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Thursday, 16 August 2018

नमाज़ का तरीक़ा* #13


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     दूसरे सज्दे से खड़े होते हुए पहले सर उठाइए फिर हाथो को घुटनो पर रख कर पन्जो के बल खड़े हो जाइये।उठते वक़्त बिगैर मजबूरी ज़मीन पर हाथ से टेक मत लगाइये। 

     ये आप की एक रकअत पूरी हुई। 


     अब दूसरी रकअत में "बिस्मिल्लाह" पढ़ कर अल हम्द और सूरह पढ़िये और पहले की तरह रुकूअ और सज्दे कीजिये, 


*मर्द :*

     दूसरे सज्दे से सर उठाने के बाद सीधा क़दम खड़ा कर के उल्टा क़दम बिछा कर बैठ जाइये 


*औरत :*

     दूसरे सज्दे से सर उठाने के बाद दोनों पाउ सीधी तरफ निकाल दीजिये और उल्टी सुरीन पर बैठिये और सीधा हाथ सीधी रान के बिच में और उल्टा हाथ उल्टी रान के बिच में रखिये। 


     दो रकअत के दूसरे सज्दे के बाद बैठना कादह कहलाता है, अब कादह में तशह्हुद (अत्तहिय्यात) पढ़िये।


बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله

*✍🏼नमाज़ के अहकाम, सफा 151-152*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*तज़किरतुल अम्बिया* #221


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*हज़रत सालेह عليه السلام*

     हज़रत सालेह عليه السلام क़ौमे समुद की तरफ आए आपभी समुद क़ौम से ही है 'समुद' एक शख्स का नाम था उसकी औलाद क़ौमे समुद कहलाई। समुद का नसब नूह عليه السلام से मिलता है। यानी समुद बिन उबैद बिन औस बिन आद बिन इरम बिन साम बिन नूह। और सालेह عليه السلام का नसब इस तरह बयान किया गया है: सालेह बिन उबैद बिन मासिख बिन अब्द बिन जाबर बिन समुद।

     सालेह عليه السلام और हुद عليه السلام के दरमियान 100 साल का फासला है यानी सालेह عليه السلام हुद عليه السلام के 100 साल बाद तशरीफ़ लाए। सालेह عليه السلام की उम्र 280 साल थी।

*✍️तज़किरतुल अम्बिया* 182

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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Wednesday, 15 August 2018

क़ुरबानी की फ़ज़ीलत व मसाइल* #15


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*जानवर को भूका प्यासा ज़बह न करे*

     हज़रते मुफ़्ती अमजदअली आज़मी अलैरहमा फरमाते है : क़ुरबानी से पहले उसे चारा पानी दे दे यानि भूका प्यासा ज़बह न करे और एक के सामने दूसरे को न ज़बह करे और पहले से छुरि तेज़ कर ले ऐसा न हो कि जानवर गिराने के बाद उस के सामने छुरी तेज़ की जाए।

*✍🏽बहरे शरीअत, 3/352*

    

     यहाँ एक अज़ीबो गरीब हिकायत मुलाहजा हो चुनांचे...

     हज़रते अबू ज़फ़र अलैरहमा फरमाते है : एक बार में ने ज़बह के लिये बकरी लिटाई इतने में मशहूर बुज़ुर्ग हज़रते अय्यूब सख्तियानी इधर आ निकले, में ने छुरी ज़मीन पर दाल दी और गुफ्त गु में मशगूल हुवा, दरीअस्ना बकरी ने दिवार की जड़ में अपने खुरो से एक गढ़ा खोदा और पाउ से छुरी उस में धकेलदी ओर उस पर मिटटी डाल दी ! हज़रते अय्यूब सख्तियानी फरमाने लगे : अरे देखो तो सही! बकरी ने ये क्या किया ! ये देख कर मेने पुख्ता अज़्म कर लिया कि अब कभी भी किसी जानवरको अपने हाथ से ज़बह नही करूँगा।

*✍🏽हयातुल हैवान, 2/61*


     ईस हिकायत से मआज़ल्लाह ये मुराद नही कि ज़बह करना कोई गलत काम है। बस इस तरह के वाक़ीआत बुज़ुर्गो के ग़लबए हालपर मब्नी होते है। वरना मसअला येही है कि अपने हाथ से ज़बह करना सुन्नत है।

*✍🏽अब्लाक़ घोड़े सुवार, 19*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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सूरतुल बक़रह, रुकुअ-5, आयत, ④②*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

और हक़ (सत्य) से बातिल (झूठ) को न मिलाओ और जान बूझकर हक़ न छुपाओ.


*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-5, आयत, ④③*

     और नमाज़ क़ायम रखो और ज़कात दो और रूकू करने वालों (झुकने वालों) के साथ रूकू करो (7)


*तफ़सीर*

     In(7) इस आयत में नमाज़ और ज़कात के फ़र्ज़ होने का बयान है और इस तरफ़ भी इशारा है कि नमाज़ों को उनके हुक़ूक़ (संस्कारों) के हिसाब से अदा करो. जमाअत (सामूहिक नमाज़) की तर्ग़ीब भी है. हदीस शरीफ़ में है जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ना अकेले पढ़ने से सत्ताईस दर्जे ज़्यादा फ़ज़ीलत (पुण्य) रखता है.

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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दुन्या से रुखसती की तैयारी*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     प्यारे इस्लामी भाइयों! कब तक गफलत में रहोंगे? तुम्हें मोहलत दिये बगैर तलब कर लिया जाएगा। तुम्हें अपने रब की क़सम! अपने अय्याम को तैयारिये आख़िरत में इस्तिमाल करलो और अपने बुरे आमाल की इस्लाह कर लो और अपनी मौत के इन्तज़ार में रहो। दुन्या ने तुम्हारे कूच का एलान कर दिया जब कि तुम ने दुनयावी ज़िन्दगी को खेलकूद बना रखा है।

     हिसाब का दिन तुम्हारे सामने है, गुनाहों के बोझ और बुरे साथी पर हसरत है और तोशे कि किल्लत और मन्ज़िल की दूरी पर अफसोस है।

     ऐ दुन्या की तरफ मुतवज्जेह हो कर धोके में पड़ने वालों! और इसकी झूटी ख्वाहिशात के फटने में पड़ने वाले! तू तो रास्ता भटक गया है और अपने अमल में झूटा है। ए बदकार! कबतक तौबा को टालता रहेगा हालांकि तौबा में ताखीर करने का तेरे पास आख़िरत में कोई उज़्र नहीं। कब तक तेरे बारे में ये कहा जाता रहेगा की ये फरेब खुर्दा और फिरने में मुब्तला है।

     ए मिस्कीन! भलाई के अय्याम गुज़र गए और तू महीने ही शुमार करता जा रहा है, तू खुद को मक़बूल समझता है या मरदूद? विसाल पाने वाला समझता है या धुत्कार हुवा? क्या तू कल क़यामत के दिन बेहतरीन सवारियों पर सवार होगा या मुंह के बल घसीटा जाएगा? तो खुद को जहन्नमियों में शुमार करता है या जन्नत की नेअमतें और इस के महल्लात पाने वालों में?

     खुदा की क़सम! हल्के फुल्के (गुनाहों से पाक) लोग कामयाब होंगे और बदकार लोग नुक़्शान उठाएंगे। बिल आखिर तमाम उमूर अल्लाह ही कि तरफ लौटने वाले है।

*✍️आंसुओं का दरिया* 99

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*नमाज़ का तरीका* #12


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     सज्दे से इस तरह उठिये की पहले पेशानी फिर नाक फिर हाथ उठे। 


*मर्द :*

     फिर सीधा कदम खड़ा करके उसकी उंगलिया किब्ला रुख कर दीजिये और उल्टा क़दम बिछा कर उस पर खूब सीधे बेथ जाइये और हथेलिया बिछा कर रानो पर घुटनो के पास रखिये की दोनों हाथो की उंगलिया किब्ले की जानिब और उंगलियो के सिरे घुटनो के पास हो।


*औरत :*

     दोनों पाउ सीधी तरफ निकाल दीजिये और उलटी सुरीन पर बैठिये और सीधा हाथ सीधी रान के बिच में और उल्टा हाथ उलटी रान रान के बिच में रखिये। 


     दोनों सजदों के दरमियान बैठने को जल्सा कहते है।

     फिर कम अज़ कम एक बार सुब्हान अल्लाह कहने की मिक़दार ठहरिये 


     यहा "अल्लाहुमग-फिरलि" (यानि ए अल्लाह मेरी मगफिरत फरमा) पढ़ना मुस्तहब है

     फिर अल्लाहु अकबर कहते हुए पहले सज्दे की तरह दूसरा सज्दा कीजिये।

*✍🏼नमाज़ के अहकाम, सफा 151*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

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*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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Tuesday, 14 August 2018

*तज़किरतुल अम्बिया* #220


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*क़ौमे आद पर अज़ाब क्या आया?*

     उस क़ौम पर 7 रातों और 8 दिन लगातार शदीद आंधी चली, सिर्फ गरज़ थी बारिश नहीं थी। वही लोग जो बादलों को देखकर खुश हो रहे थे और ये कह रहे थे कि अज़ाब तो हम अपनी ताक़त से टाल देंगे। जब उन्होंने देखा कि शदीद गरजने वाली आंधी फ़िज़ा में हैवानों और परिंदों को उड़ा रही है तो ये अपने मकानों में दाखिल हो गये ताकि आंधी को शिद्दत से बच सकें, लेकिन सारे दावे धरे के धरे रह गये। अल्लाह ने उस फ़रिश्ते को हुक्म दिया जो हवाएं चलाने पर मुक़र्रर है कि आद की क़ौम पर अपने हवाओं के ख़ज़ाने से इतनी मिक़दार में हवा खोल दी जितनी मिक़दार एक अंगूठी की होती है। रब के ख़ज़ानों में से ये बज़ाहिर मामूली थी लेकिन दुन्या में हौलनाक तूफान था।

     सबसे पहले एक औरत ने देखा कि हवा में मुझे आग के शोले नज़र आ रहे है, उस हवा ने मकानों के दरवाज़े गिरा दिये। वो उनके नथुनों में दाखिल होती और उनकी दूबर से निकल जाती, वो हवा उन्हें गिरा रही थी उनकी गर्दने टूट रही थीं कभी इन्हें ज़मीन से उठाया और फिर नीचे फेंक दिया। वो रेत के टीलों में दब जाते। ये सिलसिला 7 रातें 8 दिन मुसलसल रहा, किसी वक़्त भी आंधी न रुकी वो सब तबाह व बर्बाद हो गये बड़े बड़े कदो वाले अपनी ताक़त पर नाज़ करने वाले अल्लाह की गिरफत में जब आये तो ऐसे बर्बाद हुए की मरे हुए यूँ नज़र आ रहे थे कि ये खजूरों के तने गिरे हुए है।

     रब की अज़ीम कुदरत का अंदाज़ा कीजिये जहां कुफ्फार को तबाह व बर्बाद कर दिया वहां हुद عليه السلام और उनकी क़ौम की नजात दी। हुद عليه السلام ने अपनी क़ौम के इर्द गिर्द खत खीच दिया वो शदीद आंधी उन्हें खुशगवार मौसमे बाहर की हल्की ठंडी ठंडी सुहानी हवा महसूस हो रही थी। कुफ्फार गिर गिर कर तबाह हो रहे थे। उनकी गर्दनें टूट रही थीं। रेत के टीलों में दब रहे थे लेकिन अल्लाह वाले, नबी पर ईमान लाने वाले, उसी आंधी से लुत्फ अंदोज़ हो रहे थे। سبحان الله अल्लाह की कुदरत का इंसाफ कैसे अंदाज़ा कर सकता था? उसकी हिकमतों से वो खुद ही वाकिफ है।

     अल्लाह ने फरमाया: कुफ्फार को दुन्या में भी सख्त अज़ाब में मुब्तला किया और क़यामत में वो शदीद अज़ाब में मुब्तला होंगे, मोमिनो को अल्लाह ने दुन्या में भी महफूज़ रखा और क़यामत में भी महफूज़ रखेगा।

     नबी की तकज़िब नबी की गुस्ताखी तबाह कुन अज़ाब को दावत देने के मतरादिक़ है।

     अल्लाह ईमान पर क़ायम व दाईम रहने की तौफ़ीक़ अता फरमाये और अम्बियाए किराम की शान में गुस्ताखी से बचाए।

*✍️तज़किरतुल अम्बिया* 181

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*क़ुरबानी की फ़ज़ीलत व मसाइल* #14


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*_ज़बिहा को आराम पहुँचाइये_*

     हज़रते सद्दाद बिन औस رضيالله تعالي عنه से रिवायत है कि नबी ﷺ ने फ़रमाया : अल्लाह ने हर चीज़ के साथ नेकी करनेका हुक्म दिया है, लिहाज़ा जब तुम किसी को क़त्ल करो तो अहसन (यानी बहुत अच्छे) तरीके से क़त्ल करो और जब तुम ज़बह करो तो अहसन (यानी खूब उम्दा) तरीके से ज़बह करो और तुम अपनी छुरी को अच्छी तरह तेज़ कर लिया करो और ज़बिहा को आराम दिया करो।

*✍🏽सहीह मुस्लिम, 1080*


     ब वक़्ते ज़बह रिज़ाए इलाही की निय्यत से जानवर पर रहम खाना कारे षवाब है जैसा कि एक सहाबी ने बारगाहे रिसालतमें अर्ज़ की : या रसूलल्लाह ! मुझे बकरी ज़बह करने पर रहम आता है। फ़रमाया : अगर उस पर रहम करोगे अल्लाह भी तुम पर रहम फ़रमाएगा।

*✍🏽इमाम अहमद बिन हम्बल, 5/304*

*✍🏽अब्लाक़ घोड़े सुवार, 18*

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सूरतुल बक़रह, रुकुअ-5, आयत, ④①*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

और ईमान लाओ उस पर जो मैं ने उतारा उसकी तस्दीक़ (पुष्टि) करता हुआ जो तुम्हारे साथ है और सबसे पहले उसके मुनकिर यानी इन्कार करने वाले न बनो(5) और मेरी आयतों के बदले थोड़े दाम न लो(6) और मुझी से डरो.


*तफ़सीर*

     (5) यानी क़ुरआने पाक और तौरात और इंजील पर, जो तुम्हारे साथ हैं, ईमान लाओ और किताब वालों में पहले काफ़िर न बनो कि जो तुम्हारे इत्तिबाअ (अनुकरण) में कुफ़्र करे उसका वबाल भी तुम पर हो.

      (6) इन आयतों से तौरात व इंजील की वो आयतें मुराद है जिन में हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की तारीफ़ और बड़ाई है. मक़सद यह है कि हुज़ूर की नअत या तारीफ़ दुनिया की दौलत के लिये मत छुपाओ कि दुनिया का माल छोटी पूंजी और आख़िरत की नेअमत के मुक़ाबले में बे हक़ीक़त है. यह आयत कअब बिन अशरफ़ और यहूद के दूसरे रईसों और उलमा के बारे में नाज़िल हुई जो अपनी क़ौम के जाहिलों और कमीनों से टके वुसूल कर लेते और उन पर सालाने मुक़र्रर करते थे और उन्होने फलों और नक़्द माल में अपने हक़ ठहरा लिये थे. उन्हें डर हुआ कि तौरात में जो हुज़ूर सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की नअत और सिफ़त (प्रशंसा) है, अगर उसको ज़ाहिर करें तो क़ौम हुज़ूर पर ईमान ले जाएगी और उन्हें कोई पूछने वाला न होगा. ये तमाम फ़ायदे और मुनाफ़े जाते रहेंगे. इसलिये उन्होंने अपनी किताबों में बदलाव किया और हुजू़र की पहचान और तारीफ़ को बदल डाला. जब उनसे लोग पूछते कि तौरात में हुज़ूर की क्या विशेषताएं दर्ज हैं तो वो छुपा लेते और हरगिज़ न बताते. इस पर यह आयत उतरी. (ख़ाज़िन वग़ैरह)

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*बद निगाही की सज़ा*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

      हज़रते इब्ने अब्बास رضي الله عنه फरमाते है: एक शख्स हुज़ूर ﷺ की खिदमत में हाज़िर हुवा उसका खून बह रहा था तो हुज़ूर ﷺ ने उससे पूछा : तुझे क्या हुवा? उसने अर्ज़ की मेरे पास से एक औरत गुज़री तो मैने उसकी तरफ देखा और मेरी निगाहे मुसलसल उसका पीछा करती रहीं कि अचानक मेरे सामने एक दीवारे गई जिसने मुझे ज़ख़्मी कर दिया और मेरा ये हाल कर दिया जिसे आप मुलाहज़ा फरमा रहे है। तो हुज़ूर ﷺ ने फरमाया: अल्लाह जब किसी बन्दे से भलाई का इरादा फरमाता है तो उसे दुन्या ही में उस की सज़ा दे देता है।

*✍️مجمع الزواةر*

*✍️आंसुओं का दरिया*

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नमाज़ का तरीका* #11


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     सज्दे में जाते वक़्त पहले घुटने ज़मीन पर रखिये फिर दोनों हाथो के बिच में इस तरह सर रखिये की पहले नाक फिर पेशानी और ये ख़ास ख्याल रखिये की नाक की नोक नही बल्कि हड्डी लगे और पेशानी ज़मीन पर जम जाए, नज़र नाक पर रहे


*मर्द :*

    बाजुओ को करवटों से, पेट को रानो से और रनों को पिंडलियों से जुदा रखिये। (अगर सफ में हो तो बाज़ू करवटों से लगाए रखिये)

     दोनों पाउ की दसो उंगलियो का रुख इस तरह किब्ले की तरफ रहे की दसो उंगलियो के पेट ज़मीन पर लगे रहे। 

     हथेलिया बिछी रहे और उंगलिया किब्ला रु रहे मगर कलाइयां ज़मीन से लगी हुई मत रखिये। 


*औरत :*

     सज्दा सिमट कर कीजिये यानि बाजु करवटों से, पेट को रानो से और रनों को पिंडलियों से और पिंडलियां ज़मीन से मिला दीजिये। और दोनों पाउ सीधी तरफ निकाल दीजिये। 


     अब कम अज़ कम 3 बार "सुब्हान रब्बियल अअ'ला" पढ़िये।


     फिर इस तरह उठिये की पहले पेशानी फिर नाक फिर हाथ उठे। 


बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله

*✍🏼नमाज़ के अहकाम, सफा 150-151*

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Monday, 13 August 2018

*तज़किरतुल अम्बिया* #219


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*क़ौम ने अज़ाब को रहमत समझा*

     जैसे कि पहले ज़िक्र किया जा चुका है कि क़ौमे आद पर हुद عليه السلام की तकज़िब की वजह से 3 साल तक बारिश को रोक दिया गया था इसलिये जब क़ौम पर अज़ाब आने का वक़्त आ गया तो अल्लाह ने स्याह बादलों को चलाया जो उनकी वादियों से ज़ाहिर हुए। आम तौर पर ऐसे बादल को बारिश बरसाने वाले कहा जाता है। वो लोग वादियों से उठते हुए बादलो  को देखकर बड़े खुश हुए की बारिश बरसाने वाले बादल आ गये है अब 3 साल क़हत का दौर खत्म होने वाला है।

     हुद عليه السلام ने उनको बताया ये तो वही है जिसकी तुम्हें जल्दी पड़ी हुई थी क्योंकि वो क़ौम कहती थी बेशक अज़ाब ले आओ।

     यानी जब क़ौम ने मुतालबा किया कि तुम जिस अज़ाब के मुतअल्लिक़ हमें डराते हो वो बेशक ले आओ अगर तुम अपने दावा में सच्चे हो। वो तो कहते थे अज़ाब आएगा ही नहीं, अगर आ ही गया तो हम अपनी ताक़त से रोक लेंगे।

*✍️तज़किरतुल अम्बिया* 180

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*क़ुरबानी की फ़ज़ीलत व मसाइल* #13


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*_जानवरो पर रहम की अपील_*

     गाय वगैरा को गिराने से पहले ही किब्ले का तअय्युन कर लिया जाए, लिटाने के बाद बिल खुसुस पथरीली ज़मीन पर घसीट कर कीब्ला रुख करना बे ज़बान जानवर के लिये सख्त अज़िय्यत का बाइस है। ज़बह करने में इतना न काटे कि छुरी गर्दन के मोहरे (हड्डी) तक पहुच जाए कि ये बे वजह की तकलीफ है,

     फिर जब तक जानवर मुकम्मल तौर पर ठन्डा न हो जाए न उस के पाउ काटे न खाल उतारे, ज़बह कर लेने के बाद जब रूह न निकल जाए छुरी न ही कटे हुए गले पर मस (touch) करे न ही हाथ।

     बाज़ कस्साब जल्द ठन्डा करने के लिये ज़बह के बाद तड़पती गाय की गर्दन की ज़िन्दा खाल उधेड़ कर छुरी घोप कर दिलकी रगे काटते है, इसी तरह बकरे को ज़बह करने के फौरन बाद बेचारे की गर्दन चटखा देते है, बे ज़बानों पर इस तरह कि बिला वजह इज़ा पहुचाने वाले को रोके। अगर बा वुजुदे कुदरत नही रोकेगा तो खुद भी गुनहगार और जहन्नम का हक़दार होगा।

     जानवर पर ज़ुल्म करना ज़िम्मी काफिर और (अब दुन्या में सब काफिर हर्बि है) ज़ुल्म करने से ज़्यादा बुरा है और ज़िम्मी पर ज़ुल्म करना मुस्लिम पर ज़ुल्म करने से भी बुरा है क्यू की जानवर का कोई मुईन व मददगार अल्लाह के सिवा नही इस गरीब को इस ज़ुल्म से कौन बचाए।

*✍🏽दुर्रेमुखतार व रद्दलमोहतर, 9/662*

*✍🏽अब्लाक़ घोड़े सुवार, 15*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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सूरतुल बक़रह, रुकुअ-4, आयत, ③⑨*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

और वो जो कुफ्र और मेरी आयतें झुटलांएगे वो दोज़ख़ वाले है उनको हमेशा उस में रहना.


*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-5, आयत, ④ⓞ*

     ऐ याक़ूब की सन्तान (1) याद करो मेरा वह एहसान जो मैं ने तुम पर किया(2) और मेरा अहद पूरा करो मैं तुम्हारा अहद पूरा करूंगा(3) और ख़ास मेरा ही डर रखो(4)


*तफ़सीर*

     (1) इस्राइल यानी अब्दुल्लाह, यह इब्रानी ज़बान का शब्द है. यह हज़रत यअक़ूब अलैहिस्सलाम का लक़ब है. (मदारिक). कल्बी मुफ़स्सिर ने कहा अल्लाह तआला ने “या अय्युहन्नासोअ बुदू” (ऐ लोगो इबादत करो) फ़रमाकर पहले सारे इन्सानों को आम दावत दी, फिर “इज़क़ाला रब्बुका” फ़रमाकर उनके मुब्दअ का ज़िक्र किया. इसके बाद ख़ुसूसियत के साथ बनी इस्राइल को दावत दी. ये लोग यहूदी हैं और यहाँ से “सयक़ूल” तक उनसे कलाम जारी है. कभी ईमान की याद दिलाकर दावत की जाती है, कभी डर दिलाया जाता है, कभी हुज्जत (तर्क) क़ायम की जाती है, कभी उनकी बदअमली पर फटकारा जाता है. कभी पिछली मुसीबतों का ज़िक्र किया जाता है.

     (2) यह एहसान कि तुम्हारे पूर्वजों को फ़िरऔन से छुटकारा दिलाया, दरिया को फाड़ा, अब्र को सायबान किया. इनके अलावा और एहसानात, जो आगे आते हैं, उन सब को याद करो. और याद करना यह है कि अल्लाह तआला की बन्दगी और फ़रमाँबरदारी करके शुक्र बजा लाओ क्योंकि किसी नेअमत का शुक्र न करना ही उसका  भुलाना है.

      (3) यानी तुम ईमान लाकर और फ़रमाँबरदारी करके मेरा एहद पूरा करो, मैं नेक बदला और सवाब देकर तुम्हारा एहद पूरा करूंगा. इस एहद का बयान आयत : “व लक़द अख़ज़ल्लाहो मीसाक़ा बनी इस्त्राईला” यानी और बेशक अल्लाह ने बनी इस्राइल से एहद लिया. (सूरए मायदा, आयत 12) में है.

     (4) इस आयत में नेअमत का शुक्र करने और एहद पूरा करने के वाजिब होने का बयान है और यह भी कि मूमिन को चाहिये कि अल्लाह के सिवा किसी से न डरे.

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*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*बद निगाही का वबाल*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     हज़रते ईसा عليه السلام फ़रमाया करते थे कि "बद निगाही दिल में शहवत का बीज बो देती है।"

     हज़रते हसन बसरी رحمة الله عليه फरमाते है कि "जिसने अपनी आंख को आज़ाद कर दिया उसके रन्ज बढ़ गए।"

     हज़रते इब्राहिम رحمة الله عليه फरमाते है: जो नुक़्शान किसी दुश्मन और हासिद से पहुंचता है मुझे वही नुक़्शान अपनी आंख और दिल से होता है।"

*✍️आंसुओं का दरिया* 90

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*नमाज़ का तरीका* #10


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*मर्द :* 

     रुकूअ में घुटनो को इस तरह हाथ से पकड़िये की हथेलिया घुटनो पर और उंगलिया अच्छी तरह फैली हुई हो। 

     पीठ बिछी हुई और सर पीठ की सीध में हो, उचा निचा न हो, और नज़र क़दमो पर हो।


*औरत :*

     रुकूअ में थोडा झुकिये यानि इतना की घुटनो पर हाथ रख दे ज़ोर न दीजिये और घुटनो को न पकड़िये और उंगलिया मिली हुई और पाउ झुके हुए रखिये मर्दों की तरह सीधे मत रखिये। 


     कम अज़ कम 3 बार रुकूअ की तस्बीह यानि "सुब्हान-रब्बियल-अज़ीम" (यानि पाक हे मेरा अज़मत वाला परवर दगार) कहिये। 

     फिर तस्मिअ यानि "समी-अल्लाहु-लीमन-हमीदह" (यानि अल्लाह ने उसकी सुनली जिसने उसकी तारीफ़ की) कहते हुए बिलकुल सीधे खड़े हो जाइये,


     इस खड़े होने को क़ौमा कहते है। अगर आप अकेले नमाज़ पढ़ रहे है तो इसके बाद "रब्बना-व-लकल-हम्द" या "अल्लाहुम्म-रब्बना-व-लकल-हम्द" (यानि ऐ अल्लाह ! सब खुबिया तेरे लिये है) कहिये


     फिर अल्लाहु अकबर कहते हुए सज्दे में जाए। 


बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله

*✍🏼नमाज़ के अहकाम, सफा 150*

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*तज़किरतुल अम्बिया* #218


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*हुद عليه السلام ने क़ौम को अज़ाब से डराया*

     हुद عليه السلام ने अपनी क़ौम को सीधी राह पर लाने की कोशिश सर्फ़ कर दी लेकिन क़ौम ने बूत परस्ती को न छोड़ा तो आपने कहा ऐ मेरी क़ौम अब अल्लाह के अज़ाब इन्तज़ार करो।

     आपने फ़रमाया मेने अल्लाह के पैगामात तुम तक पहुंचा दिये हैं तुम्हें कामयाबी का रास्ता बता दिया है लेकिन तुमने अपनी ज़िद न छोड़ी, बूत परस्ती पर क़ायम रहे अब रब का अज़ाब आने वाला है जो तुम्हें तबाह व बर्बाद कर देगा अगर तुम चाहो कि उसके अज़ाब का मुक़ाबला करो तो तुम ऐसा कभी नहीं कर सकोगे वो तो तुम्हें बर्बाद कर देगा लेकिन तुम उसका कुछ न बिगाड़ सकोगे और तुम्हें तुम्हे बर्बाद करने से उसकी बादशाहत में कोई फ़र्क़ नहीं आयेगा, इसलिये की वो कुदरत का मालिक है तुम्हारी जगह वो नई मख़लूक़ पैदा फरमा देगा जो उसकी इताअत करेंगे उसके हुक्म की बजा आवरी में कोई कमी नहीं होने देंगे।

     दुन्या में भी तूम पर शदीद अज़ाब आयेगा और आख़ेरत में भी, इसलिये कि जिस तरह रब की नेमतों का शुक्रिया अदा करना नेमतों की ज़्यादती का सबब बनता है उसी तरह अल्लाह की नेमतों का ठुकराना शदीद अज़ाब का ज़रिया है।

     अल्लाह ने इरशाद फ़रमाया : अगर तुमने शुक्रिया अदा किया तो में तुम्हें और (नेअमतें) दूंगा और अगर ना शुक्रि करेगा तो मेरा अज़ाब सख्त है।


*अज़ाब का खौफ दिलाने पर क़ौम का जवाब*

     क़ौम ने कहा हमें तुम्हारे अज़ाब के खौफ दिलाने की कोई फिक्र नहीं हम तुम्हारे वअज़ से नसीहत हासिल करने वाले नहीं। तुम भी पहले नबियों की तरह ही हमें अज़ाब से डरा रहे हो, ये तो साबिक़ा रस्म आ रही है, हम बड़ी ताक़त के मालिक है हमें कुछ नुक़्शान नहीं पहुंच सकता।

*✍️तज़किरतुल अम्बिया* 179

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*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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Sunday, 12 August 2018

क़ुरबानी की फ़ज़ीलत व मसाइल* #12


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*क़ुरबानी का जानवर ज़बह करने से पहले ये दुआ पढ़ी जाए*

اِنِّىْ وَجَّهْتُ وَجْهِيَ لِلَّذِيْ فَطَرَاسَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضَحَنِيْفًا وَمَآاَنَا مِنَ الْمُشْرِكِيْنَ o اِنَّ صَلَاتِىْ وَنُسُكِىْ وَمَحْيَاىَوَمَمَاتِىْ لِلّٰهِ رَبِّ الْعٰلَمِيْنَ o لَاشَرِيْكَ لَهُ وَبِذٰلِكَ اُمِرْتُ وَاَنَامِنَالْمُسْلِمِيْنَ

*तर्जमह :* मेने अपना मुह उस की तरफ किया जिसने आसमान व ज़मीन बनाए एक उसी का हो कर और में मुश्रिकों में नही। बेशक मेरी नमाज़ और मेरी कुरबानिया और मेरा जीना और मरना सब अल्लाह के लिये है जो रब सारे जहान का। उसका कोई शरीक नही मुझे यही हुक्म है और में मुसलमान में हु।


     और जानवर की गर्दनके क़रीब पहलू पर अपना सीधा पाउ रख कर اَللّٰهُمَّ لَكَ وَمِنْكَ بِسْمِ اللّٰهِ اللّٰهُاكْبَر  (*तर्जमह :* ऐ अल्लाह ! तेरे ही लिये और तेरी दी हुई तौफ़ीक़ से, अल्लाह के नाम से शुरू अल्लाह सबसे बड़ा है) पढ़ कर तेज़ छुरी से जल्द ज़बह कर दीजिये। क़ुरबानी अपनी तरफ से हो तो ज़बह के बाद ये दुआ पढ़िये :

اَللّٰهُمَّ تَقَبَّلْ مِنِّىْ كَمَا تَقَبَّلْتَ مِنْ خَلِيْلِكَاِبْرَاهِيْم عَلَيْهِ الصَّلٰةُ وَالسَّلَامُ وَحَبِيْبِكَ مُحَمَّدٍ صَلَّى اللّٰهُتَعَالٰى عَلَيْهِ وَاٰلهٖ وَسَلَّم

*तर्जमह :* ऐ अल्लाह ! तू मुझसे इस क़ुरबानी को क़ुबूल फरमा जैसा तूने अपने खलील इब्राहीम अलैहिस्सलाम और अपने हबीब मुहम्मद से क़बूल फ़रमाई।

     अगर दूसरे की तरफ सेक़ुरबानी करे तो مِنِّىْ के बजाए مِنْ कह कर उस का नाम लीजिये। (ब वक़्ते ज़बह पेट पर घुटना या पाउ न रखिये की इस तरह बाज़ अवक़ात खून के इलावा ग़िज़ा भी निकल ने लगती है)

*✍🏽बहारे शरीअत, 3/352*

*✍🏽अब्लाक़ घोड़े सुवार, 14*

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सूरतुल बक़रह, रुकुअ-4, आयत, ③⑧*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

हमने फ़रमाया तुम सब जन्नत से उतर जाओ फिर अगर तुम्हारे पास मेरी तरफ़ से कोई हिदायत आए तो जो मेरी हिदायत का पालन करने वाला हुआ उसे न कोई अन्देशा न कुछ ग़म (16)


*तफ़सीर*

     (16) यह ईमान वाले नेक आदमियों के लिये ख़ुशख़बरी है कि न उन्हें बड़े हिसाब के वक़्त ख़ौफ़ हो और न आख़िरत में ग़म. वो बेग़म जन्नत में दाख़िल होंगे.

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मुफ़लिस कौन?*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     हुज़ूर ﷺ ने एक दिन अपने सहाबए किराम से इरशाद फ़रमाया: क्या तुम जानते हो कि मुफ़लिस कौन है? अर्ज़ की या रसूलल्लाह ﷺ! हमारे नज़दीक मुफ़लिस वो है जिस के पास न तो दीनार हों न ही दिरहम हों। तो हुज़ूर ﷺ ने उनसे फ़रमाया: ऐसा नहीं बल्कि मुफ़लिस तो वो है जो क़यामत के दिन नमाज़, रोज़े, ज़कात और सदक़ा ले कर आएगा लेकिन उसने किसी को गाली दी होगी, किसी को थप्पड़ मारा होगा, किसी का माल दबा लिया होगा और किसी का खून बहाया होगा तो उसे इसकी नेकियाँ दी और फिर एक शख्स आएगा उसे भी इसी तरह इस कि नेकियाँ दे दी जाएगी यहां तक कि लोगों के हुक़ुक़ अदा करने से पहले ही इस कि नेकियाँ खत्म हो जाएंगी फिर इसे उनके गुनाह दे दिये जायेंगे तो इसे लोगों के गुनाहों की वजह से जहन्नम में फेंक दिया जाएगा, यही शख्स मुफ़लिस है।

*صحيح مسلم✍*

     हम ऐसी महरूमी से अल्लाह की पनाह चाहते है।

*✍आंसुओं का दरिया* 82

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*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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