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Monday 19 December 2016

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #104
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①③⑧_*
हमने अल्लाह की रैनी ली
और अल्लाह से बेहतर किसकी रैनी, और हम उसी को पूजते हैं

*तफ़सीर*
     यानी जिस तरह रंग कपड़े के ज़ाहिर और बातिन पर असर करता है, उसी तरह अल्लाह के दीन के सच्चे एतिक़ाद हमारी रग रग में समा गए. हमारा ज़ाहिर और बातिन, तन और मन उसके रंग मे रंग गया. हमारा रंग दिखावे का नहीं, जो कुछ फ़ायदा न दे, बल्कि यह आत्मा को पाक करता है. ज़ाहिर में इसका असर कर्मों से प्रकट होता है.
     ईसाई जब अपने दीन में किसी को दाख़िल करते या उनके यहाँ कोई बच्चा पैदा होता तो पानी में ज़र्दरंग डालकर उस व्यक्ति या बच्चे को ग़ौता देते और कहते कि अब यह सच्चा हुआ. इस आयत में इसका रद फ़रमाया कि यह ज़ाहिरी रंग किसी काम का नहीं.
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*​DEEN-E-NABI ﷺ*
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