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بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ
اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ
माहे हराम के बदले माहे हराम और अदब के बदले अदब है (16) जो तुमपर ज़ियादती करे उसपर ज़ियादती करो उतनी ही जितनी उसने की, और अल्लाह से डरते रहो और जान रखो कि अल्लाह डरने वालों के साथ है.
*तफ़सीर*
(16) जब पिछले साल ज़िल्क़ाद सन छ हिजरी में अरब के मुश्रिको ने माहे हराम की पाकी और अदब का लिहाज़ न रखा और तुम्हें उमरे की अदायगी से रोका तो ये अपमान उनसे वाक़े हुआ और इसके बदले अल्लाह के दिये से सन सात हिजरी के ज़िल्क़ाद में तुम्हें मौक़ा मिला कि तुम क़ज़ा उमरे को अदा करो.
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*DEEN-E-NABI ﷺ*
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