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Tuesday 19 December 2017

*तज़किरतुल अम्बिया* #09
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
*हज़रत आदम स्फीउल्लाह عليه السلام*
#02
*_ऐतराज़_*
     खलीफा का मतलब है पीछे आने वाला और नायबे खलीफा की ज़रूरत उस वक़्त दरपेश आती है जब असल खुद अपने काम करने से आजिज़ हो, असल का आजिज़ होना या उसकी मौत की वजह से होता है, या उसके गायब होने की वजह से होता है, या मर्ज़, थकान वगैरा की वजह से। इन तमाम मायनी के लिहाज़ से अल्लाह का खलीफा बनाना दुरुस्त नहीं। वह हय्य ला-यमुत है। हमेशा के लिये ज़िन्दा है उस पर मौत के वकुअ का तसव्वुर करना भी मुहाल है, वह शहे रग से भी ज़्यादा क़रीब है, वह कहीं दूर चला जाये, गायब हो जाये, यह होना भी मुमकिन नहीं कि वह मरीज़ हो जाये, थक जाये, आजिज़ हो जाये, यह भी मुमकिन नही तो अल्लाह के खलीफा बनाने का क्या मतलब है ?
*जवाब*
     यहाँ खलीफा का मायने पीछे आने वाला नहीं बल्कि नायब है। यानी अल्लाह का नायब होकर ज़मीन व आसमान की अशिया में तसर्रुफ़ करने वाला हो। नायब बनाने की ज़रूरत भी अल्लाह को नहीं थी, वह मोहताज नहीं बल्कि जिन की तरफ खलीफा बनाना था उन्हें मोहताजी थी इसलिये कि इंसान बहुत ज़्यादा कुदरते और ज़ुल्माते जिस्मानिया रखते है और अल्लाह बहुत मुक़द्दस है, फ़ैज़ लेने वाले और फैज़ देने वाले में कोई मुनासबत होनी चाहिये जब मख्लूक़ में और अल्लाह में कोई मुनासबत नहीं, मख्लूक़ को वजूद में लाना भी रब की मशियत थी, तो अल्लाह ने मख्लूक़ के पैदा फरमाने से पहले ही उनके फैज़ लेने का यह एहतेमाम किया कि अम्बियाए किराम عليه السلام को वास्ता बनाया जो अपनी नुरानीयत की वजह से अल्लाह से फैज़ लेकर अपनी बशरीयत के वस्फ की वजह से इन्सानो तक वह फैज़ पंहुचा दे।
     जिस तरह इंसानो और हैवानों के जिस्मों में हड्डियां और गोश्त है हड्डियां सख्त है और गोश्त नरम है हड्डी अपनी सख्ती की वजह से गोश्त से ग़िज़ा हासिल नहीं कर सकती थी तो अल्लाह ने अपनी हिकमते कामिला से हड्डियों और गोश्त के दर्मियान पट्ठे बतौर वास्ता रखे पट्ठे अपने नर्म हिस्से से गोश्त से ग़िज़ा हासिल करते है और अपने सख्त हिस्से से हड्डी को ग़िज़ा पहुचाते है।
*✍🏼तज़किरतुल अम्बिया* 28
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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