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Saturday 8 September 2018

*तज़किरतुल अम्बिया* #242

بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

*हज़रत यसअ عليه السلام*

     आप को अल्लाह ने नबुव्वत अता फ़रमाई और इसके साथ ही आपको बादशाहत भी अता फ़रमाई। आप दिन को रोज़ा रखा करते थे और रात को अल्लाह के हुज़ूर खड़े होकर नवाफिल अदा करते थे। आपको किसी बात पर गुस्सा नहीं आता था। ख़ुसूसन आप अपनी उम्मत के मामलात में बड़ी मतानत से फैसला फरमाते, किसी किस्म की जल्दबाज़ी और गुस्सा से फैसला नहीं फरमाते थे।

     आप عليه السلام की वफात का वक़्त जब क़रीब आया तो बनी इस्राइल के कुछ बड़े आदमी मिलकर आपकी खिदमत में हाज़िर हुए कि आप बादशाहे में अपना जानशीन किसी को मुक़र्रर कर दे ताकि हम अपने मामलात में उसकी तरफ रुजू करें तो आप عليه السلام ने फरमाया मुल्क की बागडोर में उसके हवाले करूँगा जो मुझे तीन बातों की जमानत दे। किसी शख्स ने भी इस ज़िम्मेदारी को क़बूल करने की ज़मानत देने के मुतअल्लिक़ आपसे कोई बात न कि सिवाए एक नौजवान के, उसने कहा में ज़मानत देता हूँ आप ने उसे कहा बैठ जा। मक़सद ये था कि कोई और शख्स बात करे लेकिन फिर आपके कहने पर वही नौजवान ही खड़ा हुआ उसने ज़िम्मेदारी क़बूल करने की यक़ीन दहानी कराई।

     एक ये कि तमाम रात इबादत में गुज़ारनी है, सोना नहीं। दूसरी बात ये कि हर रोज़ दिन को रोज़ा रखना है। तीसरी चीज़ ये है कि गुस्सा की हालत में कोई फैसला नहीं करना।

     जब उस नौजवान ने तीन चीजों की ज़िम्मेदारी क़बूल कर ली तो आपने बादशाही का निज़ाम उसके सुपुर्द कर दिया। 

     ख्याल रहे कि नबुव्वत में खलीफा नहीं बनाया जा सकता अल्लाह जिसे चाहे नबी बना दे।

*✍️तज़किरतुल अम्बिया* 195

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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