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Saturday 29 December 2018

*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-25, आयत, ①⑨⑧*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

तुम पर कुछ गुनाह नहीं  (7) कि अपने रब का फ़ज़्ल  (कृपा) तलाश करो तो जब अरफ़ात  (के मैदान) से पलटो (8) तो अल्लाह की याद करो  (9) मशअरे हराम के पास  (10) और उसका ज़िक्र  करो जैसे उसने तुम्हें हिदायत फ़रमाई और बेशक इससे पहले तुम बहके हुए थे  (11)


*तफ़सीर*

(7) कुछ मुसलमानों ने ख़याल किया कि हज की राह में जिसने तिजारत की या ऊंट किराए पर चलाए उसका हज ही क्या, इस पर यह आयत उतरी, जब तक व्यापार से हज के अरकान की अदायगी में फ़र्क़ न आए, उस वक़्त तक तिजारत जायज़ है.

(8) अरफ़ात एक स्थान का नाम है जो मौक़फ़ यानी ठहरने की जगह है. ज़हाक का क़ौल है कि हज़रत आदम और हव्वा जुदाई के बाद 9 ज़िल्हज को अरफ़ात के स्थान पर जमा हुए और दोनों में पहचान हुई, इसलिये उस दिन का नाम अरफ़ा यानी पहचान का दिन और जगह का नाम अरफ़ात यानी पहचान की जगह हुआ. एक क़ौल यह है कि चूंकि उस रोज़ बन्दे अपने गुनाहों का ऐतिराफ़ करते हैं इसलिये उस दिन का नाम अरफ़ा है. अरफ़ात में ठहरना फ़र्ज़ है.

(9) तलबियह यानी लब्बैक, तस्बीह, अल्लाह की तारीफ़, तकबीर और दुआ के साथ या मग़रिब व इशा की नमाज़ के साथ.

(10) मशअरे हराम क़ज़ुह पहाड़ है जिसपर इमाम ठहरता है. मुहस्सिर घाटी के सिवा तमाम मुज़्दलिफ़ा ठहरने की जगह है. उसमें ठहरना वाजिब है. बिला उज़्रर छोड़ने से जुर्माने की क़ुरबानी यानी दस लाज़िम आता है. और मशअरे हराम के पास ठहरना अफ़ज़ल है.

(11) ज़िक्र और इबादत का तरीक़ा कुछ न जानते थे.

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*​DEEN-E-NABI ﷺ*

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