بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ
اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ
हज़रते अली बिन मुहम्मद बिन इब्राहिम सफ़ार رحمة الله عليه से रिवायत है की एक रात में हज़रते अस्वद बिन सालिम رحمة الله عليه की खिदमत में हाज़िर हुवा आप मुसलसल ये अशआर पढ़े जा रहे थे और रोते जा रहे थे:
तर्जमा :
अपने रब की बारगाह में महशर का मैदान मेरे सामने है, वो मुझ से सुवाल करेगा और पोशीदा राज़ खुल जाएगा।
और मेरे लिये तो इतना ही काफी है की उस पुल (सिरात) से गुजरूं जो तलवार की धार की तरह है और उसके निचे दोज़ख है।
फिर आप ने एक चीख मारी और सुबह तक आप पर गशी तारी रही।
*नदामत से गुनाहों का इज़ाला कुछ तो हो जाता*
*हमें रोना भी तो आता नहीं हाए नदामत से*
*✍🏼आंसुओं का दरिया* 47
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*DEEN-E-NABI ﷺ*
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