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Saturday 29 September 2018

*हमारे नारों में कितनी सच्चाई ?* #10


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     बे नमाज़ी होना हुसैन का काम नही था, यजीद का काम था। रसूले पाक की सुन्नतों को छोड़ना हुसैन का काम न था, यजीद का काम था। बदकारी करना हुसैन काम न था, यजीद का था। दारू व जुगाड़ हुसैन का काम न था, यजीद का काम था। 

     तो अपने आप को हुसैनी कहने वालों! हुसैन नमाज़ी थे, हम बे नमाज़ी क्यूं? हुसैन नेकोकार थे, हम बदकार क्यूं? हुसैन सुन्नतों के पाबंद थे, हम सुन्नतों से गाफिल क्यूं?

     अपने दिल पे हाथ रख के इंसाफ से फैसला करके जवाब दिजिये की नमाज़ अदा न करना, सुन्नतों पे अमल न करना और दूसरी बुराइयों में मुब्तला रहना ये सब का हुसैन के न थे, यजीद के थे। तो आज हम खुद को हुसैनी कहते है। और यजीद से नफरत करते है फिर भी काम यजीद जैसा करते है हुसैन जैसा नहीं इसे क्या कहा जाए? यजीद से मुहब्बत के हुसैन से मुहब्बत? 

     इसका जवाब वही है कि ज़बान पे हुसैन की मुहब्बत और अमल में यजीद की मुहब्बत!!! 

     ओर अगर ऐसा नही है तो फिर हमे दावो से और अमलो से इमाम हुसैन की सीरत व आपकी हयाते ज़िन्दगी पर अमल करना चाहिये। तब ही हमारी मुहब्बत हुसैन से सच्ची मुहब्बत कहलाएगी, और तब ही हमारे नारे सच्चे साबित होंगे।

     अल्लाह हमे इमामे हुसैन رضي الله عنه के बताए रास्ते पर चलने की तौफ़ीक़ अता फरमाए.

اٰمِيْن بِـجٙـاهِ النّٙـبِـىِّ الْاٙ مِيْن

*✍️तोहफए नजात, हिस्सा-6* 26

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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