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Saturday 1 September 2018

सूरतुल बक़रह, रुकुअ-7, आयत, ⑥ⓞ*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

और जब मूसा ने अपनी क़ौम के लिये पानी मांगा तो हमने फ़रमाया इस पत्थर पर अपनी लाठी मारो फ़ौरन उस में से बारह चश्में बह निकले(1) हर समूह ने अपना घाट पहचान लिया, खाओ और पियो ख़ुदा का दिया(2) और ज़मीन में फ़साद उठाते न फिरो(3)


*तफ़सीर*

     (1) जब बनी इस्राइल ने सफ़र में पानी न पाया तो प्यास की तेज़ी की शिकायत की. हज़रत मूसा को हुक्म हुआ कि अपनी लाठी पत्थर पर मारें.  आपके पास एक चौकोर पत्थर था. जब पानी की ज़रूरत होती, आप उस पर अपनी लाठी मारते, उससे बारह चश्मे जारी हो जाते, और सब प्यास बुझाते, यह बड़ा मोजिज़ा (चमत्कार) है. लेकिन नबियों के सरदार सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की मुबारक उंगलियों से चश्मे जारी फ़रमाकर एक बड़ी  जमाअत की प्यास और दूसरी ज़रूरतों को पूरा फ़रमाना इससे बहुत बड़ा और उत्तम चमत्कार है. क्योंकि मनुष्य के शरीर के किसी अंग से पानी की धार फूट निकलना पत्थर के मुक़ाबले में ज़्यादा आश्चर्य की बात है. (ख़ाज़िन व मदारिक)

     (2) यानी आसमानी खाना मन्न व सलवा खाओ और पत्थर के चश्मों का पानी पियो जो तुम्हें अल्लाह की कृपा से बिना परिश्रम उपलब्ध है.

     (3) नेअमतों के ज़िक्र के बाद बनी इस्राइल की अयोग्यता, कम हिम्मती और नाफ़रमानी की कुछ घटनाएं बयान की जाती हैं.

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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