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Wednesday 28 December 2016

*नमाज़ के 7 फराइज़* #02
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_2 क़याम_*
     कमी की जानिब क़याम की हद ये है की हाथ बढ़ाए तो घुटनो तक न पहुचे और पूरा क़याम ये है की सीधा खड़ा हो।
     क़याम इतनी देर तक है जितनी देर तक किरअत है। ब क़दरे किराअते फ़र्ज़ क़याम भी फ़र्ज़, ब क़दरे वाजिब में वाजिब और ब क़दरे सुन्नत में सुन्नत।
     फ़र्ज़, वित्र्, इदैन और सुन्नते फ़र्ज़ में क़याम फ़र्ज़ है। अगर बिल उज़्रे सहीह कोई ये नमाज़े बैठ कर अदा करेगा तो न होगी।
     खड़े होने से महज़ कुछ तकलीफ होना उज़्र नही बल्कि क़याम उस वक़्त साकित होगा की खड़ा न हो सके या सज्दा न कर सके या खड़े होने या सज्दा करने में ज़ख्म बहता है या खड़े होने में क़तरा आता है या चौथाई सित्र खुलता है या किराअत से मजबूर महज़ हो जाता है। युही खड़ा हो सकता है मगर उस से मरज़ में ज्यादती होती है या देर में अच्छा होगा या ना क़ाबिले बर्दास्त तकलीफ होगी तो बैठ कर पढ़े।
     अगर असा या बैसाखी खादिम या दिवार पर टेक लगा कर खड़ा होना मुम्किन है तो फ़र्ज़ है की खड़ा हो कर पढ़े।
     अगर सिर्फ इतना खड़ा होना मुमकिन है की खड़े खड़े तकबीरे तहरिमा कह लेगा तो फ़र्ज़ है की खड़ा हो कर "अल्लाहु अक्बर" कहले और अब खड़ा रहना मुम्किन नही तो बैठ जाए।
     बाज़ मसाजिद में कुर्सियो का इंतिज़ाम भी होता है, बाज़ बूढ़े वग़ैरा उन पर बैठ कर फ़र्ज़ नमाज़ पढ़ते है हाला की चल कर आए होते है, नमाज़ के बाद खड़े खड़े बातचीत भी कर लेते है, ऐसे लोग अगर बिगैर इजाज़ते शरई बैठ कर नमाज़े पढ़ेंगे तो उन की नमाज़े न होगी।
     खड़े हो कर पढ़ने की कुदरत हो जब भी बैठ कर नफ्ल पढ़ सकते है मगर खड़े हो कर पढ़ना अफज़ल है
     हज़रते अब्दुल्लाह बिन अम्र رضي الله تعالي عنه से मरवी है, रहमते आलम ने इरशाद फ़रमाया : बैठ कर पढ़ने वाले की नमाज़ खड़े हो कर पढ़ने वाले की निस्फ़ (यानी आधा षवाब) है।
*✍🏽सहीह मुस्लिम, 1/253*
     अलबत्ता उज़्र की वजह से बैठ कर पढ़े तो षवाब में कमी न होगी ये जो आज कल रवाज पड गया है की नफ्ल बैठ कर पढ़ा करते है ब ज़ाहिर ये मालुम होता है की शायद बैठ कर पढ़ने को अफज़ल समझते है, ऐसा है तो उन का ख्याल गलत है। वित्र् के बाद जो 2 रकअत नफ्ल पढ़ते है उन का भी यही हुक्म है की खड़े हो कर पढ़ना अफज़ल है।
*✍🏽बहारे शरीअत, 4/17*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम, 163*
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