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Friday 17 August 2018

*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-5, आयत, ④⑤*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

और सब्र और नमाज़ से मदद चाहो और बेशक नमाज़ ज़रूर भारी है मगर उनपर (नही) जो दिल से मेरी तरफ़ झुकते हैं (9)


*तफ़सीर*

     (9) यानी अपनी ज़रूरतों में सब्र और नमाज़ से मदद चाहों. सुबहान अल्लाह, क्या पाकीज़ा तालीम है. सब्र मुसीबतों का अख़लाक़ी मुक़ाबला है. इन्सान इन्साफ़ और सत्यमार्ग के संकल्प पर इसके बिना क़ायम नहीं रह सकता. सब्र की तीन क़िस्में हैं- (1) तकलीफ़ और मुसीबत पर नफ़्स को रोकना, (2) ताअत (फरमाँबरदारी) और इबादत की मशक़्क़तों में मुस्तक़िल (अडिग) रहना, (3) गुनाहों की तरफ़ खिंचने से तबीअत को रोकना. कुछ मुफ़स्सिरों ने यहां सब्र से रोज़ा मुराद लिया है. वह भी सब्र का एक अन्दाज़ है. इस आयत में मुसीबत के वक़्त नमाज़ के साथ मदद की तालीम भी फ़रमाई क्योंकि वह बदन और नफ़्स की इबादत का संगम है और उसमें अल्लाह की नज़्दीकी हासिल होती है. हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम अहम कामों के पेश आने पर नमाज़ में मश़्गूल हो जाते थे. इस आयत में यह भी बताया गया कि सच्चे ईमान वालों के सिवा औरों पर नमाज़ भारी पड़ती है.

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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