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Friday 30 December 2016

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #115
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①⑤③_*
     ऐ ईमान वालो सब्र और नमाज़ से मदद चाहो बेशक अल्लाह साबिरों (सब्र करने वालों) के साथ है.
*तफ़सीर*
     हदीस शरीफ़ में है कि सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को जब कोई सख़्त या कड़ी मुहिम पेश आती तो नमाज़ में मशग़ूल हो जाते, और नमाज़ से मदद चाहने में बरसात की दुआ वाली नमाज़ और हाजत की दुआ वाली नमाज़ भी शामिल है.

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①⑤④_*
     और जो ख़ुदा की राह में मारे जाएं उन्हें मुर्दा न कहो(2)
बल्कि वो ज़िन्दा हैं,  हाँ तुम्हें ख़बर नहीं (3)
*तफ़सीर*
     (2) यह आयत बद्र के शहीदों के बारे में उतरी. लोग शहीदों के बारे में कहते थे कि वह व्यक्ति मर गया. वह दुनिया की सहूलतों से मेहरूम हो गया. उनके बारे में यह आयत उतरी.
     (3) मौत के बाद ही अल्लाह तआला शहीदों को ज़िन्दगी अता फ़रमाता है. उनकी आत्माओं पर रिज़्क पेश किये जाते हैं, उन्हें राहतें दी जाती हैं, उनके कर्म जारी रहते हैं, सवाब और इनाम बढ़ता रहता है.
     हदीस शरीफ़ में है कि शहीदों की आत्माएं हरे परिन्दों के रूप में जन्नत की सैर करती हैं और वहाँ के मेवे और नेअमते खाती हैं. अल्लाह तआला के फ़रमाँबरदार बन्दों को क़ब्र में जन्नती नेअमतें मिलती हैं.
     शहीद वह सच्चा मुसलमान है जो तेज़ हथियार से ज़बरदस्ती मारा गया हो और क़त्ल से माल भी वाजिब न हुआ हो. या यु़द्ध में मुर्दा या ज़ख़्मी पाया गया हो, और उसने कुछ आसायश न पाई. उसपर दुनिया में यह अहकाम हैं कि उसको न नहलाया जाय, न कफ़न. अपने कपड़ों ही में रखा जाय. उसी तरह उसपर नमाज़ पढ़ी जाए, उसी हालत में दफ़्न किया जाए. आख़िरत में शहीद का बड़ा रूत्बा है.
     कुछ शहीद वो हैं कि उनपर दुनिया के ये अहकाम तो जारी नहीं होते, लेकिन आख़िरत में उनके लिए शहादत का दर्जा है, जैसे डूब कर या जलकर या दीवार के नीचे दबकर मरने वाला, इल्म की तलाश में या हज के सफ़र में मरने वाला, यानी ख़ुदा की राह में मरने वाला, ज़चमी के बाद की हालत में मरने वाली औरत, और पेट की बीमारी और प्लेग और ज़ातुल जुनुब और सिल की बीमारी और जुमे के दिन मरने वाले, वग़ैरह.
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