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Friday 21 September 2018

*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-10, आयत, ⑧④*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

और जब हमने तुमसे एहद लिया कि अपनों का ख़ून न करना और अपनों को अपनी बस्तियों से न निकालना फिर तुमने उसका इक़रार किया और तुम गवाह हो.


*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-10, आयत, ⑧⑤*

     फिर ये जो तुम हो अपनों को क़त्ल करने लगे और अपने मे से एक समूह को उनके वतन से निकालते हो उनपर मदद देते हो (उनके ख़िलाफ या दुश्मन को) गुनाह और ज्य़ादती में और अगर वो क़ैदी होकर तुम्हारे पास आएं तो बदला देकर छुड़ा लेते हो और उनका निकालना तुम पर हराम है  (6)  तो क्या ख़ुदा के कुछ हुक़्मों पर ईमान लाते हो और कुछ से इन्कार करते हो? तो जो तुम ऐसा करे उसका बदला क्या है, मगर यह कि दुनिया में रूसवा (ज़लील)(7) हो, और क़यामत में सख़्ततर अज़ाब की तरफ़ फेरे जाएंगे और अल्लाह तुम्हारे कौतुकों से बेख़बर नहीं (8)


*तफ़सीर*

     (6) तौरात में बनी इस्राइल से एहद लिया गया था कि वो आपस में एक दूसरे को क़त्ल न करें, वतन से न निकालें और जो बनी इस्राइल किसी की क़ैद में हो उसको माल देकर छुड़ा लें, इस पर उन्होंने इक़रार भी किया, अपने नफ़्स पर गवाह भी हुए लेकिन क़ायम न रहे और इससे फिर गए. मदीने के आसपास यहूदियो के दो समुदाय बनी कुरैज़ा और बनी नुज़ैर रहा करते थे. मदीने के अन्दर दो समुदाय औस और ख़ज़रज रहते थे. बनी क़ुरैज़ा औस के साथी थे और बनी नुज़ैर ख़ज़रज के, यानी हर एक क़बीले ने अपने सहयोगी के साथ क़समाक़समी की थी कि अगर हम में से किसी पर कोई हमला करे तो दूसरा उसकी मदद करेगा. औस और ख़ज़रज आपस में लड़ते थे. बनी क़ुरैज़ा औस की और बनी नुज़ैर ख़ज़रज की मदद के लिये आते थे. और सहयोगी के साथ होकर आपस में एक दूसरे पर तलवार चलाते थे. बनी क़ुरैज़ा बनी नुज़ैर को और वो बनी क़ुरैज़ा को क़त्ल करते थे और उनके घर वीरान कर देते थे, उन्हें उनके रहने की जगहों से निकाल देते थे, लेकिन जब उनकी क़ौम के लोगे को उनके सहयोगी क़ैद करते थे तो वो उनको माल देकर छुड़ा लेते थे. जैसे अगर बनी नुज़ैर का कोई व्यक्ति औस के हाथों में गिरफ्तार होता तो बनी क़ुरैज़ा औस को माल देकर उसको छुड़ा लेते जबकि अगर वही व्यक्ति लड़ाई के वक़्त उनके निशाने पर आ जाता तो उसके मारने में हरगिज़ नहीं झिझकते. इस बात पर मलामत की जाती है कि जब तुमने अपनों का ख़ून न बहाने और उनको बस्तियों से न निकालने और उनके क़ैदियोँ को छुड़ाने का एहद किया था तो इसके क्या मानी कि क़त्ल और खदेड़ने में तो झिझको नहीं, और गिरफ़्तार हो जाएं तो छुड़ाते फिरो. एहद में कुछ मानना और कुछ न मानना क्या मानी रखता है. जब तुम क़त्ल और अत्याचार से न रूक सके तो तुमने एहद तोड़ दिया और हराम किया और उसको हलाल जानकर काफ़िर हो गए. इस आयत से मालूम हुआ कि ज़ुल्म और हराम पर मदद करना भी हराम है. यह भी मालूम हुआ कि यक़ीनी हराम को हलाल जानना कुफ़्र है, यह भी मालूम हुआ कि अल्लाह की किताब के एक हुक्म का न मानना भी सारी किताब का इन्कार और कुफ़्र है. इस में यह चेतावनी है कि जब अल्लाह के निर्देशों में से कुछ का मानना कुछ का न मानना कुफ़्र हुआ तो यहूदियों को हज़रत सैयदुल अंबिया सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम का इन्कार करने के साथ हज़रत मूसा की नबुव्वत को मानना कुफ़्र से नहीं बचा सकता.

     (7) दुनिया में तो यह रूस्वाई हुई कि बनी क़ुरैज़ा सन 3 हिजरी में मारे गए. एक दिन में उनके सात सौ आदमी क़त्ल किये गये थे. और बनी नुज़ैर इससे पहले ही वतन से निकाल दिये गए थे. सहयोगियों की ख़ातिर अल्लाह के एहद के विरोध का यह वबाल था. इससे मालूम हुआ कि किसी की तरफ़दारी में दीन का विरोध करना आख़िरत के अज़ाब के अलावा दुनिया में भी ज़िल्लत और रूसवाई का कारण होता हैं.

     (8) इस में जैसे नाफ़रमानों के लिये सख़्त फटकार है कि अल्लाह तआला तुम्हारे कामों से बेख़बर नहीं है, तुम्हारी नाफ़रमानियों पर भारी अज़ाब फ़रमाएगा, ऐसे ही ईमान वालों और नेक लोगों के लिये ख़ुशख़बरी है कि उन्हें अच्छे कामों का बेहतरीन इनाम मिलेगा. (तफ़सीरे कबीर)

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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