों को आश्चर्य दिलाने के लिये फ़रमाया धोख़ेबाज़, मक्कार और एसे महामूर्ख भी आदमियों में हैं.
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मदनी पंजसुरह

*दिन व दुन्या की भलाइयों वाली दुआ* #04
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_खाना खाने से पहले की दुआ_*
     खाना शुरू करने क़ब्ल ये दुआ पढ़ ली जाए, अगर खाने पिने में ज़हर भी होगा तो انشاء الله असर नही करेगा।
*بِسْمِ اللّٰهِ وَبِاللّٰهِ الَّذِىْ لَا يَضُرُّ مَعَ اسْمِهٖ شَىْءٌ فِى الْاَرْضِ وَلَا فِى اسَّمَآءِ يَا حَىُّ  يَا قَيُّوْمُ*
अल्लाह के नाम से शुरू करता हु जिस के नाम की बरकत से ज़मीन व आसमान की कोई चीज़ नुक़सान नही पंहुचा सकती, ऐ हमेशा ज़िन्दा व क़ाइम रहने वाले।

*_खाने के बाद की दुआ_*
*الْحَمْدُ لِلّٰهِ الَّذِىْٓ اَطْعَمَنَا وَسَقَانَا وَجَعَلَنَا مَسْلِمِيْنَ*
अल्लाह का शुक्र है जिसने हमे खिलाया, पिलाया और हमे मुसलमान बनाया।
*✍🏽सुनन अबी दाऊद, 3/513*
*✍🏽मदनी पंजसुरह, 205*

*नॉट :* जिन हजरात तो अरबी नही आती वो तर्जुमा याद करले और उसे पढ़े। और जो अरबी जानते है वो तर्जुमे को जहन में रखे ताकि पता चले की हम क्या पढ़ रहे है, ये दुआ में क्या है। अपनी मादरी ज़बान में दुआ पढ़ना बेहतर है।
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Wednesday 24 August 2016

क़ब्र में आनेवाला दोस्त

*क़ब्र को जहन्नम का गढ़ा बनाने वाले आमाल* #02
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_गीबत_*
     हज़रते अबी बक़रह फरमाते है के में नबी के साथ चल रहा था और आप ने मेरा हाथ थामा हुवा था। एक आदमी आप के बाई तरफ था। इसी दौरान हमने अपने सामने दो क़ब्रे पाई तो हुज़ूर ने फ़रमाया : इन दोनों को अज़ाब हो रहा है और किसी बड़े अम्र की वजह से नही हो रहा, तुम में से कौन है जो मुझे एक टहनी ला दे। हमने एक दूसरे से आगे बढ़ने की कोशिश की तो में सबक़त ले गया और एक टहनी ले कर हाज़िरे खिदमत हो गया। आप ने उसके दो टुकड़े कर दिये और दोनों क़ब्रो पर एक एक टुकड़ा रख दिया फिर फ़रमाया : ये जब तक तर रहेंगे इन पर अज़ाब में कमी रहेगी और इन दोनों को गीबत और पेशाब की वजह से अज़ाब हो रहा है।

*_गीबत किसे कहते है_*
     हज़रते मुफ़्ती मुहम्मद अमजद अली आज़मी अलैरहमा ने गीबत की तारीफ़ इस तरह बयान की है : किसी शख्स के पोशीदा ऐब को उसकी बुराई करने के तौर पर ज़िक्र करना।
*✍🏽बहारे शरीअत, 16/175*
*✍🏽क़ब्र में आनेवाला दोस्त, 37*
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तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान

#16
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बीक़रह, आयत ⑦_*
अल्लाह ने उनके दिलों पर और कानों पर मुहर कर दी और आखों पर घटा टोप है, और उनके लिये बड़ा अज़ाब

*तफ़सीर*
     इस सारे मज़मून का सार यह है कि काफ़िर गुमराही में एेसे डूबे हुए हैं कि सच्चाई के देखने, सुनने, समझने से इस तरह मेहरूम हो गए जैसे किसी के दिल और कानों पर मुहर लगी हो और आंखों पर पर्दा पड़ा हुआ हो.
     इस आयत से मालूम हुआ कि बन्दों के कर्म भी अल्लाह की क़ुदरत के तहत हैं.
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मदनी पंजसुरह

*दिन व दुन्या की भलाइयों वाली दुआ* #03
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_घर से निकलते वक़्त की दुआ_*
*بِسْمِ اللّٰهِ تَوَكَّلْتُ عَلَى اللّٰهِ لَا حَوْلَ وَلَا قُوَّةَ اِلَّا بِاللّٰهِ*
अल्लाह के नाम से, में ने अल्लाह पर भरोसा किया, गुनाह से बचने की क़ुव्वत और नेकी करने की ताक़त अल्लाह ही की तरफ से है।
*✍🏽सुनन अबी दाऊद, 4/420*

*_घर में दाखिल होते वक़्त की दुआ_*
اَللّٰهُمَّ اِنِّىْٓ اَسْئَلُكَ خَيْرَ الْمَوْلَجِ وَخَيْرَ الْمَخْرَجِ بِسْمِ اللّٰهِ وَلَجْنَا وَبِسْمِ اللّٰهِ خَرَجْنَا وَعَلَى اللّٰهِ رَبِّنَا تَوَكَّلْنَا*
ऐ अल्लाह ! में तुझसे दाखिल होने और निकलने की जगहों की भलाई तलब करता हु, अल्लाह के नाम से हम अन्दर दाखिल हुए और अल्लाह के नाम से बाहर निकले और हम ने अपने रब अल्लह पर भरोसा किया।
*✍🏽सुनन अबी दाऊद, 4/421*
*✍🏽मदनी पंजसुरह, 204*

*नॉट :* जिन हजरात तो अरबी नही आती वो तर्जुमा याद करले और उसे पढ़े। और जो अरबी जानते है वो तर्जुमे को जहन में रखे ताकि पता चले की हम क्या पढ़ रहे है, ये दुआ में क्या है। अपनी मादरी ज़बान में दुआ पढ़ना बेहतर है।
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Tuesday 23 August 2016

तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान

*#15
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ⑤_*
वही लोग अपने रब की तरफ़ से हिदायत पर हैं और वही मुराद को पहुंचने वाले।
 *_सूरतुल बक़रह, आयत ⑥_*
 बेशक वो जिन की क़िसमत में कुफ्र है उन्हें बराबर है चाहे तुम उन्हें डराओ या न डराओ वो ईमान लाने के नहीं।

*तफ़सीर*
अल्लाह वालों के बाद, अल्लाह के दुश्मनों का बयान फ़रमाना हिदायत के लिये है कि इस मुक़ाबले से हर एक को अपने किरदार की हक़ीक़त और उसके नतीजों या परिणाम पर नज़र हो जाए.
     यह आयत अबू जहल, अबू लहब वग़ैरह काफ़िरों के बारे में उतरी जो अल्लाह के इल्म के तहत ईमान से मेहरूम हैं, इसी लिये उनके बारे में अल्लाह तआला की मुख़ालिफ़त या दुश्मनी से डराना या न डराना दोनों बराबर हैं, उन्हें फ़ायदा न होगा.
     मगर हुज़ूर की कोशिश बेकार नहीं क्योंकि रसूल का काम सिर्फ़ सच्चाई का रास्ता दिखाना और अच्छाई की तरफ़ बुलाना है. कितने लोग सच्चाई को अपनाते है और कितने नहीं, यह रसूल की जवाबदारी नहीं है, अगर क़ौम हिदायत क़ुबूल न करे तब भी हिदायत देने वाले को हिदायत का सवाब मिलेगा ही.
     इस आयत में हुज़ूर (अल्लाह के दुरूद व सलाम हो उनपर) की तसल्ली की बात है कि काफ़िरों के ईमान न लाने से आप दुखी न हों, आप की तबलीग़ या प्रचार की कोशिश पूरी है, इसका अच्छा बदला मिलेगा. मेहरूम तो ये बदनसीब है जिन्होंने आपकी बात न मानी.
     *कुफ़्र के मानी :* अल्लाह तआला की ज़ात या उसके एक होने या किसी के नबी होने या दीन की ज़रूरतों में से किसी एक का इन्कार करना या कोई एेसा काम जो शरीअत से मुंह फेरने का सुबूत हो, कुफ्र है.
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मदनी पंजसुरह

*दिन व दुन्या की भलाइयों वाली दुआ* #02
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_बैतूल खला में दाखिल होने से पहले की दुआ_*
*اَللّٰهُمَّ اِنِّىْ اَعُوْذُ بِكَ مِنَ الْخُبُثِ وَالْخَبَآئِثِ*
ऐ अल्लाह ! में नापाक जिन्न और जिन्नीयो से तेरी पनाह मांगता हु।
*सहीह बुखारी, 4/195*
चुकी पखाने में गंदे जिन्नात रहते है। इस लिये ये दुआ पढ़नी चाहिए।

*_बैतूल खला से बाहर आने के बाद की दुआ_*
اَلْحَمْدُ لِلّٰهِ الَّذِىْ اَذْهَبَ  عَنِّى الْاَذٰى وَعَافَانِىْ*
अल्लाह का शुक्र है जिसने मुझ से अज़िय्यत दूर की और मुझे आफिय्यत दी।
*✍🏽मदनी पंजसुरह, 204*

*नॉट :* जिन हजरात तो अरबी नही आती वो तर्जुमा याद करले और उसे पढ़े। और जो अरबी जानते है वो तर्जुमे को जहन में रखे ताकि पता चले की हम क्या पढ़ रहे है, ये दुआ में क्या है। अपनी मादरी ज़बान में दुआ पढ़ना बेहतर है।
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फुतूहल ग़ैब

*अवामिर की ताअमिल(एहकाम) और नवाहीसे इजतिनाब (परहेज):*
(हिस्सा 7)
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

      खुदा तआला खुद फरमाता है: "बेशक हम तुम्हें आजमाइशमें इसी खातिर डालते हैं के तुम जेहाद करने वाले और सब्र करनेवालोंकी पहेचान हो जाए और तुम्हारे आमाल-व-किरदारका इम्तेहान हो।" चुनान्चे तुम्हारा मोहकम ईमान और पुख्ता यक़ीन यही है के तुमने खुदा के फेअलकी मुताबअत (पैरवी) की। यकीन रख्खो के ये तौफीक भी खुदा ही की अता और उसके एहसान से है।
      लेहाज़ा तुम्हारे लिये ज़ुरूरी है के क़ज़ा व कद्र को सब्रो इस्तेक़ामत के साथ तस्लीम करो और हर ऐसी नई बात से ऐहतेराज़ (परहेज़) करो। और खुदा के हर हुकमको खुशदिलीसे सुनो और उसे कुबूल करनेके लिये मुस्तयदी (तैयारी) से मुतहर्रिक हो जाओ। उसे सुनकर सोचते ही न रहो।

बाक़ी कल की पोस्ट में... इंसा अल्लाह
*✍🏽फुतूहल ग़ैब*  पेज 30
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खादिमे दिने नबी ﷺ
 *फ़ैयाज़ सैय्यिद*
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Monday 22 August 2016

क़ब्र में आनेवाला दोस्त

*क़ब्र को जहन्नम का गढा बनाने वाले आमाल* #01
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     यु तो हर गुनाह अज़ाबे क़ब्र का सबब बन सकता है मगर चन्द ऐसी रिवायत व हिकयत मुलाहजा कीजिये जिनमे अज़ाबे क़ब्र में मुब्तला करने वाले गुनाहो का खुसुसिय्यत के साथ ज़िक्र है।

*_चुगल खोरी_*
     हुज़ूरﷺ दो क़ब्रो के पास से गुज़रे तो ग़ैब की खबर देते हुए फ़रमाया : ये दोनों क़ब्र पे अज़ाब दिए जा रहे है और किसी बड़ी चीज़ (जिससे बचना दुस्वार हो) में अज़ाब नही दिये जा रहे बल्कि एक तो पेशाब के छिटो से नही बचत था और दूसरा चुगल खोरी किया करता था फिर आपﷺ ने खजूर की ताज़ा टहनी मंगवाई और उसे अंधो आध चीरा और हर एक की क़ब्र पर एक एक हिस्सा गाड़ दिया और फ़रमाया : जब तक ये खुश्क न हो तब तक इन दोनों के अज़ाब में तख़फ़ीफ़ होगी।
*✍🏽सुनन नसाई, 13*
*✍🏽सहीह बुखारी, 1/95*

*_क़ब्र में आग भड़क रही थी_*
     हज़रते अम्र बिन दिनार अलैरहमा कहते है के मदीना में एक शख्स रहता था जिसकी बहन मदीना के नवाह में रहती थी। वो बीमार हुई तो ये शख्स उस की तिमार दारी में लगा रहा मगर वो उसी मरज़ में इन्तिकाल कर गई। उस शख्स ने अपनी बहन की तजहिज़ व तकफिन का इन्तिज़ाम किया, जब दफ़्न कर के वापस आया तो उसे याद आया के वो रकम की थैली क़ब्र में भूल आया है। उसने अपने एक दोस्त से मदद तलब की दोनों ने जा कर उसकी क़ब्र खोद कर थैली निकाल ली।
     उसने दोस्त से कहा : ज़रा हटना में देखु तो सही मेरी बहन किस हाल में है ? उसने लहद में झांक कर देखा तो वहा आग भड़क रही थी, वो चुपचाप वापस चला आया और माँ से पूछा : क्या मेरी बहन में कोई खराब आदत थी ? माँ ने कहा तेरी बहन की आदत थी के वो हमसायो के दरवाज़ों से कान लगा कर उन की बाते सुनती थी और चुंगुल खोरी करती थी।
*✍🏽मकशफतुल कुलूब, 71*

     लोगो में फसाद करवाने के लिये उनकी बाते एक दूसरे तक पहचना चुगली है।
*✍🏽सहीह मुस्लिम, 1/311*
चुगल खोर मुहब्बतों का चोर है, आज हमारे मुआशरे में महब्बतो की फ़ज़ा आलूदा होने का एक बड़ा सबब चुगल खोरी भी है, लोगो के दरमियान चुगलिया खा कर फसाद बरपा करके अपने कलेजे में ठंडक महसूस करने वाले को कल जहन्नम की भड़कती हुई आग में जलना पड़ेगा, अगर कभी ज़िन्दगी में ये गुनाह हुवा हो तो तौबा करके ये निय्यत कर लीजिये के हम चुगली खाएंगे न सुनेंगे, انشاء الله.
*✍🏽क़ब्र में आनेवाला दोस्त, 36*
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फैज़ाने सिद्दिके अकबर

*_सिद्दिके अकबर का इसमें गिरामी_* #02
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     आपرضي الله تعالي عنه के नाम के बारे में 3 क़ौल है :
*_पहला क़ौल_*
     आपرضي الله تعالي عنه का नाम अब्दुल्लाह बिन उष्मान है। चुनांचे हज़रते अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैरرضي الله تعالي عنه अपने वालिद से रिवायत करते है कि हज़रते अबू बक्र का नाम अब्दुल्लाह बिन उष्मान है।

*_दूसरा क़ौल_*
     जमहुर अहले नसब के नज़दीक आपرضي الله تعالي عنه का क़दीम नाम अब्दुल काबा था मुशर्रफ ब इस्लाम होने के बाद अल्लाह के हबीबﷺ ने तब्दील फरमा कर अब्दुल्लाह रख दिया।
     आपرضي الله تعالي عنه के घरवालो ने अब्दुल काबा नाम तब्दील कर के अब्दुल्लाह रख दिया। और आपرضي الله تعالي عنه की वालिदा जब दुआ करती तो यु कहती : ऐ अब्दुल काबा के रब।

*_तीसरा क़ौल_*
     अक्सर मुहदीसिन के नज़दीक आपرضي الله تعالي عنه का नाम अतीक़ है। इमाम इब्ने इस्हाक़ रहमतुल्लाह अलैह फरमाते है कि अतीक़ हज़रते अबू बक्र सिद्दीक़ का नाम है और ये नाम इनके वालिद ने रखा। जब कि हज़रते मूसा बिन तल्हा रहमतुल्लाह अलैह से मरवी है कि ये नाम आप की वालिदा ने रखा।

*_इन तमाम अक़वाल में मुताबक़त_*
     इन तीनो अक़वाल में कोई तज़ाद नही, मुताबक़त की सूरत ये है कि जब आपرضي الله تعالي عنه पैदा हुवे तो आप के वालिदैन ने आप का नाम अब्दुल काबा रखा, बाद में इन्होंने ने या सरकारﷺ ने तब्दील कर के अब्दुल्लाह रख दिया और अतीक़ आप का लक़ब था, लेकिन इसे नाम की हेसिय्यत हासिल हो गई।
*✍🏽फैज़ाने सिद्दिके अकबर, 19*
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मदनी पंजसुरह

*दिन व दुन्या की भलाइयों वाली दुआए* #01
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_दुआए मुस्तफा_*
     अल्लाह के प्यारे हबीबﷺ अक्सर ये दुआ भी माँगा करते थे :
*يَا مُقَلِّبَ الْقُلُوْبِ ثَبِّتْ قَلْبِىْ عَلٰى دِيْنِكَ*
यानी, ऐ दिलो के फेरने वाले ! मेरे दिल को अपने दिन पर क़ाइम रख।
*मिरआत, 1/109*

*_सोते वक़्त की दुआ_*
*اَللّٰهُمَّ بِاسْمِكَ اَمُوْتُ وَاَحْيَا*
यानी, ऐ अल्लाह ! में तेरे नाम के साथ ही मरता और जीत हु (यानी सोता और जागता हु)

*_नींद से बेदार होने के बाद की दुआ_*
*اَلْحَمْدُ لِلّٰهِ الَّذِىْ  اَحْيَانَا بَعٍدَمَآ اَمَاتَنَا وَاِلَيْهِ*
तमाम तारीफे अल्लाह के लिये जिस ने हमें मौत (नींद) के बाद हयात (बेदारी) अता फ़रमाई और हमे उसी की तरह लौटना है।
*✍🏽सहीह बुखारी, 4/193*
*✍🏽मदनी पंजसुरह, 203*
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फुतूह अल ग़ैब

*अवामिर की ताअमिल(एहकाम) और नवाहीसे इजतिनाब (परहेज):*
(हिस्सा 6)
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*
   
      मसाइल बन्दे को खुदाके कुर्ब की नेअमतोसे नवाजते है। इसलिएये  अगर मुसीबतें या बलाए आऐं तो समज़ो के वो तुम्हें हलाक करने के लिये नहीं बल्के इस अम्र में तुम्हारी आजमाइशे और ईमान की सहेत व्  तकमील है। यूं तुम्हें ईकान (यकीन) की पुख्ता असास (बुनियाद) मयस्सर होगी और तुम्हारे लिये इस्तेक़ामत के मुज़ाहेरे पर ख़ुशी भी है और फ़ख़्र भी।
      खुदा तआला खुद फरमाता है: "बेशक हम तुम्हें आजमाइशमें इसी खातिर डालते हैं के तुम जेहाद करने वाले और सब्र करनेवालोंकी पहेचान हो जाए और तुम्हारे आमाल-व-किरदारका इम्तेहान हो।"

बाक़ी कल की पोस्ट में... इंसा अल्लाह
*✍🏽फुतूहल ग़ैब*  पेज 30
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खादिमे दिने नबी ﷺ
 *फ़ैयाज़ सैय्यिद*
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Sunday 21 August 2016

क़ब्र में आनेवाला दोस्त

*हम पर क्या गुज़रेगी ?*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     इन्सान के दो घर होते है : एक ज़मीन के ऊपर और एक ज़मीन के अंदर (यानी क़ब्र), आज हम अपने घर को आराम देह व पुर सुकून बनाने के लिये कैसे कैसे जतन करते है, अँधेरे को दूर करने के लिये जगह जगह बल्ब रोशन करते है, गर्मी में ठन्डक के लिये AC और सर्दी के मौसम में heater तक लगवाते है।
     मगर एक दिन सब कुछ छोड़छाड़ कर खाली हाथ दूसरे घर यानी क़ब्र में मुन्तकिल हो जाएंगे। सोचिये तो सही उस वक़्त हम पर क्या गुज़रेगी जब क़ब्र की वहशतो, गहरी तारीकियों और अजनबी माहोल की उदासियों में तन्हा होंगे, कोई हमदर्द न मददगार, किसी को बुला सके न खुद कही जा सके, हम पर केसी घबराहट तारी होगी !

अँधेरा काट खाता है अकेले खौफ आता है
     तो तन्हा क़ब्र में क्यूँकर रहूंगा या रसूलल्लाह...
नकिरैन इम्तिहाँ लेने को जब आएँगे तुर्बत में
     जवाबात उनको आका कैसे दूंगा या रसूलल्लाह...
बराए नाम दर्द सर सहा जाता नही मुझ से
     अज़ाबे क़ब्र कैसे सह सकूँगा या रसूलल्लाह...
यहाँ चूंटी भी तड़पा दे मुझे तो क़ब्र के अंदर
     शहा बिच्छु के डंक कैसे सहूँगा या रसूलल्लाह....

*✍🏽क़ब्र में आनेवाला दोस्त, 29*
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फैज़ाने खदीजतुल कुब्रा

 #03
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_कुरैश की एक बा किरदार खातुन_*
     हमने पिछली पोस्ट में पढ़ा के हमारे आक़ाﷺ ने तिजारत के माल को किस तरह दियानतदारि के साथ फरोख्त फ़रमाया और अपने अमीन होने का अमली सुबूत पेश करके ये बता दिया की लोगो के अमवाल की हिफाज़त करना और उसमे किसी किस्म की खियानत न करना हर मुसलमान बिल खुसुस एक अच्छे ताजिर की ज़िम्मेदारी है।
     हदिष में है : बेशक सबसे पाकीज़ा कमाई उन ताजीरो की है जो बात करे तो झूट न बोले, जब उनके पास अमानत रखी जाए तो उस में खियानत न करे, जब वादा करे तो उसकी खिलाफ वरज़ी न करे।
*✍🏽शोएबुल ईमान, 4/221*
     याद रकिये ! अमानत में खियानत, हराम और जहन्नम में ले जाने वाला काम है। अल्लाह ने हमे इससे बचने का हुक्म फ़रमाया है। पारह 9 सूरतुल अनफाल की आयत 27 में इरशाद होता है :
*ऐ ईमान वालो ! अल्लाह व रसूल से दगा न करो और न अपनी अमानतों में दानिस्ता खियानत*
     और पारह 5, सुरतुन्निसा की आयत 58 में अमानतों को लौटाने का हुक्म फ़रमाया है :
*बेशक अल्लाह तुम्हे हुक्म देता है की अमानतें जिन की है उन्हें सिपुर्द करो*
     हदिष में कामिल मोमिन की ये सिफत बयान की गई है कि मोमिन हर आदत अपना सकता है मगर झुटा और खियानत करने वाला नही हो सकता।
जब की मुनाफ़िक़ अमानत में खियानत करता है जैसा कि फरमाने मुस्तफाﷺ है :
     मुनाफ़िक़ की 3 निशानिया है, जब बात करे झूट कहे, जब वादा करे तो खिलाफ करे और जब उसके पास अमानत रखी जाए तो खियानत करे।
*✍🏽फैज़ाने खदीजतुल कुब्रा, 5*
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तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान

#13

*_सूरतुल बक़रह, आयत ③/3_*
और हमारी दी हुई रोज़ी में से हमारी राह में उठाएं.

*तर्जुमह*
     अल्लाह की राह में ख़र्च करने का मतलब यहा ज़कात है, जैसा दूसरी जगह फ़रमाया “युक़ीमूनस सलाता व यूतूनज़ ज़काता” (यानी नमाज़ क़ायम करते हैं और ज़कात अदा करते है),
     या हर तरह का दान पुण्य मुराद है चाहे फ़र्ज़ हो या वाजिब, जैसे ज़कात, भेंट, अपनी और अपने घर वालों की गुज़र बसर का प्रबन्ध. जो क़रीबी लोग इस दुनिया से जा चुके हैं उनकी आत्मा की शान्ति के लिये दान करना भी इसमें आ सकता है.
     बग़दाद वाले पीर हुज़ूर ग़ौसे आज़म की ग्यारहवीं की नियाज़, फ़ातिहा, तीजा चालीसवां वग़ैरह भी इसमें दाख़िल हैं कि ये सब अतिरिक्त दान हैं.
     क़ुरआन शरीफ़ का पढ़ना और कलिमा पढ़ना नेकी के साथ अतिरिक्त नेकी मिलाकर अज्र और सवाब बढ़ाता है.
     क़ुरआन शरीफ़ में इस तरफ़ ज़रूर इशारा किया गया है कि अल्लाह की राह में ख़र्च करते वक्त़, चाहे अपने लिये हो या अपने क़रीबी लोगों के लिये, उसमें बीच का रास्ता अपनाया जाए, यानी न बहुत कम, न बहुत ज्यादा.
     “रज़क़नाहुम” (और हमारी दी हुई रोज़ी में से) में यह स्पष्ट कर दिया गया है कि माल तुम्हारा पैदा किया हुआ नहीं, बल्कि हमारा दिया हुआ है. इसको अगर हमारे हुक्म से हमारी राह में ख़र्च न करो तो तुम बहुत ही कंजूस हो और ये कंजूसी बहुत ही बुरी है.
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फुतूहल ग़ैब

*अवामिर की ताअमिल(एहकाम) और नवाहीसे इजतिनाब (परहेज):*
(हिस्सा 5)

*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*  
   
      हुजूर ﷺ ने एक हदीसे पाक में फ़रमाया: "नारे जहन्नम मोमिनसे मुखातिब होगी के, अय साहेबे ईमान जल्दी से गुजर जा, क्यों के तेरा नूर मेरे शोआलों को बुजा रहा है।"
     मोमिनका नूर जिससे जहन्नमके शोअले सर्द होते है, क्या वही नहीं जो दुनिया में इसके साथ था। यही है, यही नूर दुनिया के मसाइब्-व-मुश्किलात की आग को ठंडा कर सकता है। इस नूर की मईय्यत (साथ) में तुम्हें लाज़मन अपने सब्र और खालिककी रज़ाजुइकी ठंडक नसीब होगी और बलाओं की हिद्द्त (ज़ोर-जोश) मुकम्मिल तौर पर खत्म हो जाएगी, मसाइल बन्दे को खुदाके कुर्ब की नेअमतोसे नवाजते है।

बाक़ी कल की पोस्ट में... इंसा अल्लाह
*✍🏽फुतूहल ग़ैब*  पेज 29,30
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खादिमे दिने नबी ﷺ
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मदनी पंजसुरह

*क़ुबूलिय्यते दुआ में ताखीर का एक सबब*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     बसा अवक़ात क़बूलिय्यते दुआ की ताखीर में काफी मसलहते भी होती है जो हमारी समझ में नही आती। हुज़ूर का फरमान है : जब अल्लाह का कोई प्यारा दुआ करता है, तो अल्लाह जिब्राईल अलैहिस्सलाम से इरशाद फ़रमाता है, ढहरो ! अभी न दो ताकि फिर मांगे कि मुझ को इस की आवाज़ पसन्द है। और जब कोई काफ़िर या फ़ासिक़ दुआ करता है, फ़रमाता है, ऐ जिब्राईल ! इस का काम जल्द कर दो, ताकि फिर न मांगे कि मुझ को इस की आवाज़ मकरूह (न पसन्द) है।
*कैरुल उम्माल 2/39, हदिष, 3261*

*_हिकायत_*
     हज़रते यहया बिन क़त्तानرضي الله تعالي عنه ने अल्लाह को ख्वाब में देखा अर्ज़ की, इलाही ! में अक्सर दुआ करता हु। और तू क़बूल नही फ़रमाता ? हुक्म हुवा, ऐ यहया ! में तेरी आवाज़ को दोस्त रखता हु। इस वासिते तेरी दुआ की क़बूलिय्यत में ताखीर करता हु।
*✍🏽अहसनुल वीआअ, 35*
     ये हादिशे पाक और हिकायत पेश की उसमे ये बताया गया है कि अल्लाह को अपने बन्दों की गीर्य व ज़ारी पसन्द है तो यु भी बसा अवक़ात क़बूलिय्यते दुआ में ताखीर होती है। अब इस मस्लहत को हम कैसे समझ सकते है !
*✍🏽मदनी पंजसुरह, 188*
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Saturday 20 August 2016

क़ब्र में आनेवाला दोस्त

*अपनी मौत को याद कीजिये*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     ज़रा तसव्वुर की निगाह से देखिये के मेरी मौत का वक़्त आन पोहचा है, मुझ पर गशी तारी हो चुकी है, लोग बे बसी के आलम में मुझे मौत के मुह में जाता हुवा देख रहे है मगर कुछ् कर नही सकते, नज़ा की सख्तिया भी शुरू हो गई मगर में अपनी तकलीफ किसी को बता नहीं सकता क्यू के हर वक़्त चहकने वाली ज़बान अब खामोश हो चुकी है, सख्त प्यास महसूस हो रही है मगर किसी से दो घूंट पानी नही मांग सकता, इसी दौरान कोई मेरे सामने कलिमए पाक पढ़ने लगा, फिर रफ्ता रफ्ता सामने के मनाज़िर धुंदले होने लगे, गले से खर खराहत की आवाज़े आना शुरू हो गई, और बिल आखिर रूह ने जिस्म का साथ छोड़ दिया।
     अज़ीज़ों अक़ारिब पर गिर्या तारी हो गया। अहलो अयाल की आँखे सिद्दते गम से नम है। किसी ने आगे बढ़ कर मेरी आँखे बंद कर दी, मेरी मौत के ऐलानात होने लगे, कुछ लोग मेरे दफ़्न के इन्तिज़ाम में लग गए। गुस्ल व कफनाया गया। मेरे चाहने वालो ने आखरी मर्तबा मुझे देखा के ये चेहरा अब दुन्या में दोबारा हमे दिखाई न देगा।
     फिर मेरे नाज़ उठाने वालो ने मेरा जनाज़ा अपने कंधो पर उठा लिया और क़ब्रस्तान की और चलना शुरू हो गए। मेरी नमाज़े जनाज़ा अदा की गई और मेरी लाश को चारपाई से उठा कर उस क़ब्र में मुन्तकिल कर दिया जिस के बारे में हदिष में आया के *जन्नत का एक बाग़ है....या दोज़ख का गढ़ा !*
     क़ब्र पर मिट्टी डाल कर जब मेरे साथ आने वाले लौट कर चले तो मेने उनके क़दमो की आवाज़ सुनी, उनके जाने के बाद क़ब्र मुझ से हम कलाम हुई और कहने लगी : *ऐ आदमी ! क्या तूने मेरे हालात न सुने थे ? क्या मेरी तंगी, बदबू, होलनाकिया और कीड़ो से तुझे नहीं डराया गया था ? अगर ऐसा था तो फिर तूने क्या तैयारी की ?*
*✍🏽क़ब्र में आनेवाला दोस्त, 28*
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तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान

#12

*_सूरतुल बक़रह, आयत ③/2_*
और नमाज़ क़ायम रखें

*तर्जुमह*
     नमाज़ के क़ायम रखने से ये मुराद है कि इसपर सदा अमल करते हैं और ठीक वक्तों पर पूरी पाबन्दी के साथ सभी अरकान के साथ नमाज़ की अदायगी करते हैं और फ़र्ज़, सुन्नत और मुस्तहब अरकान की हिफ़ाज़त करते है, किसी में कोई रूकावट नहीं आने देते,
     जो बातें नमाज़ को ख़राब करती हैं उन का पूरा पूरा ध्यान रखते हैं और जैसी नमाज़ पढ़ने का हुक्म हुआ है वैसी नमाज़ अदा करते हैं.
     नमाज़ के हुक़ूक़ : नमाज़ के हुक़ूक़ दो तरह के हैं एक ज़ाहिरी, ये वो हैं जो अभी अभी उपर बताए गए. दूसरे बातिनी, यानी आंतरिक, पूरी यकसूई या एकाग्रता, दिल को हर तरफ़ से फेरकर सिर्फ अपने पैदा करने वाले की तरफ़ लगा देना और दिल की गहराईयों से अपने रब की तारीफ़ और उससे दुआ करना.
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मदनी पंजसुरह

*दुआ के 5 मदनी फूल*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     पहला फायदा ये है कि अल्लाह के हुक्म की पैरवी होती है कि उसका हुक्म है मुझ से दुआ माँगा करो। जैसा कि क़ुरआन में इरशाद है :
*मुझ से दुआ करो में क़बूल करूँगा*
पारह, 24, अल-मोमिन, 60
     दुआ मांगना सुन्नत है कि हुज़ूर अक्सर अवक़ात दुआ मांगते।
     दुआ मांगने में इताअते रसूल भी है कि आप दुआ की अपने गुलामो को ताकीद फरमाते रहते।
     दुआ मांगने वाला आबिदो के गिरोह में दाखिल होता है कि दुआ बज़ाते खुदा एक इबादत बल्कि इबादत का भी मग्ज़ है। जैसा की हुज़ूरﷺ ने फ़रमाया :
*दुआ इबादत का मग्ज़ है*
_✍🏽तिर्मिज़ी, 5/243_
     दुआ मांगने से या तो उसका गुनाह मुआफ़ किया जाता है या दुन्या ही में उसके मसाइल हल होते है या फिर वो दुआ उस के लिये आख़िरत का ज़खीरा बन जाती है।

*_नजाने कौन सा गुनाह हो गया है ?_*
     देखा आपने ! दुआ मांगने में अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त और उसके हबीबﷺ की इताअत भी है, दुआ मांगना सुन्नत भी है, दुआ मांगने से इबादत का षवाब भी मिलता है नीज़ दुन्या व आख़िरत के मुतद्दद फवाइद हासिल होते है।
     बाज़ लोगो को देखा गया है कि वो दुआ की क़बूलिय्यत के लिये बहुत जल्दी मचाते बल्कि मआज़ अल्लाह ! बाते बनाते है कि हम टोइटने अरसे से दुआए मांग रहे है, बुज़ुर्गो से भी दुआए करवाते रहे है, कोई पिर फ़क़ीर नही छोड़ा, ये वज़ाइफ पढ़ते है, वो अवराद पढ़ते है, मगर अल्लाह हमारी हाजत पूरी करता ही नही। बल्कि बाज़ ये भी कहते सुने जाते है : *न जाने ऐसा कौन सा गुनाह हो गया है जिस की हमे सज़ा मिल रही है*

बाक़ी कल की पोस्ट में.. انشاء الله
*✍🏽मदनी पंजसुरह, 184*
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Friday 19 August 2016

क़ब्र में आनेवाला दोस्त

*एकदिन मरना है आखिर मौत है*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     दिन और रात गोया दो सवारिया है जिन पर हम बारी बारी सुवार होते है, ये सवारिया मुसलसल अपना सफर जारी रखे हुए है और हमे मौत की मन्ज़िल पर पहोचा कर ही दम लेंगी,
     क्या आप ने गौर किया के हम दिन के गुज़रने और रात के कटने पर बहुत खुश होते है हालांके हमारी ज़िन्दगी का एक दिन या एक रात कम हो जाती है और हम मौत के मजीद क़रीब हो जाते है, हमारी हेसिय्यत तो उस बल्ब की तरह है की सारी चकाचौंद और तुवानाइ प्लास्टिक के एक बटन में छुपी होती है, उस बटन पर पड़ने वाला ऊँगली का हल्का सा दबाव उसकी रोशनियां गुल कर देता है।
    इसी तरह मौत का वक़्त आने पर हमारा चाको चौबन्द जिस्म इतना बेबस हो जाता है के हम अपनी मर्ज़ी से हाथ भी नही हिला सकते, अगर्चे ये तै हे के एक दिन हमे भी मरना है मगर हम नही जानते के मौत में कितना वक़्त बाकी है ? क्या मालुम के आज का दिन हमारी ज़िन्दगी का आखरी दिन या आने वाली रात हमारी आखरी रात हो ! बल्कि हमारे पास तो इसकी भी ज़मानत नही के एक के बाद दूसरा सास ले सकेंगे या नही ? क्यू की सास फेफड़ो में जाते और बहार निकलते वक़्त इंसान के इख्तियार में नही होता और न ही इस पर ऐतिबार किया जा सकता है, और हो सकता है के जो सास हम ले रहे है वो आखरी हो !
     आए दिन ये खबरे हमे सुनने को मिलती है के फुला इस्लामी भाई अच्छे खासे थे ब ज़ाहिर उन्हें कोई मरज़ भी न था, लेकिन अचानक हार्टफेल हो जाने की वजह से चन्द मिनट के अंदर उनका इंतिक़ाल हो गया,
     यु ही किसी भी लम्हे हमे इस दुन्या से रुखसत होना पड़ सकता है क्यू के जो रात क़ब्र में गुजरनी है वो बाहर नही गुज़र सकती।

*_मौत को याद करने का फायदा_*
     हुज़ूरﷺ ने फ़रमाया : जिसे मौत की याद ख़ौफ़ज़दा करती है क़ब्र उस के लिये जन्नत का बाग़ बन जाएगी।
*✍🏽क़ब्र में आनेवाला दोस्त, 26*
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फैज़ाने खादीजतुल कुब्रा

#01
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_कुरैश की एक बा किरदार खातुन_* #01
     हज़रते खादीजतुल कुब्राرضي الله تعالي عنها जो मिमिनिन की माँ, प्यारे आक़ाﷺ की गम गुसार, हज़रते फातिमाرضي الله تعالي عنها और दीगर शाहज़ादो और शाहज़ादियो की वालिदा और इमाम हसन व हुसैनرضي الله تعالي عنهم की नानी जान है।
     आपرضي الله تعالي عنها बड़े पैमाने पर तिजारत किया करती थी। हर ताजिर की तरह आप को भी ऐसे ज़ी शुऊर, होश्यार, बा स्लाहिय्यत और सलीक़ा मन्द अफ़राद की ज़रूरत रहती थी जो अमीन और दियानतदार हो।
     उधर सरकारﷺ के हुस्ने अख़लाक़, सच्चाई, ईमानदारी और डियानतदारी का शोहरा हर खासो आम की ज़बान पर था। आपﷺ अपने गेर मामूली अख़लाक़ी व मुआशरती औसाफ की बिना पर अख़लाक़ी पस्ती के उस दौरे जाहिलिय्यत में ही अमीन कह का पुकारे जाते थे।
     हज़रते खदीजाرضي الله تعالي عنها तक भी अगर्चे आप की इन सिफ़ाते आलिया की शोहरत पहुच चुकी थी और इस वजह से आप, हुज़ूरﷺ को अपना सामान दे कर तिजारती काफ्ले के साथ रवाना भी करना चाहती थी, लेकिन ये ख्याल करके के मालूम नही हुज़ूरﷺ इसे क़बूल फरमाएंगे भी या नही, अपना इरादा तर्क कर देती।
     शबो रोज़ गुज़रते रहे, हत्ता कि रसूले खुदा के एलाने नुबुव्वत से तक़रीबन 15 बरस पहले का दौर आया। गुज़श्ता सालो की तरह इस साल भी अहले अरब का तिजारती काफिला मुल्के शाम के सफर पर जाने को तैयार है। हज़रते खदीजाرضي الله تعالي عنها ने भी आपﷺ की तरफ पैगाम भेजा कि मुझे आप की सच्चाई, अमानतदारी और अच्छे अख़लाक़ का इल्म है, अगर आप मेरे माल को तिजारत के लिये ले जाने की पेशकश क़बूल फरमा ले तो में आप को उससे दुगना मुआवज़ा दूंगी, जो आप की क़ौम के दूसरे लोगो को देती हु। रसूलल्लाहﷺ ने इसे क़ुबूल फ़रमाया।

बाक़ी अगली पोस्ट में.. انشاء الله
*✍🏽फैज़ाने खदीजतुल कुब्रा, 4*
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फुतूह अल ग़ैब

*अवामिर की ताअमिल(एहकाम) और नवाहीसे इजतिनाब (परहेज):*
(हिस्सा 3)

*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*
     
       ख़ुशनूदीए हक तआला के लिए मुसिबतको भी नेअमत समजो, और बेहरे तस्लीम व् रज़ा में गर्क हो जाओ। इस अमलके नतीजे में तुम्हे खुदाकी इताअत और मवालत (आपस की दोस्ती) के रास्तों और मंज़िलोकी सैर कराई जायेगी और तुम्हे सिद्दीकीन, शोहदाअ और सलेहीनके खास मकामात पर फाइज़ कर दिया जाएगा।
      ताके जो लोग तुमसे पेहले कुर्बे खुदावन्दी की नेअमतोसे फ़ैज़याब हो चुके हैं, उनका मुशाहेदा कर सको। *ये वही लोग हैं जिन्हें ज़िक्रके बाइस करामते , नेअमते, अमन और मसर्रत मिल चुकी है।*

बाक़ी कल की पोस्ट में... इंसा अल्लाह
*✍🏽फुतूहल ग़ैब*  पेज 29
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खादिमे दिने नबी ﷺ
 *फ़ैयाज़ सैय्यिद*
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तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान

#11
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*
*_सूरतुल बक़रह, आयत ③/1_*
वो जो बेदेखे ईमान लाएं,

*तर्जुमह*
     “अल लज़ीना यूमिनूना बिल ग़ैब” (यानी वो जो बे देखे ईमान लाएं) से लेकर  “मुफ़लिहून” (यानी वही मुराद को पहुंचने वाले ) तक की आयतें सच्चे दिल से ईमान लाने और उस ईमान को संभाल कर रखने वालों के बारे में हैं. यानी उन लोगों के हक़ में जो अन्दर बाहर दोनों से ईमानदार हैं.
     इसके बाद जो आयतें खुले काफ़िरों के बारे में हैं जो अन्दर बाहर दोनों तरह से काफ़िर हैं.
     इसके बाद “व मिनन नासे” (यानी और कुछ कहते हैं) से तेरह आयतें मुनाफ़िकों के बारे में हैं जो अन्दर से काफ़िर हैं और बाहर से अपने आपको मुसलमान ज़ाहिर करते हैं.
*✍🏽जुमल*
     “ग़ैब” वह है जो हवास यानी इन्दि्यों और अक्ल़ से मालूम न हो सके. इसकी दो क़िसमें हैं _
     एक वो जिसपर कोई दलील या प्रमाण न हो, यह इल्मे ग़ैब यानी अज्ञात की जानकारी जा़ती या व्यक्तिगत है और यही मतलब निकलता है आयत “इन्दहू मफ़ातिहुल ग़ैबे ला यालमुहा इल्ला हू” (और अल्लाह के पास ही अज्ञात की कुंजी है), और अज्ञात की जानकारी उसके अलावा किसी को नहीं) में और उन सारी आयतों में जिनमें अल्लाह के सिवा किसी को भी अज्ञात की जानकारी न होने की बात कही गई है. इस क़िस्म का इल्में ग़ैब यानी ज़ाती जिस पर कोई दलील या प्रमाण न हो, अल्लाह तआला के साथ विशेष या ख़ास है.
     गै़ब की दूसरी क़िस्म वह है जिस पर दलील या प्रमाण हो जैसे दुनिया और इसके अन्दर जो चीज़ें हैं उनको देखते हुए अल्लाह पर ईमान लाना, जिसने ये सब चीज़ें बनाई हैं, इसी क़िस्म के तहत आता है क़यामत या प्रलय के दिन का हाल, हिसाब वाले दिन अच्छे और बुरे कामों का बदला इत्यादि की जानकारी, जिस पर दलीलें या प्रमाण मौजूद हैं और जो जानकारी अल्लाह तआला के बताए से मिलती है. इस दूसरे क़िस्म के गै़ब, जिसका तअल्लुक़ ईमान से है, की जानकारी और यक़ीन हर ईमान वाले को हासिल है, अगर न हो तो वह आदमी मूमिन ही न हो.
     अल्लाह तआला अपने क़रीबी चहीते बन्दों, नबियों और वलियों पर जो गै़ब के दरवाज़े खोलता है वह इसी क़िस्म का ग़ैब है. गै़ब की तफ़सीर या व्याख्या में एक कथन यह भी है कि ग़ैब से क़ल्ब यानी दिल मुराद है. उस सूरत में मानी ये होंगे कि वो दिल से ईमान लाएं.
*✍🏽जुमल*
     ईमान : जिन चीज़ों के बारे में हिदायत और यक़ीन से मालूम है कि ये दीने मुहम्मदी से हैं, उन सबको मानने और दिल से तस्दीक़ या पुष्टि करने और ज़बान से इक़रार करने का नाम सही ईमान है.
     कर्म या अमल ईमान में दाख़िल नहीं इसीलिये “यूमिनूना बिल गै़बे” के बाद “युक़ीमूनस सलाता” (और नमाज़ क़ायम रखें) फ़रमाया गया.
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मदनी पंजसुरह

*दुआ के 3 फायदे*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     हुज़ूरﷺ फरमाते है : जो मुसलमान ऐसी दुआ करे जिस में गुनाह और कतए रहमी की कोई बात शामिल न हो तो अल्लाह उसे 3 चीज़ों में से कोई एक ज़रूर अता फ़रमाता है :
     या उसकी दुआ का नतीजा जल्द ही उसकी ज़िन्दगी में ज़ाहिर हो जाता है।
     या अल्लाह कोई मुसीबत उस बन्दे से दूर फरमा देता है।
     या उसके लिये आख़िरत में भलाई जमा की जाती है।

     एक और रिवायत में है कि बन्दा जब आख़िरत में अपनी दुआओ का षवाब देखेगा जो दुन्या में मक़बूल न हुई थी तो तमन्ना करेगा, काश ! दुन्या में मेरी कोई दुआ क़बूल न होती।
*✍🏽अलमुस्तदरक लीलहाकिम, 2/163*

     देखा आप ने ! दुआ राएगा तो जाती ही नही। इस का दुन्या में अगर असर ज़ाहिर न भी हो तो आख़िरत में अज़्रो षवाब मिल ही जाएगा। लिहाज़ा दुआ में सुस्ती करना मुनासिब नही।
*✍🏽मदनी पंजसुरह, 183*
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Thursday 18 August 2016

सिरते मुस्तफा


*_सी. 4 हि. के मुतफ़र्रिक़ वाक़ीआत_* #02
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     इसी साल हज़रते अलीكَرَّمَ اللّٰهُ تَعَالٰى وَجْهَهُ الْكَرِيْم की वालिदए माजिदा हज़रते बीबी फातिमा बिन्ते असदرضي الله تعالي عنها ने वफ़ात पाई, हुज़ूरﷺ ने अपना मुक़द्दस पैरहन उन के कफ़न के लिये अता फ़रमाया और उन की क़ब्र में उतर कर उन की मय्यित को अपने दस्ते मुबारक से क़ब्र में उतारा और फ़रमाया कि फातिमा बिन्ते असद के सिवा कोई शख्स भी क़ब्र के दबोचने से नही बचा है।
     हज़रते उमर बिन अब्दुल अज़ीज़رضي الله تعالي عنه से रिवायत हे कि सिर्फ 5 ही मय्यित ऐसी खुश नसीब हुई है जिन की क़ब्र में हुज़ूरﷺ खुद उतरे : (1) हज़रते बीबी खदीजा, (2) हज़रते बीबी खदीजा का एक लड़का, (3) अब्दुल्लाह मुज़्नी जिन का लक़ब जुल बिजादैन है, (4) हज़रते बीबी आइशा की माँ हज़रते उम्मे रूमान, (5) हज़रते फातिमा बिन्ते असद हज़रते अली की वालिदा।

     इसी साल 4 शाबान को हज़रते इमामे हुसैनرضي الله تعالي عنه की पैदाइश हुई।
     इसी साल एक यहूदी ने एक यहूदी की औरत के साथ ज़िना किया और यहूदियो ने ये मुक़द्दमा बारगाहे नुबुव्वत में पेश किया तो आपﷺ ने तौरेत व क़ुरआन दोनों किताबो के फरमान से उस को संगसार करने का फैसला फ़रमाया।
     इसी साल तअमा बिन उबैरक़ ने जो मुसलमान था चोरी की तो हुज़ूरﷺ ने क़ुरआन के हुक्म से उस का हाथ काटने का हुक्म फ़रमाया, इस पर वो भाग निकला और मक्का चला गया। वहा भी उसने चोरी की अहले मक्का ने उस को क़त्ल कर डाला या उस पर दिवार गिर पड़ी और मर गया या दरिया में फेक दिया गया। एक क़ौल ये भी है कि वो मुर्तद हो गया था।
     बाज़ मुअर्रिखिन के नज़दीक शराब की हुरमत का हुक्म भी इसी साल नाज़िल हुवा और बाज़ के नज़दीक सि. 6 हि. में और बाज़ ने कहा की सि. 8 हि. में शराब हराम की गई।
*✍🏽सिरते मुस्तफा, 303*
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तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान

 #10

*_सूरतुल बक़रह, आयत, ①_*
अलिफ़ लाम मीम
*तफ़सीर*
     सूरतों के शुरू में जो अलग से हुरूफ़ या अक्षर आते है उनके बारे में यही मानना है कि अल्लाह के राज़ों में से है और मुतशाबिहात यानी रहस्यमय भी. उनका मतलब अल्लाह और रसूलﷺ जानें. हम उसके सच्चे होने पर ईमान लाते

*_आयत, ②_*
वह बुलन्द रूत्बा किताब कोई शक की जगह नहीं 1⃣
इसमें हिदायत है डर वालों को 2⃣
*तफ़सीर*
     1⃣ इसलिये कि शक उसमें होता है जिसका सूबूत या दलील या प्रमाण न हो.
     क़ुरआन शरीफ़ ऐसे खुले और ताक़त वाले सुबूत या प्रमाण रखता है जो जानकार और इन्साफ वाले आदमी को इसके किताबे इलाही और सच होने के यक़ीन पर मज़बूत करते हैं. तो यह किताब किसी तरह शक के क़ाबिल नहीं,
     जिस तरह अन्धे के इन्कार से सूरज का वुजूद या अस्तित्व संदिग्ध या शुबह वाला नहीं होता, ऐसे ही दुश्मनी रखने वाले काले दिल के इन्कार से यह किताब शुबह वाली नहीं हो सकती.
     2⃣ “हुदल लिल मुत्तक़ीन” (यानि इसमें हिदायत है डर वालों को) हालांकि क़ुरआन शरीफ़ की हिदायत या मार्गदर्शन हर पढ़ने वाले के लिये आम है, चाहे वह मूमिन यानी ईमान वाला हो या काफ़िर, जैसा कि दूसरी आयत में फ़रमाया “हुदल लिन नासे” यानी “हिदायत सारे इन्सानों के लिये” लेकिन चूंकि इसका फ़ायदा अल्लाह से डरने वालों या एहले तक़वा को होता है इसीलिये फ़रमाया गया _ हिदायत डरवालों को.
     जैसे कहते हैं बारिश हरियाली के लिये है यानी फ़ायदा इससे हरियाली का ही होता है हालांकि यह बरसती ऊसर और बंजर ज़मीन पर भी है.
     “तक़वा” के कई मानी आते हैं, नफ्स या अन्त:करण को डर वाली चीज़ से बचाना तक़वा कहलाता है. शरीअत की भाषा में तक़वा कहते हैं अपने आपको गुनाहों और उन चीज़ों से बचाना जिन्हें अपनाने से अल्लाह तआला ने मना फ़रमाया हैं.
     हज़रत इब्ने अब्बास (अल्लाह उन से राज़ी रहे) ने फ़रमाया मुत्तक़ी या अल्लाह से डरने वाला वह है जो अल्लाह के अलावा किसी की इबादत और बड़े गुनाहों और बुरी बातों से बचा रहे.
     दूसरों ने कहा है मुत्तक़ी अपने आप को दूसरों से बेहतर न समझे. कुछ कहते हैं तक़वा हराम या वर्जित चीज़ों का छोड़ना और अल्लाह के आदेशों या एहकामात का अदा करना है. औरों के अनुसार आदेशों के पालन पर डटे रहना और ताअत पर ग़ुरूर से बचना तक़वा है. कुछ का कहना है कि तेरा रब तुझे वहाँ न पाए जहाँ उसने मना फ़रमाया है.
     एक कथन यह भी है कि तक़वा हुज़ूर (अल्लाह के दूरूद और सलाम हों उनपर) और उनके साथी सहाबा (अल्लाह उन से राज़ी रहे) के रास्ते पर चलने का नाम है.
*✍🏽ख़ाज़िन*
     यह तमाम मानी एक दूसरे से जुड़े हैं. तक़वा के दर्जें बहुत हैं_ आम आदमी का तक़वा ईमान लाकर कु्फ्र से बचना, उनसे ऊपर के दर्जें के आदिमयों का तक़वा उन बातों पर अमल करना जिनका अल्लाह ने हुक्म दिया है और उन बातों से दूर रहना जिनसे अल्लाह ने मना किया है. ख़वास यानी विशेष दर्जें के आदमियों का तक़वा एसी हर चीज़ का छोड़ना है जो अल्लाह तआला से दूर कर दे या उसे भुला दे.
*✍🏽जुमल*
     इमाम अहमद रज़ा खाँ, मुहद्सि _ए बरेलवी (अल्लाह की रहमत हो उनपर)ने फ़रमाया _ तक़वा सात तरह का है.
(1) कुफ्र से बचना, यह अल्लाह तआला की मेहरबानी से हर मुसलमान को हासिल है
(2) बद_मज़हबी या अधर्म से बचना _ यह हर सुन्नी को नसीब है,
(3) हर बड़े गुनाह से बचना
(4) छोटे गुनाह से भी दूर रहना
(5) जिन बातों की अच्छाई में शक या संदेह हो उनसे बचना
(6) शहवत यानी वासना से बचना
(7) गै़र की तरफ़ खिंचने से अपने आप को रोकना.
     यह बहुत ही विशेष आदमियों का दर्जा है. क़ुरआन शरीफ़ इन सातों मरतबों या श्रेणियों के लिये हिदायत है.
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फुतूह अल ग़ैब

*अवामिर की ताअमिल(एहकाम) और नवाहीसे इजतिनाब (परहेज):*
(हिस्सा 2)

*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

      दुआ करना के ये बला जल्द दफाअ हो। या सब्र करना या खुदा की मरजिका बहाना करना कुछ फायदा न देगा। मुसीबत आकर रहेगी चुनांचे फाइले हकीकी (खुदा तआला) के फेे सामने सरे तस्लीम ख़म करने ही में आफ़ियत है।
      अगर उसकी तरफसे नेअमत मिली है तो शुक्र करो, अगर मुसीबत और बला आई है तो सब्र का दामन थाम लो। सब्र खुदा की रज़ा के लिए होतो बेहतर है, वरना तकल्लुफ़से सब्र का दामन लो।
बाक़ी कल की पोस्ट में... इंसा अल्लाह

*✍🏽फुतूहल ग़ैब*  पेज 29
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खादिमे दिने नबी ﷺ
 *फ़ैयाज़ सैय्यिद*
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मदनी पंजसुरह

*_दुआ की अहमिय्यत_*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     दुआ मांगना बहुत बड़ी सआदत है, क़ुरआन व अहादीस में जगह जगह दुआ मांगने की तरगिब् दिलाई गई है।
     एक हदिष में है : क्या में तुम्हे वो चीज़ न बताऊ जो तुम्हे तुम्हारे दुश्मन से नजात दे और तुम्हारा रिज़्क़ वसीअ कर दे, रात दिन अल्लाह से दुआ मांगते रहो कि दुआ मोमिन का हथियार है।

*_दुआ दाफ़ेए बला है_*
     हुज़ूरﷺ ने फ़रमाया : बला उतरती है फिर दुआ उस से जा मिलती है। फिर दोनों क़यामत तक झगड़ा करते रहते है।
*✍🏽अलमुस्तदरक, 2/162*

*_इबादत में दुआ का मक़ाम_*
     हज़रते अबू ज़र गिफारिرضي الله تعالي عنه इरशाद फरमाते है : इबादत में दुआ की वही हेसिय्यत है जो खाने में नमक की।
*✍🏽मदनी पंजसुरह, 182*
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Wednesday 17 August 2016

सिरते मुस्तफाﷺ


*_सी. 4 हि. के मुतफ़र्रिक़ वाक़ीआत_* #01
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     इसी साल गज़्वाए बनू नज़ीर के बाद जब अन्सार ने कहा कि या रसूलल्लाहﷺ ! बनू नज़ीर के जो अमवाल गनीमत में मिले है वो सब आप हमारे मुहाजिर भाइयो को दे दीजिये हम इस में से किसी चीज़ के तलब गार नही है, तो हुज़ूरﷺ ने खुश हो कर ये दुआ फ़रमाई :
*ऐ अल्लाह ! अन्सार पर, और अन्सार के बेटो पर और अन्सार के बेटो के बेटो पर रहम फरमा*
     इसी साल हुज़ूरﷺ के नवासे हज़रते अब्दुल्लाह बिन उष्मान गनी की आँख में एक मुर्ग ने चोच मार दी जिस के सदमे से वो दो रात तड़प कर वफ़ात पा गए।
     इसी साल हुज़ूरﷺ की ज़ौजए मुतह्हरा हज़रते बीबी ज़ैनब बिन्ते खुज़ैमرضي الله تعالي عنها की वफ़ात हुई।
     इसी साल हुज़ूरﷺ ने हज़रते उम्मुल मुअमिनिन बीबी उम्मे सलमहرضي الله تعالي عنها से निकाह फ़रमाया।

बाक़ी अगली पोस्ट में.. انشاء الله
*✍🏽सिरते मुस्तफा, 302*
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तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान

 #09
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*
*_सूरतुल बक़रह_*
     यह क़ुरआन शरीफ़ की दूसरी सूरत है. मदीने में उतरी, इस सूरत में आयतें: 286 रूकू 40 है।

     यह सूरत मदीना में उतरी. हज़रत इब्ने अब्बास (अल्लाह तआला उनसे राज़ी रहे) ने फ़रमाया मदीनए तैय्यिबह में सबसे पहले यही सूरत उतरी, सिवाय आयत “वत्तक़ू यौमन तुर जऊन” के कि नबीये करीब सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के आख़िरी हज में मक्कए मुकर्रमा में उतरी.
     इस सूरत में 286 आयतें, चालीस रूकू, 6121 कलिमे (शब्द) 25500 अक्षर यानी हुरूफ़ हैं.
     पहले क़ुरआन शरीफ़ में सूरतों के नाम नहीं लिखे जाते थे. यही तरीक़ा हज्जाज बिन यूसुफे़ सक़फ़ी ने निकाला. इब्ने अरबी का कहना है कि सूरए बक़रह में एक हज़ार अम्र यानी आदेश, एक हज़ार नही यानी प्रतिबन्ध, एक हज़ार हुक्म और एक हज़ार ख़बरें हैं. इसे अपनाने में बरक़त और छोड़ देने में मेहरूमी है.
     बुराई वाले जादूगर इसकी तासीर बर्दाश्त करने की ताक़त नहीं रखते. जिस  घर में ये सूरत पढ़ी जाए, तीन दिन तक सरकश शैतान उस में दाख़िल नहीं हो सकता. मुस्लिम शरीफ़ की हदीस में है कि शैतान उस घर से भागता है जिस में यह सूरत पढ़ी जाय.
     बेहक़ी और सईद बिन मन्सूर ने हज़रत मुग़ीरा से रिवायत की कि जो कोई सोते वक्त़ सूरए बक़रह की दस आयतें पढ़ेगा, वह क़ुरआन शरीफ़ को नहीं भूलेगा. वो आयतें ये है: चार आयतें शुरू की और आयतल कुर्सी और दो इसके बाद की और तीन सूरत के आख़िर की.
     तिबरानी और बेहक़ी ने हज़रत इब्ने उमर (अल्लाह उन से राज़ी रहे) से रिवायत की कि हुज़ूर (अल्लाह के दूरूद और सलाम हों उनपर) ने फ़रमाया _मैयत को दफ्न करके क़ब्र के सिरहाने सूरए बक़रह की शुरू की आयतें और पांव की तरफ़ आख़िर की आयतें पढ़ो.

*_शाने नुज़ूल यानी किन हालात में उतरी_*
     अल्लाह तआला ने अपने हबीब (अल्लाह के दूरूद और सलाम हों उनपर) से एक ऐसी किताब उतारने का वादा फ़रमाया था जो न पानी से धोकर मिटाई जा सके, न पुरानी हो. जब क़ुरआन शरीफ़ उतरा तो फ़रमाया “ज़ालिकल किताबु” कि वह किताब जिसका वादा था, यही है.
     एक कहना यह है कि अल्लाह तआला ने बनी इस्त्राईल से एक किताब उतारने का वादा फ़रमाया था, जब हुज़ूर ने मदीनए तैय्यिबह को हिज़रत फ़रमाई जहाँ यहूदी बड़ी तादाद में थे तो “अलिफ़, लाम मीम, ज़ालिकल किताबु” उतार कर उस वादे के पूरे होने की ख़बर दी.
*✍🏽ख़ाजिन*
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Monday 15 August 2016

*नमाज़ की 6 शराइत* #03
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*4 वक़्त*
     जो नमाज़ पढ़नी है उसका वक़्त होना ज़रूरी है। मसलन आज की नमाज़े असर अदा करना है तो ये ज़रूरी है की असर का वक़्त शुरू हो जाए अगर वक़्ते असर शुरू होने से पहले ही पढ़ ली तो नमाज़ न होगी।
     उमुमन मसाजिद में निज़ामुल अवक़ात के नक़्शे आवेज़ा होते है उन में जो मुस्तनद तौकीद दा के मुरत्तब करदा और उलमए अहले सुन्नत के मुसद्दक़ा हो उन से नमाज़ों के अवक़ात मालुम करने में सहूलत रहती है।
     इस्लामी बहनो के लिये अव्वल वक़्त में नमाज़े फ़ज्र अदा करना मुस्तहब है और बाक़ी नमाज़ों में बेहतर ये है की मर्दों की जमाअत का इन्तिज़ार करे, जब जमाअत हो चुके फिर पढ़े।

*_अवक़ाते मकरुहा_*
     तुलुए आफताब से ले कर 20 मिनिट बाद तक
     गुरुबे आफताब से 20 मिनिट पहले।
     निस्फुन्न्हार यानि ज़हवए कुब्रा से ले कर ज़वाले आफताब तक।
     इन तीनो अवक़ात में कोई नमाज़ जाइज़ नही न फ़र्ज़ न वाजिब न नफ्ल न क़ज़ा।
     हा अगर उस दिन की नमाज़े असर नही पढ़ी थी और मकरुह वक़्त शुरू हो गया तो पढ़ ले अलबत्ता इतनी ताख़ीर करना हराम है।

*_दौराने नमाज़ मकरूह वक़्त दाखिल हो जाए तो ?_*
     गुरुबे आफताब से कम से कम 20 मिनिट क़ब्ल नमाज़े असर का सलाम फिर जाना चाहिए जैसा के आला हज़रत अलैरहमा फरमाते है : नमाज़े असर में जितनी ताखीर हो अफज़ल है जब कि वक़्ते कराहत से पहले पहले खत्म हो जाए।
*✍🏽फतावा रज़विय्या, 5/156*
     फिर अगर इसने एहतियात की और नमाज़ में तत्वील की (यानी तूल दिया) कि वक़्ते कराहत वस्ते नमाज़ में आ गया जब भी इस पर ऐतिराज़ नही।
*✍🏽फतावा रज़विय्या, 5/139*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम, 157-158*
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तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान

#07
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरए फातिहा_*
*तफ़सीर* #03
*वइय्याका नस्तईन*
     (यानि और तुझी से मदद चाहें) में यह सिखाया गया कि मदद चाहना, चाहे किसी माध्यम या वास्ते से हो, या फिर सीधे सीधे या डायरैक्ट, हर तरह अल्लाह तआला के साथ ख़ास है.
     सच्चा मदद करने वाला वही है. बाक़ि मदद के जो ज़रिये या माध्यम है वाे सब अल्लाह ही की मदद के प्रतीक या निशान है.
     बन्दे को चाहिये कि अपने पैदा करने वाले पर नज़र रखे और हर चीज़ में उसी के दस्ते क़ुदरत को काम करता हुआ माने.
     इससे यह समझना कि अल्लाह के नबियों और वलियों से मदद चाहना शिर्क है, ऐसा समझना ग़लत है क्योंकि जो लोग अल्लाह के क़रीबी और ख़ास बन्दे है उनकी इमदाद दर अस्ल अल्लाह ही की मदद है.
     अगर इस आयत के वो मानी होते जो वहाबियों ने समझे तो क़ुरआन शरीफ़ में *अईनूनी बि क़ुव्वतिन*और *इस्तईनू बिस सब्रे वसल्लाह* क्यों आता, और हदीसों में अल्लाह वालों से मदद चाहने की तालीम क्यों दी जाती.

*इहदिनस सिरातल मुस्तक़ीम*
     (यानी हमको सीधा रास्ता चला) इसमें अल्लाह की ज़ात और उसकी ख़ूबियों की पहचान के बाद उसकी इबादत, उसके बाद दुआ की तालीम दी गई है.
     इससे यह मालूम हुआ कि बन्दे को इबादत के बाद दुआ में लगा रहना चाहिये. हदीस शरीफ़ में भी नमाज़ के बाद दुआ की तालीम दी गई है.
*✍🏽तिबरानी और बेहिक़ी*
     सिराते मुस्तक़ीम का मतलब इस्लाम या क़ुरआन नबीये करीम (अल्लाह के दुरूद और सलाम उनपर) का रहन सहन या हुज़ूर या हुज़ूर के घर वाले और साथी हैं.
     इससे साबित होता है कि सिराते मुस्तक़ीम यानी सीधा रास्ता एहले सुन्नत का तरीक़ा है जो नबीये करीम सल्लाहो अलैहे वसल्लम के घराने वालों, उनके साथी और सुन्नत व क़ुरआन और मुस्लिम जगत सबको मानते हैं.
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मदनी पंजसुरह

*दुरुद शरीफ के मदनी फूल*
#01
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     अल्लाह के हुक्म की तामील होती है।
     एक मर्तबा दुरुद पढ़ने वाले पर 10 रहमते नाज़िल होती है। उसके 10 दरजात बुलन्द होते है। उसके लिये 10 नेकिया लिखी जाती है। उसके 10 गुनाह मिटाए जाते है।
     दुरुद पढ़ना नबिय्ये रहमत की शफ़ाअत का सबब है।
     दुरुद पढ़ना गुनाहो की बख्शिश का बाइस है।
     दुरुद के ज़रिए अल्लाह बन्दे के गमो को दूर करता है।
     दुरुद पढ़ने के बाइस बन्दा क़यामत के दिन रसूले अकरम का कुर्ब हासिल करेगा।
     दुरुद तंगदस्ती के लिये सदक़ा के क़ाइम मक़ाम है।
     दुरुद क़ज़ाए हाजात का ज़रिया है।
     दुरुद अल्लाह की रहमत और फिरिश्तो की दुआ का बाइस है।
     दुरुद अपने पढ़ने वाले के लिये पाकीज़गी और तहारत का बाइस है।
     दुरुद से बन्दे को मौत से पहले जन्नत की खुश खबरी मिल जाती है।

बाक़ी अगली पोस्ट में... انشاء الله
*✍🏽जिलाउल अफहाम, 246*
*✍🏽मदनी पंजसुरह, 165*
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Sunday 14 August 2016

क़ब्र में आनेवाला दोस्त

*नेक व बद दोनों को हसरत होगी*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     नबीﷺ ने फ़रमाया : जो भी यहाँ से मर कर जाता है नादिम ज़रूर होता है। सहाबए किराम ने अर्ज़ की : या रसूलल्लाहﷺ ! नदामत किस बात की ? फ़रमाया : अगर वो नेक हो तो नादिम होता है के काश कुछ और नेकी कर लेता और अगर खताकार हो तो नदामत और हसरत करता है के वो गुनाहो से क्यू बाज़ न आया।

     हज़रते मुफ़्ती अहमद यार खान अलैरहमा इस हदिष के तहत लिखते है : लिहाज़ा हर शख्स को चाहिए के पाठ से पहले ज़िन्दगी को, बिमारी से पहले तंदुरस्ती को, मशगुलिय्यत से पहले फरागत को गनीमत जाने जितना मौक़ा मिले नेकी कर गुज़रे।
     हत्ता के अगर कोई शख्स अपनी सारी ज़िन्दगी सज्दा सुजूद में गुज़ार दे वो ये कहेगा के मेरी उम्र और ज़यादा क्यू न हुई के में सजदे सुजूद और ज्यादा कर लेता और आज इस से भी उचा दर्जा पाता !
     इस फरमान में कुफ्फार और गुनाहगार सब दाखिल है, कुफ्फार को शर्मिंदगी होगी, हम नेकुकार परहेज़ गार क्यू न बने ? गुनाहो से बाज़ क्यू न आए, मगर कुफ्फार को उस वक़्त की ये नदामत काम न देगी।
*✍🏽मीरआतुल मनाजिह, 7/378*
*✍🏽क़ब्र में आनेवाला दोस्त, 20*
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फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा

#02
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_खुसूसी रफ़ाक़त व कुर्बते मुस्तफा_*
उम्मुल मुअमिनीन हज़रते आइशा सिद्दीकाرضي الله تعالي عنها (हुज़ूरﷺ के अय्यामे दुन्या के आखिरी लम्हात की केफिय्यात बयान करते हुए)फरमाती हैः (जब मिज़ाजे ररूल शिद्दते मरज़ की वजह से गिरानी महुसुस कर रहा था उस वकत ) "मेरे पास मेरे भाई हज़रते उब्दुर्रहमानرضي الله تعالي عنه आए, उन के हाथ में मिस्वाक थी । मेरे सरताज, सहिबे मेंराज उनकी तरफ़ देखने लगे। मैं जानती थी कि आप मिस्वाक पसन्द फ़रमाते है। मैं ने अर्ज कीः "क्या आप के लिये मिस्वाक लूं ? हुज़ूरﷺ ने अपने सर मूबारक से हां का इशारा फ़रमाया , तो मैं ने हज़रते अब्दुर्रहुमानرضي الله تعالي عنه से मिस्वाक ले ली वोह हुज़ूरﷺ को सख़्त महसूस हूइ। मै ने अर्ज़ की "क्या मैं इसे नर्म कर दूं ?" हजूरﷺ ने सर के इशारे से फ़रमाया : "हां।'' मै ने मिस्वाक(चबा कर) नर्म की। हूज़ूरﷺ के सामने पानी का एक पियाला रखा हूवा था, हूज़ूरﷺ उस मे दस्ते अक़दस दाखिल करते और अपने चेहरए अन्वर पर मस करते और फरमाते : अल्लाह के सिवा कोई मा'बूद नही. *बेशक मौत के लिये सख्तिया है.* फिर अपना दस्ते अक़दस बूलन्द कर के अर्ज़ करने लगे : *रफीके आ'ला में* यहां तक कि हूज़ूरﷺ का विसाल हो गया I''
         उम्मूल मूआमिनीन हज़रते आइशा सिद्दीक़ाرضي الله تعالي عنها फ़रमाती हैः की नबिय्य मूकर्रम, नूरे मूजस्समﷺ ने मेरे घर, मेरी बारी के दिन, मेरी गरदन और सीने के दरमियान विसाल फ़रमाया और अल्लाह ने मौत के वक्त़ मेरा और हूज़ूरﷺ का लूआबे अक़दस मिला दिया I"
*फ़ेज़ोन आइशा सिद्दीका, 12*
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*नमाज़ की 6 शराइत* #02
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_3 इस्तिक़्बाले किब्ला_*
     नमाज़ में किब्ला यानि काबे की तरफ मुह करना।
     नमाज़ी ने बिला उज़्र जानबुझ कर किब्ले से सीना फेर दिया अगर्चे फौरन ही किब्ले की तरफ हो गया नमाज़ फासिद् हो गई वे अगर बिला क़स्द फिर गया और ब क़दर 3 बार "सुब्हान अल्लाह" कहने के वक्फे से पहले वापस किब्ला रुख हो गया तो फासिद् न हुई
*✍🏽बुखारी, 1/497*

     अगर सिर्फ मुह किब्ले से फेरा तो वाजिब है की फौरन किब्ले की तरफ मुह कर ले और नमाज़ न जाएगी मगर बिला उज़्र ऐसा करना मकरूहे तहरीमी है।
     अगर ऐसी जगह पर है जहां किब्ले की शनाख्त का कोई ज़रीआ नही है न कोई ऐसा मुसलमान है जिस से पूछ कर मालुम किया जा सके तो तहर्रि कीजिये यानि सोचिये और जिधर किब्ला होना दिल पर जमे उधर ही रुख कर लीजिये आप के हक़ में वोही किब्ला है।
     तहर्रि कर के नमाज़ पढ़ी बाद में मालुम हुवा की किब्ले की तरफ नमाज़ नहीं पढ़ी, नमाज़ हो गई लौटाने की हाजत नहीं।
     एक शख्स तहर्रि करके नमाज़ पढ़ रहा हो दूसरा उसकी देखा देखि उसी सम्त नमाज़ पढ़ेगा तो नही होगी दूसरे के लिये भी तहर्रि करने का हुक्म है।
*✍🏽नमाज़ के अहकाम, 156-157*
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तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान

#06
*_सूरए फातिहा_*
*तफ़सीर* #02
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*मालिके यौमिद्दीन*
     (यानि इन्साफ वाले दिन का मालिक) में यह बता दिया गया कि अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक़ नहीं है क्योंकि सब उसकी मिल्क में है और जो ममलूक यानी मिल्क में होता है उसे पूजा नहीं जा सकता.
     इसी से मालूम हुआ कि दुनिया कर्म की धरती है और इसके लिये एक आख़िर यानी अन्त है. दुनिया के खत्म होने के बाद एक दिन जज़ा यानी बदले या हिसाब का है.
     इससे पुनर्जन्म का सिद्धान्त या नज़रिया ग़लत साबित हो गया.

*इय्याका नअबुदु*
     (यानि हम तुझी को पूजें) अल्लाह की ज़ात और उसकी खूबियों के बयान के बाद यह फ़रमाना इशारा करता है कि आदमी का अक़ीदा उसके कर्म से उपर है और इबादत या पूजा पाठ का क़ुबूल किया जाना अक़ीदे की अच्छाई पर है.
     इस आयत में मूर्ति पूजा यानि शिर्क का भी रद है कि अल्लाह तआला के सिवा इबादत किसी के लिये नहीं हो सकती.
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फुतूह अल ग़ैब

*सब्रो-शुक्रकी फज़िलत:*
(हिस्सा 3)

 *بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*
 
        इर्सादे बारी तआला है: अगर तुम शाकिर (शुक्र गुज़ार ) रहोगे तो हम ज़ियादा अता करेंगे और अगर नाशुक्रगुज़ारीका सुबूत दिया तो हम तुम्हें निहायत शदीद अज़ाब में डाल देंगे।
      अगर वो चीज़ तुम्हारी किस्मत में न हुई तो तुम्हारे दिल से उसका खयाल मिटा दिया जाएगा, नफ़स उसे चाहे या न चाहे , पस तुम्हारे लिए लाज़िम है के हर हाल में साबिर रहो , ख्वाहिशाते नफस की मुखालेफत में कमरबस्ता रहो और शरीयत के एहकाम पर पूरी तरह कारबन्द रेहते हुए क़ज़ा व् क़द्र पर राज़ी हो जाओ और खुदाए रहीम व् करीम का फज़ल व् करम चाहो। *अल्लाह तआलाने फरमाया: "बेशक सब्र करनेवलोंको बेहिसाब अज्र दिया जाएगा।"*

*✍🏽फुतूहल ग़ैब*  पेज 27
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खादिमे दिने नबी ﷺ
 *फ़ैयाज़ सैय्यिद*
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मदनी पंजसुरह

*दुरुद शरीफ के फ़ज़ाइल*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     हुज़ूरﷺ ने फ़रमाया : जिसने मुझ पर एक मर्तबा दुरुदे पाक पढ़ा अल्लाह उस पर 10 रहमते नाज़िल फ़रमाएगा और उसके लिये 10 नेकिया लिखेगा और उस के 10 दरजात बुलंद फ़रमाएगा और 10 गुनाह मिटा देगा।
*✍🏽मुअजमुल कबीर, 22/190*

     नबीए अकरमﷺ ने फ़रमाया : हर जुमुआ के दिन मुझ पर दुरुदे पाक की कसरत किया करो बेशक मेरी उम्मत का दुरुदे हर जुमुआ के दिन मुझ पर पेश किया जाता है, (क़यामत के दिन) लोगो में से मेरे ज़्यादा क़रीब वही शख्स होगा जिसने दुन्या में मुझ पर ज़्यादा दुरुद पढ़ा होगा।
*✍🏽सननुल कबीर, 3/353*

     सरकारﷺ का फरमान है : ऐ लोगो ! बेशक तुम में से बरोज़े क़यामत उस की दहशतो और हिसाब किताब से जल्द नजात पाने वाला वो शख्स जोगा जिसने दुन्या में मुझ पर कसरत से दुरुद पढ़ा होगा।

     आक़ाﷺ का फरमाने रहमत निशान है : मुझ पर कसरत से दुरुद पढ़ो बेशक तुम्हारा मुझ पर दुरुद पढ़ना तुम्हारे गुनाहो के लिये मग्फिरत है।
*✍🏽अलजामि-अलसगिर, 87*
*✍🏽मदनी पंजसुरह, 164*
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Saturday 13 August 2016

क़ब्र में आनेवाला दोस्त

*अमल ने काम आना है*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     दुसरो की दुन्या रोशन करने के लिये अपनी क़ब्र में अँधेरा मत कीजिये, दौलत व माल और अहलो अयाल की महब्बत में न नेकिया छोड़िये न गुनाहो में पड़िये के इन सब का साथ तो आँख बन्द होते ही छूट जाएगा जब के नेकिया انشاء الله عز وجل क़ब्र व आख़िरत बल्कि दुन्या में भी काम आएगी,
     मगर अफ़सोस ! के आज हमारी अक्सरिय्यत की तुवनाइया सुब्ह से ले कर शाम तक अपनी दुन्यवि ज़िन्दगी को ही बेहतर से बेहतर और मज़ेदार बनाने की दौड़धूप में सर्फ हो रही है, सामने आख़िरत की फ़िक्र बहुत कम दिखाई देती है,
     यद् रखिये ! नेक अमल की क़द्र आज नही तो कल ज़रूर मालुम हो जाएगी मगर उस वक़्त सिवाए हसरत के कुछ हाथ न आएगा, जैसा के....

*_मुर्दे की हसरत !_*
     हज़रते अता बिन यसारرضي الله تعالي عنه फरमाते है : जब मय्यित को क़ब्र में रखा जाता है तो सब से पहले उसका अमल आ कर उस की बाई रान को हरकत देता है और कहता है : में तेरा अमल हु। वो मुर्दा पूछता है : मेरे बाल बच्चे कहा है ? मेरी नेमते, मेरी दौलत कहा है ? तो अमल कहता है : ये सब तेरे पीछे रह गए और मेरे सिवा तेरी क़ब्र में कोई नही आया।
     वो मुर्दा हसरत से कहता है : ऐ काश ! में ने अपने बाल बच्चों, अपनी नेमतों और दौलतों के मुक़ाबले में तुझे तरजीह दी होती क्यू के तेरे सिवा मेरे साथ कोई नही आया।
*✍🏽शरह स्सुदुर, 111*
*✍🏽क़ब्र में आनेवाला दोस्त, 18*
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फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा


#01
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_बरकाते दुरुदो सलाम_*
     उम्मुल मुअमिनिन हज़रते आइशा सिद्दीक़ाرضي الله تعالي عنها फरमाती है : में वक़्ते आहार कुछ सी रही थी कि मेरे हाथ से सुई गिर गई और चराग बुझ गया। इतने में हुज़ूरﷺ तशरीफ़ ले आए, आप के चेहरए ज़ियारत के अनवार से सारा कमरा जगमगा उठा और सुई मिल गई।
     मेने अर्ज़ की य या रसूलल्लाहﷺ ! आप का चेहरए अनवर कितना रोशन है। तो आप ने इरशाद फ़रमाया : ऐ आइशा ! हलाकत है उस के लिये जो बरोज़े क़यामत मुझे न देखेगा। मेने अर्ज़ की : बरोज़े क़यामत आप की ज़ियारत से कौन महरूम रहेगा ? इरशाद फ़रमाया : बखिल। मेने पूछा : या रसूलल्लाहﷺ ! बखिल कौन है ?
     इरशाद फ़रमाया : जो मेरा नाम सुन कर मुझ पर दुरुदे पाक न पढ़े।

*फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा, 11*
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खादिमा ए दिने नबी ﷺ, *साइमा मोमिन*
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*नमाज़ की 6 शराईत*
#01
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*तहारत*
     नमाज़ी का बदन, लिबास और जिस जगह नमाज़ पढ़ रहा है उस जगह का हर किस्म की नजासत से पाक होना ज़रूरी है।

*सित्रे औरत*
     मर्द के लिये नाफ़ के निचे से ले कर घुटनो समेत बदन का सारा हिस्सा छुपा हुवा होना ज़रूरी है
     जब की औरत के लिये इन पाँच आज़ा : मुह की टिक्ली, दोनों हथेलिया और दोनों पाउ के तल्वो के इलावा सारा जिस्म छुपाना लाज़िमी है अलबत्ता अगर दोनों हाथ (गिट्टो तक) पाउ (तखनो तक) मुकम्मल ज़ाहिर हो तो एक मुफ़्ता बिहि क़ौल पर नमाज़ दुरुस्त है।
     अगर ऐसा बारीक कपड़ा पहना जिस से बदन का वो हिस्सा जिस का नमाज़ में छुपाना फ़र्ज़ है नज़र आए या जिल्द का रंग ज़ाहिर हो, नमाज़ न होगी।
     आजकल बारीक कपड़ो का रवाज बढ़ता जा रहा है। ऐसे बारीक कपड़े का पाजामा पहनना जिस से रान या सित्र का कोई हिस्सा चमकता हो इलावा नमाज़ के भी पहनना हराम है।
     मोटा कपड़ा जिस से बदन का रंग न चमकता हो मगर बदन से ऐसा चिपका हुवा हो की देखने से उज़्व की हैअत मालुम होती हो। ऐसे कपड़े से अगर्चे नमाज़ हो जाएगी मगर उस उज़्व की तरफ दुसरो को निगाह करना जाइज़ नहीं। ऐसा लिबास लोगो के सामने पहनना मना है और औरत के लिये ब दरजए औला मुमानअत।
     बाज़ ख्वातीन मलमल वग़ैरा की बारीक चादर नमाज़ में ओढ़ती है जिस से बालो की सियाही चमकती है या ऐसा लिबास पहनती है जिस से आज़ा का रंग नज़र आता है ऐसे लिबास में भी नमाज़ नहीं होती।
*नमाज़ के अहकाम, 155-156*
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खादिमे दिने नबी ﷺ, *मुहम्मद मोईन*
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तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान

 #05
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरए फातिहा_*
*तफसीर* #01
अल्लाह के नाम से शुरु जो बहुत मेहरबान रहमत वाला,

*हम्द यानि अल्लाह की बड़ाई बयान करन*
हर काम की शुरूआत में बिस्मिल्लाह की तरह अल्लाह की बड़ाई का बयान भी ज़रूरी है. कभी अल्लाह की तारीफ़ और उसकी बड़ाई का बयान अनिवार्य या वाजिब होता है जैसे जुमुए के ख़त्बे में, कभी मुस्तहब यानी अच्छा होता है जैसे निकाह के ख़ुत्बे में या दुआ में या किसी अहम काम में और हर खाने पीने के बाद. कभी सुन्नते मुअक्कदा (यानि नबी का वह तरीक़ा जिसे अपनाने की ताकीद आई हो)जैसे छींक आने के बाद.
*✍🏽तहतावी*

*रब्बिल आलमीन*
(यानि मालकि सारे जहां वालों का)में इस बात की तरफ इशारा है कि सारी कायनात या समस्त सृष्टि अल्लाह की बनाई हुई है और इसमें जो कुछ है वह सब अल्लाह ही की मोहताज है. और अल्लाह तआला हमेशा से है और हमेशा के लिये है, ज़िन्दगी और मौत के जो पैमाने हमने बना रखे हैं, अल्लाह उन सबसे पाक है, वह क़ुदरत वाला है. *रब्बिल आलमीन* के दो शब्दों में अल्लाह से तअल्लुक़ रखने वाली हमारी जानकारी की सारी मन्ज़िलें तय हो गई.
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खादिमे दिने नबी ﷺ, *मुहम्मद मोईन*
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मदनी पंजसुरह

*मिनटो में 4 खत्मे क़ुरआने पाक का षवाब*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     हज़रते अबू हुरैराرضي الله تعالي عنه से रिवायत है, हुज़ूरﷺ ने फ़रमाया : जो बाद फज्र 12 मर्तबा *कुलहुवल्लाहु अहद* (पूरी सूरत) पढ़ेगा गोया वो 4 बार पूरा क़ुरआन पढ़ेगा और उस दिन उसका ये अमल अहले ज़मीन से अफज़ल है जब कि वो तक़वा का पाबन्द रहे।
*✍🏽शोएबुल ईमान, 2/501*
*✍🏽मदनी पंजसुरह, 161*
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फुतूह अल ग़ैब

*सब्रो-शुक्रकी फज़िलत:*
(हिस्सा 2)

 *بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

       ये इनआम सिर्फ सब्र-व्-शुक्रके बदलेमें तुम्हे मिलेगा जो हर तरह इत्मिनान बक्ष होगा और तुम्हें गुनाहसे बचनेकी सलाहीयत-व-कुव्वत अता की जाएगी। अगर वो शैअ तुम्हारी किस्मतमे होगी तो तुम्हें बा बरकत और किफायत करनेवाला हिस्सा मिलेगा और तुम्हारे सब्र को शुक्रकी हैसियत मेँ बदल दिया जाएगा। क्यों के अल्लाह करीम ने शाकिरों को (शुक्र करनेवालों को) ज़ियादा अता फरमाने का वादा कर रख्खा है।

बाक़ी कल की पोस्ट में... इंसा अल्लाह

*✍🏽फुतूहल ग़ैब*  पेज 27
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खादिमे दिने नबी ﷺ
 *फ़ैयाज़ सैय्यिद*
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Friday 12 August 2016

फुतूह अल ग़ैब

*सब्रो-शुक्रकी फज़िलत:*

 *بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

      हज़रत कुत्बे रब्बानी गौसुस्समदानी رضي الله تعالي عنه ने फरमाया: जब उसरत (मुफलिसी,दुस्वारी) व नादानीकी कैफियत में तुम्हारे दिलमें निकाहकी ख्वाहीश पैदा हो और तुम इस बोज़को बरदाश्त करनेके काबिल भी न हो तो खुदावन्द करीमसे खुशहालीकी दुआ करो। उसीकी कुदरतने इन्सान के अंदर ये ख्वाहीश पैदा की है, वही रब्बे तआला या तो  उसके अस्बाब पैदा करेगा या तुम्हारी ख्वहिश को खत्म कर देगा। उसीकी तरफ तवज्जो मबजूल (मसरूफ) रखोगे तो तुम्हें उसके लिये न दुनियामें मुशक्कत उठानी पडेगी, न आखेरतमें तकलीफ होगी।
बाक़ी कल की पोस्ट में... इंसा अल्लाह

*✍🏽फुतूहल ग़ैब*  पेज 27
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मदनी पंजसुरह

*नमाज़ के बाद पढ़े जाने वाले अवराद*
#03
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     नबीए करीमﷺ ने फ़रमाया : जिसने नमाज़ के बाद ये कहा,
*سُبْحَانَ اللّٰهِ الْعَظِيْمِ وَبِحَمْدِهِ لَا حَوْلَ وَلَا قُوَّةَ اِلَّا بِاللّٰهِ*
*तर्जुमह :* पाक है अज़मत वाला रब और उसी की तारीफ़ हैंऔर उसी की अता से नेकी की तौफ़ीक़ और गुनाह से बचने की कुव्वत मिलती है।
तो वो मग्फिरत याफ्ता हो कर उठेगा।

     हुज़ूरﷺ ने फ़रमाया : जो हर फ़र्ज़ नमाज़ के बाद 10 मर्तबा *कुलहुवल्लाहु अहद* (पूरी सूरत) पढ़ेगा अल्लाह उसके लिये अपनी रिज़ा और मग्फिरत लाज़िम फरमा देगा।
*✍🏽तफ़सीरे दुर्रेमंसूर, 8/678*

     आक़ाﷺ ने फ़रमाया : जो शख्स हर नमाज़ के बाद
*سُبْحَانَ رَبِّكَ رَبِّ الْعِزَّةِ عَمَّا يَصِفُوْنَ o وَسَلٰمٌ عَلى الْمُرْسَلِيْنَ o وَالْحَمْدُ لِلّٰهِ رَبِّ الْعٰلَمِيْنَ o*
*तर्जुमह :* पाकी है तुम्हारे रब को इज़्ज़त वाले रब को उनकी बातो से और सलाम है पैगम्बरो पर और सब खुबिया अल्लाह को जो सारे जहान का रब है।
3 बार पढ़ेगा गोया उसने अज्र का बहुत बड़ा पैमाना भर लिया।
*✍🏽तफ़सीरे दुर्रेमन्सूर, 7/141*
*✍🏽मदनी पंजसुरह, 160*
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Thursday 11 August 2016

क़ब्र में आनेवाला दोस्त

*क़यामत के दिन अहलो अयाल का दावा*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     मारवी है के "मुर्दे से तअल्लुक़ रखने वालो में पहले उसकी ज़ौजा और उसकी औलाद है, मगर ये सब क़यामत में अल्लाह की बारगाह में अर्ज़ करेंगे : ऐ हमारे रब ! हमे इस शख्स से हमारा हक़ ले कर दे, क्यू के इसने कभी हमे दीनी उमूर नही सिखाए और ये हमे हराम खिलाता था जिसका हमे इल्म नही था। चुनांचे उस शख्स से उनका बदला लिया जाएगा।
     एक और रिवायत में है के, बन्दे को मीज़ान के पास लाया जाएगा, फ़रिश्ते पहाड़ के बराबर उसकी नेकिया लाएंगे तो उस से उस के अयाल की खबर गिरी और खिदमत के बारे में सुवाल होगा और माल के बारे में पूछा जाएगा के कहा से हासिल किया ? और कहा खर्च किया ? हत्ता के उस के तमाम आमाल उनके मुतालबात में खर्च हो जाएगे और उसके लिये कोई नेकी बाकी नही रहेगी, उस वक़्त फ़रिश्ते आवाज़ देंगे : ये वो शख्स है जिस की नेकिया उस के अहलो अयाल ले गए और वो अपने आमाल के साथ गिरवी है।
*✍🏽क़ब्र में आनेवाला दोस्त, 15*
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सिरते मुस्तफा


*_गज़्वाए बनू नज़ीर_*
हिस्सा-05
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     उन दरख्तो को काट देना ही बेहतर है इस मौके पर सूरए हशर की ये आयत उतरी :
*जो दरख्त तुम ने काटे या जिन को उन की जड़ो पर क़ाइम छोड़ दिये ये सब अल्लाह के हुक्म से था ताकि खुदा फासिक़ो को रुस्वा करे*
     मतलब ये है कि मुसलमानो में जो दरखत काटने वाले है उन का अमल भी दुरस्त है और जो काटना नहीं चाहते वो भी ठीक कहते है क्यू कि कुछ दरख्तो को काटना और कुछ को छोड़ देना ये दोनों अल्लाह के हिक्म और उस की इजाज़त से है।
     बहर हाल आखीरे कार मुहासरे से तंग आ कर बनू नज़ीर के यहूदी इस बात पर तैयार हो गए कि वो अपना अपना मकान और किला छोड़ कर इस शर्त पर मदीने से बाहर चले जाएंगे कि जिस क़दर माल व अस्बाब वो ऊंटो पर ले जा सके ले जाए।
     हुज़ूरﷺ ने यहूदियो की इस शर्त को मंज़ूर फरमा लिया और बनू नज़ीर के सब यहूदी 600 ऊंटो पर अपना माल व सामान लाद कर एक जुलुस की शक्ल में गाते बजाते हुए मदीना से निकले कुछ तो "खैबर" चले गए और ज़्यादा तादाद में मुल्क शाम जा कर "अज़रआत" और "उरैहा" में आबाद हो गए।
     इन लोगो के चले जाने के बाद इन के घरो की मुसलमानो ने जब तलाशी ली तो 50 लिहे की टोपिया, 50 ज़ीरहे, 340 तलवारे निकली, जो हुज़ूरﷺ के क़ब्ज़े में आई।
     अल्लाह ने बनू नज़ीर के यहूदियो की इस जिला वतनी का ज़िक्र सूरए हशर में इस तरह फ़रमाया कि :
*अल्लाह वोही है जिस ने काफ़िर किताबियो को उन के घरो से निकाला उन के पहले हशर के लिये, ऐ मुसलमान ! तुम्हे ये गुमान न था कि वो निकलेंगे और वो अमझते थे कि उन के किले उन्हें अल्लाह से बचा लेंगे तो अल्लाह का हुक्म उनके पास आ गया जहा से उन को गुमान भी न था और उस ने उन के दिलो में खौफ डाल दिया कि वो अपने घरो को खुद अपने हाथो से और मुसलमानो के हाथो से वीरान करते है तो इब्रत पकड़ो ऐ निगाह वालो !*
*✍🏽सिरते मुस्तफा, 300*
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तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान


हिस्सा-03
*_सूरए फातिहा_*
हिस्सा-03
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*इस्तिआजा*
     क़ुरआन शरीफ़ पढ़ने से पहले “अऊज़ो बिल्लाहे मिनश शैतानिर रजीम” (अल्लाह की पनाह मांगता हूँ भगाए हुए शैतान से) पढ़ना प्यारे नबी का तरीक़ा यानी सुन्नत है. (ख़ाज़िन) लेकिन शागिर्द अगर उस्ताद से पढ़ता हो तो उसके लिए सुन्नत नहीं है. (शामी) नमाज़ में इमाम और अकेले नमाज़ी के लिये सना यानी सुब्हानकल्लाहुम्मा पढ़ने के बाद आहिस्ता से “अऊज़ो बिल्लाहे मिनश शैतानिर रजीम” पढ़ना सुन्नत हैं.

*तस्मियह*
     बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम क़ुरआने पाक की आयत है मगर सूरए फ़ातिहा या किसी और सूरत का हिस्सा नहीं है, इसीलिये नमाज़ में ज़ोर के साथ् न पढ़ी जाए.
     बुखारी और मुस्लिम शरीफ़ में लिखा है कि प्यारे नबी हुजू़र और हज़रत सिद्दीक़ और फ़ारूक़ (अल्लाह उनसे राज़ी) अपनी नमाज़ “अलहम्दोलिल्लाहेरब्बिलआलमीन“ यानी सूरए फ़ातिहा की पहली आयत से शुरू करते थे. तरावीह (रमज़ान में रात की ख़ास नमाज़) में जो ख़त्म किया जाता है उसमें कहीं एक बार पूरी बिस्मिल्लाह ज़ोर से ज़रूर पढ़ी जाए ताकि एक आयत बाक़ी न रह जाए.
     क़ुरआन शरीफ़ की हर सूरत बिस्मिल्लाह से शुरू की जाए, सिवाय सूरए बराअत या सूरए तौबह के. सूरए नम्ल में सज्दे की आयत के बाद जो बिस्मिल्लाह आई है वह मुस्तक़िल आयत नहीं है बल्कि आयत का टुकड़ा है. इस आयत के साथ ज़रूर पढ़ी जाएगी,
     आवाज़ से पढ़ी जाने वाली नमाज़ों में आवाज़ के साथ और खा़मोशी से पढ़ी जाने वाली नमाज़ों में ख़ामोशी से.
     हर अच्छे काम की शुरूआत बिस्मिल्लाह पढ़कर करना अच्छी बात है. बुरे काम पर बिस्मिल्लाह पढ़ना मना है.
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अब्लाक़ घोड़े सुवार

*क़ुरबानी के मसाइल*
*_गोश्त के आज्ज़ा जो नही खाए जाते_*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     आला हज़रत अलैरहमा फरमाते है : हलाल जानवर के सब आज्ज़ा हलाल है मगर बाज़ कि हराम या ममनुअ या मकरूह है,
रगो का खून
पित्ता
फुकना (यानी मसाना)
अलामाते मादा व नर
बैज़े (यानी कपुरे)
गुदुद
हराम मग्ज़
गर्दन के दो पठ्ठे कि शानो तक खिचे होते है
जिगर (यानी कलेजी) का खून
तिल्ली का खून
गोश्त का खून की बादे ज़बह गोश्त में से निकलता है
दिल का खून
पित यानि वो ज़र्द पानी कि पित्ते में होता है
नाक की रतुबत, कि भेड़ में अक्सर होती है
पाखाने का मक़ाम
ओझड़ी
आंते
नुत्फा (मनी), वो नुत्फा कि खून हो गया, वो नुत्फा कि गोश्त का लोथड़ा हो गया, वो नुत्फा की पूरा जानवर बन गया और मुर्दा निकला या बे ज़बह मर गया।
     समझदार कस्साब बाज़ ममनुआ चीज़े निकल दिया करते है मगर बाज़ में इन को भी मालूमात नही होती या बे एहतियाती बरतते है।
*✍🏽अब्लाक़ घोड़े सुवार, 37*
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मदनी पंजसुरह

*नमाज़ के बाद पढ़े जाने वाले अवराद*
हिस्सा-02
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     हर नमाज़ के बाद पेशानी के अगले हिस्से पर हाथ रख कर पढ़े :
*بِسْمِ اَللّٰهِ الَّذِىْ لَا اِلٰهَ اِلَّا هُوَ الرَّحْمٰنُ الرَّحْيْمُ، اَللّٰهُمَّ اذْهِبْ عَنِّى الْهَمَّ وَالْحُزْنَ*
*तर्जुमह :* अल्लाह के नाम से शुरू जिसके सिवा कोई मअबूद नही वो रहमान व रहीम है। ऐ अल्लाह मुझ से गम व मलालत दूर फरमा।
(पड़ने के बाद हाथ खीच कर पेशानी तक लाए) तो हर गम व परेशानी से बचे। आला हज़रत ने इस दुआ के आखिर में मज़ीद इन अलफ़ाज़ का इज़ाफ़ा फ़रमाया है, *وَعَنْ اَهْلِ السَّبَّة*  यानी और अहले सुन्नत से।

     असर व फज्र के बाद बगैर पाउ बदले, बगैर कलाम किये
*لَا اِلٰهَ اِلَّا اللّٰهُ وَحْدَهُ لَاشَرِيْكَ لَهُ لَهُ الْمُلْكُ وَلَهُ الَحَمْدُ بِيَدِهِ الْخَيْرُ يُحْيِىْ وَيُمِيْتَ وَهُوَ عَلٰى كُلِّ شَىْءٍ قَدِيْرٌ*
*तर्जुमह :* अल्लाह के सिवा कोई मअबूद नही, वो तन्हा है, उसका कोई शरीक नही, उसके लिये मुल्क व हम्द है, उसी के हाथ में खैर है, वो ज़िन्दा करता है और मौत देता है और वो हर शै पर क़ादिर है।
10 बार पढ़िये
*✍🏽बहारे शरीअत, 3/107*
*✍🏽मदनी पंजसुरह, 159*
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फुतूह अल ग़ैब

*ज़ातकी नफी मुखालिफते नफ्स:*
(हिस्सा 10)
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

        खलकतके निगेहबान और खुदा के नाइब और दोस्त है अलयहिमुस्सलम ।
इसी हालतमे अमरकी इत्तेबा यही है के बंदा खुद अपनी ज़ातकी नफी (किसी चीज़के वजूद से इन्कार ) कर दे, अपने हौल-व-कुव्वतसे बेज़ार हो जए और दुनिया-व-आखेरतकी किसी चिज़का ख्वाहिशमंद न रहे।                                                                                                                        
     फिर तुम मुल्कके गुलाम नही, मलिकुल मुल्क के बंदे बन जओगे। ख्वाहिशातके नहि, अमर हकके गुलाम होगे और हर तरह तुम्हारा मआमला इस तरह खुदावंदे तआला के सुपुर्द हो जाएगा , जेसे शीरख्वार बच्चा दायाके हाथो मे , नेहलाया हुआ मुरदा गुस्सलके हाथो मे, या बेहोश मरीज़ तबीबके रुबरु होता है। इस तरह तुम अव अमरो नवाही की पैरवी के अलावा दिगर तमाम उमूर से हर तरह बे तआल्लुक हो जाओगे
                                                                                                                                               बाक़ी कल की पोस्ट में... इंसा अल्लाह
*✍🏽फुतूहल ग़ैब  पेज 26*
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Wednesday 10 August 2016

क़ब्र में आनेवाला दोस्त

*अपने आप को हलाकत में डालने वाला बद नसीब*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     हुज़ूरﷺ ने इरशाद फ़रमाया : लोगो पर एक ज़माना ऐसा आएगा के मोमिन को अपना दीन बचाने के लिये एक पहाड़ से दूसरे पहाड़ और एक गार से दूसरे गार की तरफ भागना पड़ेगा तो उस वक़्त रोज़ी अल्लाह की नाराज़ी ही से हासिल की जाएगी फिर जब ऐसा ज़माना आ जाएगा तो आदमी अपने बीवी बच्चों के हाथो हलाक होगा, अगर उस के बीवी बच्चे न हो तो वो अपने वालिदैन के हाथो हलाक होगा, अगर उस के वालिदैन न हुए तो वो रिश्तेदारो और पडोसियो के हाथो हलाक होगा।
     सहाबए किराम ने अर्ज़ की : या रसूलल्लाहﷺ ! वो कैसे ? फ़रमाया : वो उसे माल की कमी का ताना देंगे तो आदमी अपने आप को हलाकत में डालने वाले कामो में मसरूफ़ कर देगा। (तो गोया उन्ही के हाथो हलाक हुआ)
*✍🏽अल तरगिब् वल तरहिब 3/299*

     अपने घर वालो को हराम कमा कर खिलाने वालो को संभल जाना चाहिए के मैदाने महशर, के जहा एक नेकी की सख्त हाजत होगी, यही अपने उस से क्या सुलूक करेंगे ?
ये इन्शा अल्लाह कल की पोस्ट में....
*✍🏽क़ब्र में आनेवाला दोस्त, 15*
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खादिमे दिने नबी ﷺ, *मुहम्मद मोईन*
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सिरते मुस्तफा ﷺ


_गज़्वाए बनू नज़ीर_*
        हिस्सा-04
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

चुनांचे अल्लाह ने इन दगाबाज़ो के बारे में क़ुरआन में इरशाद फ़रमाया :
*इन लोगो की मिषाल शैतान जेसी है जब इस ने आदमी से कहा कि तू कुफ़्र कर फिर जब उस ने कुफ़्र किया तो बोला कि में तुझ से अलग हु में अल्लाह से डरता हु जो सारे जहान का पालनेवाला है।*
पारह 28, सूरतुल हशर, 16

     यानी जिस तरह शैतान आदमी को कुफ़्र पर उभारता है लेकिन जब आदमी शैतान के वर-गलाने से कुफ़्र में मुब्तला हो जाता है तो शैतान चुपके से खिसक कर पीछे हट जाता है इसी तरह मुनाफ़ीक़ो ने बनू नज़ीर के यहूदियो को शह दे कर दिलेर बना दिया और अल्लाह के हबीबﷺ से लड़ा दिया लेकिन जब बनू नज़ीर के यहूदियो को जंग का सामना हुवा तो मुनाफ़िक़ चुप कर अपने घरो में बैठ रहे।
     हुज़ूरﷺ ने किल्ले के मुहसरे के साथ किल्ले के आस पास खजूरो के कुछ दरख्तो को भी कटवा दिया क्यू कि मुमकिन था कि दरख्तो के झुंड में यहूदी छुप कर इस्लामी काशकर पर छापा मारते और जंग में मुसलमानो को दुश्वारी हो जाती।
     इन दरख्तो को काटने के बारे में मुसलमानो के दो गुरौह हो गए, कुछ लोगो का ये ख्याल था कि ये दरख्त न काटे जाए क्यू कि फ़त्ह के बाद ये सब दरख्त माले गनीमत बन जाएंगे और मुसलमान इन से नफा उठाएंगे और कुछ लोगो का ये कहना था कि दरख्तो के झुंड को काट कर साफ़ कर देने से यहूदियो की कमीन गाहों को बर्बाद करना और इन को नुक़सान पबुचा का गैज़ो गज़ब में डालना मक़सूद है, लिहाज़ा इन दरख्तो को काट देना ही बेहतर है।

     इस मौके पर सूरए हशर की एक आयत उतरी जो इन्शा अल्लाह अगली पोस्ट में हम देखेंगे....
*✍🏽सिरते मुस्तफा, 299*
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*नमाज़ का तरीका*
हिस्सा-04
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     सज्दे से इस तरह उठिये की पहले पेशानी फिर नाक फिर हाथ उठे।
     *मर्द :* फिर सीधा कदम खड़ा करके उसकी उंगलिया किब्ला रुख कर दीजिये और उल्टा क़दम बिछा कर उस पर खूब सीधे बेथ जाइये, और हथेलिया बिछा कर रानो पर घुटनो के पास रखिये की दोनों हाथो की उंगलिया किब्ले की जानिब और उंगलियो के सिरे घुटनो के पास हो।
     *औरत :* दोनों पाउ सीधी तरफ निकाल दीजिये और उलटी सुरीन पर बैठिये और सीधा हाथ सीधी रान के बिच में और उल्टा हाथ उलटी रान रान के बिच में रखिये।

     दोनों सजदों के दरमियान बैठने को जल्सा कहते है।
     फिर कम अज़ कम एक बार सुब्हान अल्लाह कहने की मिक़दार ठहरिये
     यहा "अल्लाहुमग-फिरलि" (यानि ए अल्लाह मेरी मगफिरत फरमा) पढ़ना मुस्तहब है
     फिर अल्लाहु अकबर कहते हुए पहले सज्दे की तरह दूसरा सज्दा कीजिये।
*नमाज़ के अहकाम, 151*
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तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान


हिस्सा-02
*_सूरए फातिहा_*
हिस्सा-02
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरए फातिहा के नाम_*
     इस सूरत के कई नाम हैं – फा़तिहा, फा़तिहतुल किताब, उम्मुल कु़रआन, सूरतुल कन्ज़, काफि़या, वाफ़िया, शाफ़िया, शिफ़ा, सबए मसानी, नूर, रुकै़या, सूरतुल हम्द, सूरतुल दुआ़ तअलीमुल मसअला, सूरतुल मनाजात सूरतुल तफ़वीद, सूरतुल सवाल, उम्मुल किताब, फा़तिहतुल क़ुरआन, सूरतुस सलात.

*_सूरतुल फ़ातिहा की खूबियाँ_*
    हदीस की किताबों में इस सूरत की बहुत सी ख़ूबियाँ बयान की गई है. हुजू़रﷺ ने फरमाया तौरात व इंजील व जु़बूर में इस जैसी सूरत नहीं उतरी.
*✍🏽तिरमिज़ी*
     एक फ़रिश्ते ने आसमान से उतर कर हुजू़रﷺ पर सलाम अर्ज़ किया और दो ऐसे नूरों की ख़ूशख़बरी सुनाई जो हुज़ूरﷺ से पहले किसी नबी को नहीं दिये गए. एक सूरए फ़ातिहा दूसरे सुरए बक्र की आख़िरी आयतें.
*✍🏽मुस्लिम शरीफ़*
     सूरए फा़तिहा हर बीमारी के लिए दवा है.
     सूरए फ़ातिहा सौ बार पढ़ने के बाद जो दुआ मांगी जाए, अल्लाह तआला उसे क़ुबूल फ़रमाता है.
*✍🏽दारमी*

*_सूरए फ़ातिहा में क्या क्या है?_*
     इस सूरत में अल्लाह तआला की तारीफ़, उसकी बड़ाई, उसकी रहमत, उसका मालिक होना, उससे इबादत, अच्छाई, हिदायत, हर तरह की मदद तलब करना, दुआ मांगने का तरीक़ा, अच्छे लोगों की तरह रहने और बुरे लोगों से दूर रहने, दुनिया की ज़िन्दगी का ख़ातिमा, अच्छाई और बुराई के हिसाब के दिन का साफ़ साफ़ बयान है.
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