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Saturday 10 December 2016

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #97
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①②⑥_*
     और जब अर्ज़ की इब्राहीम ने कि ऐ मेरे रब इस शहर को अमान वाला कर दे  और इसके रहने वालों को तरह तरह के फलो से रोज़ी दे जो उनमें से अल्लाह और पिछले दीन पर ईमान लाएं फ़रमाया और जो क़ाफिर हुआ थोड़ा बरतने को उसे भी दूंगा फिर उसे दोज़ख़ के अज़ाब की तरफ़ मजबूर कर दूंगा और  वह बहुत बुरी जगह पलटने की की

*तफ़सीर*
     चूंकि इमारत के बारे में “ला यनालो अहदिज़ ज़ालिमीन” (यानी मेरा एहद ज़ालिमों को नहीं पहुंचता)इरशाद हो चुका था, इसलिये हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने इस दुआ में ईमान वालों को ख़ास फ़रमाया और यही अदब की शान थी. अल्लाह ने करम किया. दुआ क़ुबूल हुई और इरशाद फ़रमाया कि रिज़्क़ सब को दिया जाएगा, ईमान वालो को भी, काफ़िर को भी. लेकिन काफ़िर का रिज़्क़ थोड़ा है, यानी सिर्फ दुनियावी ज़िनदगी में वह फ़ायदा उठा सकता है.
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