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Saturday 25 November 2017

*ख़ुत्बा सुनने व बैठने के एहकाम* #04
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     ख़ुत्बा के वक़्त भलाई का हुक्म करना भी हराम है, बल्कि ख़ुत्बा हो रहा हो तब दो हर्फ़ बोलना भी मना है। किसी को सिर्फ "चुप" कहना तक मना और लग्व (व्यर्थ) है।
     सहाह सित्ता (हदिष की 6 सहीह किताबों) में हज़रते अबू हुरैरा رضي الله عنه से रिवायत है कि हुज़ूर صلى الله عليه وسلم फ़रमाते है कि बरोज़े जुमुआ ख़ुत्ब ऐ इमाम के वक़्त तूँ दूसरे से कहे "चुप" तो तूने लग्व (व्यर्थ काम) किया।
     इसी तरह मुसन्दे अहमद, सुनने अबू दाऊद में हज़रत अली كرم الله وجهه الكريم से है कि हुज़ूर ﷺ फ़रमाते है कि जो जुमुआ के दिन (ख़ुत्बा के वक़्त) अपने साथी से "चुप" कहे उसने लग्व किया और जिसने लग्व किया उसके लिये जुमुआ में कुछ "अज्र" (षवाब) नही।
*✍🏼फतावा रज़विय्या*

     ख़ुत्बा सुनने की हालत में हरकत (हिलना-डुलना) मना है। और बिला ज़रूरत खड़े हो कर ख़ुत्बा सुनना खिलाफे सुन्नत है। अवाम में ये मामूल है कि जब खतीब ख़ुत्बा के आखिर में इन लफ़्ज़ों पर पहुचता है "व-ल-ज़ीक़रुल्लाहे तआला आला" तो उसको सुनते ही लोग नमाज़ के लिये खड़े हो जाते है। ये हराम है, कि अभी ख़ुत्बा नही हुआ, चंद अलफ़ाज़ बाक़ी है और ख़ुत्बा की हालत में कोई भी अमल करना हराम है।
*✍🏼फतावा रज़विय्या*
*✍🏼मोमिन की नमाज़* 220

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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