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Saturday 11 August 2018

*तज़किरतुल अम्बिया* #217


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*हूद عليه السلام की क़ौम लोगों के साथ तमसखुर के लिये बुलन्द निशान बनाती*

     "क्या हर बुलन्दी पर एक निशान बनाते हो राहगीरों से हंसने को।" इस आयत की तफ़्सीर में मुख्तलिफ अक़वाल है।

     एक क़ौल यह है कि वो बुलन्द महल बनाते ताकि गुज़रने वाले लोग उनकी शान से वाकिफ हों, ये काम चूंकि बे फायदा था इसलिये ता बिसुन कहा गया है और हमारी शरीअत में भी बगैर गर्ज़ शरई के बुलन्द तामिरात की मज़म्मत बयान की गई है और हुज़ूर ﷺ ने नापसन्द फ़रमाया।

     दूसरा क़ौल ये है कि वो बुलन्द इमारतें इसलिये तामीर करते थे ताकि गुज़रने वाले उनसे रहनुमाई हासिल करें, हालांकि उनका ये काम भी बे मक़सद और बे फायदा था क्योंकि सितारों सूरज वगैरह से रहनुमाई हासिल की जाती है। बादल वगैरह का छा जाना कभी कभी होता है और ख़ुसूसन अरब के शहरों में तो बहुत ही कम वाके होता है।

     तीसरा क़ौल ये है कि वो बुलन्द ब्रिज बनाते ताकि कबूतरों के साथ खेल में मशगूल हो सकें, यानी वो कबूतर बाज़ी के लिये अबस तौर पर बुलन्द ब्रिज तामीर करते।

     चौथा क़ौल ये है कि वो पहाड़ में रास्ता पर मकान तामीर करते थे ताकि चुंगी हासिल कर सके।

     पांचवां क़ौल ये है कि वो बुलन्द मक़ामात पर बुलन्द इमारतें तामीर करते थे ताकि वो रास्ते से गुज़ने वालो से मज़ाह कर सकें, उनका तमसखुर उड़ा सकें इसी आखरी क़ौल के मुताबिक़ आला हज़रत رحمة الله عليه ने तर्जमा किया है।


*रहने के लिये मजबूत महल बनाते*

     हूद عليه السلام ने क़ौम को समझाया कि तुम्हारे तौर तरीके ऐसे हैं कि तुम समझते हो तुम को हमेशा दुन्या में रहना है हालांकि दुन्या फानी है इसमें हमेशा के लिये दिल न लगाओ।


*हूद عليه السلام की क़ौम दूसरे लोगों पर ज़ुल्म करती*

     वो जब किसी पर गिरफ्त करते तो उसे कोड़े मारते और तलवार से ज़र्ब लगाते या ज़ालिमों को उनपर मुसल्लत करते, जिन्हें कुछ रहम न आता और अदब सिखाने का इरादा भी नहीं होता था और अच्छे अंजाम की तरफ भी नज़र नहीं होती थी। इन अफ़आले क़बिहा पर हूद عليه السلام ने क़ौम की मज़म्मत की।

*✍तज़किरतुल अम्बिया* 176

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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