بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ
اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ
*सवाल*
दिल में ना पसन्दीदा और कुफ़्रिय्या बातों का पैदा होना भी कुफ्र है?
*जवाब*
दिल में ना पसन्दीदा और कुफ़्रिय्या बातों का पैदा होना कुफ्र नहीं जब कि ज़बान से उन का अदा करना बुरा जानता हो। चुनान्चे शरहे फ़िक़हे अकबर में है: जिस शख्स के दिल पर ऐसी बात गुज़रे कि जिस का कहना कुफ्र हो और वो उसे ना पसन्द करते हुए न कहे तो ये खालिस ईमान है।
दावते इस्लामी के बहार शरीअत जिल्द दुवुम सफहा 456 पर है: कुफ्री बात का दिल में ख्याल पैदा हुवा और ज़बान से बोलना बुरा जानता है तो ये कुफ्र नहीं बल्कि खास ईमान की अलामत है कि दिल में ईमान न होता तो उसे बुरा क्यूं जानता।
(कुफ़्रिय्या कलिमात के बारे में मज़ीद तफ़सीलात जानने के लिये "कुफ़्रिय्या कलिमात के बारे में सुवाल जवाब" का मुतालआ कीजिये)
*✍तजदिदे ईमान व निकाह का आसान तरीक़ा* 6
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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