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तर्के जमाअत की वईद

⭕तर्के जमाअत की वईदे⭕
          Part~1
👳🏼हज़रते सय्यिदुना उबैदुल्लाह बिन उमर कवारीरी फरमाते है
मेने हमेशा ईशा की नमाज़ बा जमाअत अदा की, मगर अफ़सोस ! एक मर्तबा मेरी ईशा की नमाज़ बा जमाअत फौत हो गई। इसका सबब ये हुआ की मेरे यहाँ एक मेहमान आया, उसकी मेहमान नवाज़ी में लगा रहा। फरागत के बाद जब मस्जिद पंहुचा तो जमाअत हो चुकी थी। अब में सोचने लगा की ऐसा कौनसा अमल किया जाए जिस से इस नुक्शान की तलाफि हो। यका यक मुझे अल्लाह के हबीब का ये फरमान याद आया "बा जमाअत नमाज़ मुन्फरिद की नमाज़ पर 21 दरजे फ़ज़ीलत रखती है। इस तरह 25 और 27 दरजे फ़ज़ीलत की भी हदिष भी मरवी है।
📕शाही बुखारी

👉🏽मेने सोचा अगर में 27 मर्तबा नमाज़ पढ़ लू तो शायद जमाअत फौत हो जाने से जो कमी हुई वो पूरी हो जाए। चुनांचे मेने 27 मर्तबा ईशा की नमाज़ पढ़ी, फिर मुझे नींद आ गई। मेने अपने आप को चन्द घोड़े सुवरो के साथ देखा, हम सब कही जा रहे थे। इतने में एक घोड़े सुवार ने मुझसे कहा : "तुम अपने घोड़े को मशक्कत में न डालो, बेशक तुम हमसे नहीं मिल सकते।" मेने कहा में आपके साथ क्यू नहीं मिल सकता ? कहा : इस लिए की हम ने ईशा की नमाज़ बा जमाअत अदा की है।
📗उयुनूल हिकायत, जी, 2 स. 94

🙏🏽मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! इससे मालूम हुआ की जमाअत छूट जाने के बाद अगर कोई उस नमाज़ को 27 बार पढ़ भी ले तब भी बा जमाअत नमाज़ पठने के षवाब के बराबर नहीं पहुच सकता। यक़ीनन बा जमाअत नमाज़ की अपनी ही बरकतें है।

📚तर्के जमाअत की वईद, स. 3
🚫जमाअत छोड़ने की सजा🚫
              post~2

✅नमाज़ की फर्जीयत
👉🏽मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ❗ जमाअत छूट जाने के बाद अगर कोई 27 बार पढ़ भी ले तब भी बा जमाअत नमाज़ पढ़ने के षवाब के बराबर नहीं पहुच सकता।
👉🏽यक़ीनन बा जमाअत नमाज़ पढ़नेकी अपनी ही बरकतें है जो बगैर जमाअत के हासिल नहीं हो सकती। लिहाजा हमें चाहिए की बा जमाअत नमाज़ की अदाएगी के लिए वक़्त की पाबन्दी का खास ख्याल रखे और अपने काम, अहलो इयाल और दीगर मसरुफिय्यत पर नमाज़ को फौकिय्यत दे। क्यू की कोई अमल नमाज़ से बढ़ कर अहमिय्यत का हामिल नहीं हो सकता।
☝🏽अल्लाह पारह 28 सूरतुल मुनाफिकुन् की आयत 9 में इर्शाद फरमाता है।
📢ऐ ईमान वालो तुम्हारे माल न तुम्हारी अवलाद कोई चीज़ तुम्हे अल्लाह के ज़िक्र से गाफिल न करे और जो ऐसा करे तो वोही लोग नुक्शान में है।
👳🏼मुफ़स्सिरीने किराम की एक जमाअत का कौल है की इस आयते मुबारका में ज़िकृल्लाह से मुराद 5 नमाज़े है लिहाज जो अपने माल सामान खरीदो फरोख्त या पेशे या अपनी अवलाद की वज्ह से नमाज़ों को इन के अवकात में अदा करने से ग़फ़लत इख़्तियार करेगा वो ख़सारा पाने वालो में से होगा।

📚हवाला👇🏾👇🏾
तर्के जमाअत की वईद, स. 4

🚫जमाअत छोड़ने की सजा🚫
              Post~3
🙏🏽नमाज़ जमाअत से अदा करो
👉🏽क़ुरआने पाक और अहादिसे मुबारका में जहा भी नमाज़ की अदाएगी का हुक्म आया है, उससे मुराद नमाज़ को तमाम तर फराइज़ो वाजिबात के साथ अदा करना है। और नमाज़ के वाजिबात में से ये भी है की उसे जमाअत के साथ पढ़ा जाए।

📗परह 1 सूरतुल बक़रह, आयत 43 में इर्शाद होता है :👇🏿
👉🏿और नमाज़ काइम रखो और ज़कात दो और रुकूअ करने वालो के साथ रुकूअ करो।
✒तफ़्सीरे ख़ाज़िन में है : इस आयत में नमाज़े बा जमाअत अदा करने पर उभारा गया है।

📗एक और मक़ाम पर अल्लाह फरमाता है : पारह 29 सूरतुल कलम, आयत 42-43 👇🏿
👉🏿जिस दिन एक साक खोली जाएगी (जिसके माना अल्लाह ही जनता है) और सजदे को बुलाए जाएंगे तो न कर सकेंगे, नीची निगाहे किये हुवे उन पर ख्वाहि चढ़ रही होगी और बेशक दुन्या में सजदे के लीये बुलाए जाते थे जब तंदुरस्त थे।
👳🏼हज़रते इब्राहिम तैमी इस फरमान की तफ़्सीर में फरमाते है : वो कियामत का दिन होगा, उस दिन इन्हें नदामत की जिल्लत ठापे होगी, क्यू की इन्हें दुन्या में जब सजदों की तरफ बुलाया जाता तो ये तंदुरस्त होने के बा-वुजूद नमाज़ में हाज़िर न होते।
👳🏼हज़रते काबुल अहबारी इर्शाद फरमाते है : खुदा की कसम ! ये आयते मुबारका जमाअत से पीछे रह जाने वालो ही के बारे में नाज़िल हुई है और बिगैर उज़्र के जमाअत तर्क कर देने वालो के लीये इससे जियादा सख्त कौन सी वईद होगी।

हवाला👇🏿
📚तर्के जमाअत की वईदे, स. 6
🚫जमाअत छोड़ने की सजा🚫
              Post~4
🌴हुज़ूर ﷺ फरमाते है
👉🏽अगर नमाज़े बा जमाअत से पीछे रह जाने वाला ये जानता की इस रह जाने वाले के लीये क्या है ? तो घिसटते हुवे हाज़िर होता।
🌴हुज़ूर ﷺ फरमाते है
👉🏽किसी गाऊं, शहर या जंगल में 3 शख्स हो और बा जमाअत नमाज़ केइम न की गई मगर उन पर शैतान मुसल्लत हो गया। तो जमाअत को लाज़िम जानो की भेड़िया उस बकरी को खाता है जो रेवड़ से दूर हो। 👇🏿
शारेहे बुखारी हज़रते अल्लामा बदरुद्दीन एनी हनफ़ी फरमाते है
👆🏿इस हदिष की मुराद ये है की तारीके जमाअत पर शैतान ग़ालिब आ जाता है और उस पर अपना कब्ज़ा जमा लेता है, जैसे भेड़िया रेवड़ से अलग होने वाली बकरी पर काबिज़ हो जाता है।  और हदिष में 3 का ज़िक्र इस लिए है की जमआत कम से कम 3 पर बोली जाती है और 3 शख्सों के ज़रिए ही जुमुआ काइम हो सकता है, नीज़ इस हदिष से ये बात समझ आती है की अगर दो शख्स किसी जगह में हो और वो जुदा जुदा नमाज़ पढ़े तो गुनाहगार नहीं होंगे।

हवाला👇🏿
तर्के जमाअत की वईद, स. 7
🚫जमाअत छोड़ने की सजा🚫
              Post~5

👉🏿मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ने से जहा मुसलमानो की आपस में मुहब्बत व मुवानसत में इज़ाफ़ा होता है वही नमाज़ का षवाब भी कइ गुना बढ़ जाता है। अहादिसे मुबारका में कई मकामात पर जमाअत से नमाज़ पढ़ने वाले के लीये कसीर षवाब और कई इनामात की बिशारते वारिद हुई है।
🌴4 फरमाने मुस्तफा ﷺ
👉🏿जिसने कामिल वुज़ु किया, फिर फ़र्ज़ नमाज़ के लीये चला और इमाम की इक्तिदा में फ़र्ज़ नामाज़ पढ़ी, उसके गुनाह बख्श दिये जाएंगे।
👉🏿अल्लाह बा जमाअत नमाज़ पढ़ने वालो को महबूब रखता है।
👉🏿बा जमाअत नमाज़ तन्हा नमाज़ से 27 दरजे अफ़्ज़ल है।
जब बन्दा बा जमाअत नमाज़ पढ़े, फिर अल्लाह से अपनी हाजत का सुवाल करे तो अल्लाह इस बात से हया फरमाता है की बन्दा हाजत पूरी होने से पहले वापस लौट जाए।
🌴मुस्तफा ﷺ ने फ़रमाया
जो अल्लाह के लीये 40 दिन बा जमाअत नमाज़ पढ़े और तकबिरे उला पाए, उसके लिये दो आज़ादियाँ लिख दी जाएगी,
नार यानी दोज़ख से
निफाक से।
👳🏼इमाम शरफुद्दीन हुसैन बिन मुहम्मद तीबी फरमाते है
निफाक से बराअत का मतलब ये है की वो दुन्या में मुनाफिक जैसे आमाल से महफूज़ रहेगा और उसे मुखलिसिन जैसे आमाल करने की तौफ़ीक़ मिलेगी। नीज़ आख़िरत में नारे जहन्नम से अम्न में रहेगा।
नमाज़े बा जमाअत की इस कदर बरकतों और फाज़िलातो के बा वुज़ूद सुस्ती करना और जमाअत से नमाज़ न पढ़ना किस कदर ताजजुब ख़ेज़ है ?
😞मगर अफ़सोस ! साद करोड़ अफ़सोस ! जमाअत की परवा नहीं की जाती, बल्कि नमाज़ भी अगर कज़ा हो जाए तो कोई रन्ज नहीं।
🙏🏽हमें अपने अन्दर नमाज़े बा जमाअत की अहमियत और इस की महब्बत पैदा करे और अपने बच्चों को भी शुरुअ से ही जमाअत से नमाज़ पढ़ने की आदत डाले।

हवाला👇🏿
📚तर्के जमाअत की वईदे, स. 9
❌जमाअत छोड़ने की सजा❌
             Post~6

💟अकल्मन्द कौन ?
👉🏿मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! सब इबादतों में अहम इबादत नमाज़ है और येही जरीअए नजात और जन्नत की कुन्जी है। इस लीये नमाज़ की भरपूर हिफाज़त करनी चाहिये और इसे वक़्त पर जमाअत के साथ अदा करना चाहिये।
👉🏿उमुमन देखा जाता है की लोग घर में ही नमाज़ पढ़ लेते है और मस्जिद की हाज़िरी से कतराते और महज़ सुस्ती की वज्ह से षवाबे अज़ीम से महरूम हो जाते है। याद रखिये ! हर आकिल, बालिग़, आज़ाद, क़ादिर पर जमाअत वाजिब है, बिला उज़्र एक बार भी जमाअत छोड़ने वाला गुनाहगार और मुस्तहिके सजा है और कई बार तर्क करे तो फ़ासिक़ मर्दुदश्शहादा (यानी उस की गवाही मक़्बूल नहीं) और उस को सख्त सज़ा दी जाएगी। अगर पड़ोसियों ने सुकूत किया (खामोश रहे) तो वो भी गुनेहगार हुवे।
📗बहारे शरीअत, 1/582
👳🏼अबू ज़ुबैर फरमाते है : मेने हज़रत जाबिर से सुना, हमारे घर मस्जिद से दूर थे तो हमने अपने घरो को फरोख्त करने का इरादा किया ताकि हम मस्जिद के करीब हो जाए, तो रसूले अकरम ने हमें मना फरमा फिया और इर्शाद फ़रमाया : तुम्हे हर कदम के बदले षवाब मिलता है।
📗शाहीह मुस्लिम, 335
👳🏼सहाबाए किराम में बा जमाअत नमाज़ अदा करने का कितना ज़बरदस्त जज़्बा था, वाकई पाचो वक्त एक एक मिल का सफ़र कर के आना आसान काम नहीं।
😞इसके बर अक्स हमारा हाल ये है की हमारे घरो के करीब मसाजिद मौजूद है, मस्जिद दूर हो और पैदल जाने में सुस्ती हो तो गाडी, मोटर साइकल के ज़रिए जाने की तरकीब बन सकती है। मस्जिदों में भी ज़रूरी सहुलियात मुयस्सर है मगर बद किस्मती से फिर भी जमाअत के साथ नमाज़ नहीं पढ़ते।

हवाला 👇🏿
📚तर्के जमाअत की वईद, स. 14
❌जमाअत छोड़ने की सजा❌
              Post~7

🌴हुज़ूर ﷺ ने बाज़ नमाज़ों में कुछ लोगो को गैर हाज़िर पाया तो इर्शाद फ़रमाया :
🔥में चाहता हु की किसी शख्स को हुक्म दू की वो नमाज़ पढ़ाए, फिर में उन लोगो की तरफ जाऊ जो नमाज़े बा जमाअत से पीछे रह जाते है और उन पर उनके घर जला दू।
📗शाहीह मुस्लिम
👉🏾मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! गौर कीजिये हमारे आक़ा ﷺ जो अपनी उम्मत से बेहद महब्बत फरमाते और सारी सारी रात उम्मत की बख्शीश व मगफिरत के लीये आंसू बहाते रहे, ऐसे शफ़ीक़ व करीम आक़ा ने शाने जलाल में फ़रमाया :
🔥 जो लोग जमाअत से नमाज़ नहीं पढ़ते, मेरा जी चाहता है की उनके घरो को आग लगा दू।

हवाला👇🏿
📚तर्के जमाअत की वईदे, स. 16

अल्लाह عزوجل अपने हबीब ﷺ के सदके के हम सभी को बा जमाअत नमाज़ अदा करने का शोख ओ जौक अता करे।
आमीन.....

❌जमाअत छोड़ने की सजा❌
              Post~8

💎नमाज़ सल्तनत से बेहतर💎
👳🏼हज़रते मैमून बिन मेहरान मस्जिद में आए, उनसे कहा गया जमाअत खत्म हो गई और लोग जा चुके है ये सुन कर उन की ज़ुबांन पर बे साख्ता जारी हुवा إ نَّا لِلّهِ وَإِنَّـا إِلَيْهِ رَاجِعونَ फिर फ़रमाया :
👉🏿मेरे नज़दीक बा जमाअत नमाज़ की फ़ज़ीलत इराक की हुक्मरानी से ज्यादा है।
📗मुकाशफतुल कुलूब, स. 268

🌴बाग़ मसाकिन पर सदका कर दिया🌴
👳🏼हज़रते अब्दुल्लाह बिन उमर फरमाते है : हज़रते उमर फारूक अपने एक बाग़ की तरफ तशरीफ़ ले गए, जब वापस हुवे तो लोग नमाज़े असर अदा कर चुके थे, ये देख कर आप ने पढ़ा إ نَّا لِلّهِ وَإِنَّـا إِلَيْهِ رَاجِعونَ और इर्शाद फ़रमाया :
👉🏿मेरी असर की जमाअत फौत हो गई है, लिहाजा में तुम्हे गवाह बनाता हु की मेरा बाग़ मसाकिन पर सदका है ताकि ये इस काम का कफ़्फ़ारा हो जाए।

☝🏽अल्लाहु अकबर ! मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! देखा आपने हमारे बुज़ुर्गो के नज़दीक जमाअत की किस कदर अहमिय्यत थी, उनके नज़दीक माल व औलाद का तलफ़ (ज़ाएअ) हो जाने से बड़ी मुसीबत नमाज़े बा जमाअत छूट जाना था।
☝🏽अल्लाह عزوجل हमारे दिलो में भी ऐसा ज़ौक़ ओ शोक अता करे।
आमीन........

📚तर्के जमाअत की वईद, स. 19

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