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Monday 4 December 2017

*बच्चों को पढ़ाने वाले के आदाब*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     बच्चों को पढ़ाने वाला पहले अपने नफ़्स की इस्लाह करे क्यूं कि बच्चों की नज़रे उसे देखती है और उन के कान उस की तरफ मुतवज्जेह होते है। पस जो उस के नज़दीक अच्छा होगा वो उन के नज़्दीक भी अच्छा होगा और जो उस के नज़्दीक बुरा होगा वो उन के नज़्दीक भी बुरा होगा।
     क्लास में ख़ामोशी इख़्तियार करे, आँखों में गज़ब व जलाल को लाज़िम पकड़े, अपने रोब व हैबत के ज़रीए बच्चों को अदब सिखाए, मारने और इज़ा रसानी में ज़्यादती न करे, उन से ज़्यादा हँसी मसखरी भी न करे कि वो उस्ताज़ पर जुरअत करने लगे। न उन्हें आपस में ज़्यादा गुफ्तगू करने दे कहीं ऐसा न हो कि वो उस के सामने बे तकल्लुफ हो जाए, और न ही बच्चों के सामने किसी से हँसी मज़ाक करे।
     बच्चे उसे कुछ दे तो उस से बचने की कोशिश करे, अपने सामने मौजूद मुश्तबह चीज़ों से ऐहतिराज़ करे कहीं ऐसा न हो कि बच्चे उस से दूर हो जाए। उन्हें लड़ाई झगड़े से मना करे और दूसरों की तफ्तीश से रोके। उन के सामने गीबत, झूट और चुगली की मज़म्मत और बुराई बयान करे। बच्चों से ऐसे काम की बार बार पुछगछ न करे जिस के वो आदी हों कि कहीं वो उस को बोझ तसव्वुर न करने लग जाए।
     उन के वालिदैन से न मांगता फिरे ऐसा न हो कि वो उस से उक्ता जाएं, उन्हें नमाज़ व तहारत के मसाइल सिखाए और उन चीज़ों की पहचान करवाए जिन से उन्हें नफासत लाहिक़ होती (पालीदी पहुचती) है।
*✍🏼आदाबे दीन* 18

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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