*अहकामे रोज़ा* #22
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
*_रोज़ा तोड़ने वाली बाते_* #02
★ सोते में (या नींद की हालत में) पानी पी लिया या कुछ खा लिया, या मुह खुला था, पानी का क़तरा या बारिश का ओला हल्क़ में चला गया तो रोज़ा टूट गया।
★ दूसरे का थूक निगल लिया या अपना ही थूक हाथ में ले कर निगल लिया तो रोज़ा टूट गया।
जब तक थूक बलगम मुह के अंदर मौजूद हो उसे निगल जाने से रोज़ा नही टूटता, बार बार थूकते रहना ज़रूरी नही।
★ मुह में रंगीन डोरा वगैरा रखा जिस से थूक रंगीन हो गया फिर वो रंगीन थूक निगल गए तो रोज़ा टूट गया।
★ आसु मुह में चला गया और आप उसे निगल गए। अगर क़तरा दो क़तरा है तो रोज़ा न गया और ज़्यादा था की उस की नमकिनी पुरे मुह में महसूस हुई तो रोज़ा टूट गया। पसीने का भी यही हुक्म है।
★ फुज़ले का मक़ाम बाहर निकल आया तो हुक्म ये है की खूब अच्छी तरह किसी कपड़े वगैरा से पूछ कर उठे ताकि तरी बाक़ी न रहे। अगर कुछ पानी उस पर बाक़ी था और खड़े हो गए जिस की वजह से पानी अन्दर चला गया तो रोज़ा फासिद हो गया। इसी वजह से फुकहाऐ किराम फ़रमाते है की रोज़ादार इस्तिन्ज़ा करने में सास न ले।
*✍🏼फ़ज़ाइले रमज़ान, 203*
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, गर होजाये यक़ीन के.. अल्लाह सबसे बड़ा है..अल्लाह देख रहा है..
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Thursday, 24 May 2018
*अहकामे रोज़ा* #21
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
*_रोज़ा तोड़ने वाली बाते_* #01
★ खाने, पीने या हम बिस्तरी करने से रोज़ा जाता रहता है जब की रोज़ादार होना याद हो।
*✍🏼रद्दुल मुहतार, 3/365*
★ शकर वगैरा ऐसी चीज़े जो मुह में रखने से घुल जाती है मुह में रखी और थूक निगल गए रोज़ा जाता रहा।
*✍🏼बहारे शरीअत, 5/117*
★ दातो के दरमियान कोई चीज़ चने के बराबर या ज़्यादा थी उसे खा गए या कम ही थी मगर मुह से निकाल कर फिर खा ली तो रोज़ा टूट गया।
*✍🏼दुर्रे मुख्तार, 3/394*
★ दातो से खून निकल कर हल्क़ से निचे उतरा और खून थूक से ज़्यादा या बराबर या कम था मगर इस का मज़ा (टेस्ट) हल्क़ में महसूस हुवा तो रोज़ा जाता रहा और अगर कम था और मज़ा हल्क़ में महसूस न हुवा तो रोज़ा न गया।
*✍🏼दुर्रे मुख्तार, रद्दुल मुहतार, 3/368*
★ रोज़ा याद रहने के बा वुजूद हुक़्ना (यानि किसी दवा की बत्ती या पिचकारी पीछे के मक़ाम में चढ़ाना जिस से इजाबत हो जाए) लिया। या नाक के नथनों से दवाई चढ़ाई रोज़ा टूट गया।
*✍🏼आलमगिरी, 1/204*
★ कुल्ली कर रहे थे बिला क़स्द पानी हल्क़ से उतर गया या नाक में पानी चढ़ाया और दिमाग को चढ़ गया रोज़ा जाता रहा। यु ही रोज़ादार की तरफ किसी ने कोई चीज़ फेकी वो उस के हल्क़ में चली गई तो रोज़ा टूट गया।
बाक़ी अगली पोस्ट में..أن شاء الله
*✍🏼फ़ज़ाइले रमज़ान, 201*
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*नमाज़े जनाज़ा का तरीका* #04
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*_जनाज़ा देख कर पढ़ने का विर्द_*
हज़रते मालिक बिन अनसرضي الله تعالي عنه को बादे वफ़ात किसी ने ख्वाब में देख कर पूछा : अल्लाह ने आप के साथ क्या सुलूक किया ? कहा : एक कलिमे की वजह से बख्श दिया जो हज़रते उष्मानرضي الله تعالي عنه जनाज़े को देख कर कहा करते थे।
سُبْحٰنَ الْحَيِّ الَّذِيْ لَايَمُوْت
सुब्हान-ल हय्यिल-लज़ी ला-यमुत
_तर्जमा_
वो ज़ात पाक है जो ज़िन्दा है उसे कभी मौत नही आएगी।
लिहाज़ा में भी जनाज़ा देख कर यही कहा करता था ये कलिमा कहने के सबब अल्लाह ने मुझे बख्श दिया।
*✍🏼अहयाउल उलूम 5/266*
*हुज़ूरﷺ ने सबसे पहला जनाज़ा किस का पढ़ा ?*
नमाज़े जनाज़ा की इब्तिदा हज़रते आदम अलैहिस्सलाम के दौर से हुई है, फरिश्तों ने हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के जनाज़ए मुबारक पर 4 तकबीर पढ़ी थी।
इस्लाम में वुजूबे नमाज़े जनाज़ा का हुक्म मदीना में नाज़िल हुवा। हज़रते असअद बिन ज़ुरराहرضي الله تعالي عنه का विसाले मुबारक हिज़रत के बाद 9वे महीने के आखिर में हुवा और ये पहले सहाबी की मैयित थी जिस पर नबीﷺ ने नमाज़े जनाज़ा पढ़ी।
*✍🏽फतावा रज़विय्या 5/375*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम 272*
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*अहकामे रोज़ा* #20
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
*_इफ्तार के वक़्त दुआ क़बूल होती है_*
फरमाने मुस्तफा صلى الله عليه وسلم : बेशक रोज़ादार के लिये इफ्तार के वक़्त एक ऐसी दुआ होती है जो रद नही की जाती।
*अत्तरगिब् वत्तरहिब, 2/53, हदिष:29*
फरमाने मुस्तफा صلى الله عليه وسلم : तीन शख्स की दुआ रद नही की जाती...
1. रोज़ादार की बी वक़्ते इफ्तार
2. बादशाहे आदिल
3. मज़लूम
इन तीनो की दुआ अल्लाह बादलो से भी ऊपर उठा लेता है और आसमानों के दरवाज़े उस के लिये खुल जाते है और अल्लाह फ़रमाता है, मुझे मेरी इज़्ज़त की क़सम ! में तेरी ज़रूर मदद फरमाउंगा अगर्चे कुछ देर बाद हो।
*✍🏼सुनने इब्ने माजह, 2/349, हदिष:1752*
*_दुआ के तीन फ़वाइद_*
फरमाने मुस्तफा صلى الله عليه وسلم : दुआ बन्दे की तिन बातो से खाली नही होती (1) या उसका गुनाह बख्शा जाता है। यव(2) उसे फायदा हासिल होता है। या (3) उसके लिये आख़िरत में बलाई जमा की जाती है की जब बन्दा आख़िरत में अपनी दुआओ का षवाब देखेगा जो दुन्या में मक़बूल न हुई थी, तो तमन्ना करेगा, काश ! दुन्या में मेरी कोई दुआ क़बूल न होती और सब यही (यानी आख़िरत) के वासिते जमा हो जाती।
*✍🏼अत्तरगिब् वत्तरहिब, 2/315*
देखा आप ने, दुआ राएगा तो जाती ही नही। इस का दुन्या में अगर असर ज़ाहिर न भी हो तो आख़िरत में अज्र व षवाब मिल ही जाएगा। लिहाज़ा दुआ में सुस्ती करना मुनासिब नही।
*✍🏼फ़ज़ाइले रमज़ान, 186*
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*हज़रते अम्मार और उनके वालिदैन* : #39
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْم
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जब हुज़ूर ﷺ हिजरत फरमा कर मदीना तशरीफ़ ले गए तो हुज़ूर ﷺ से अम्मार रदिअल्लाहो तआला अन्हो ने अर्ज़ किया कि हुजूर ﷺ के लिये एक साया दार मकान बनाना चाहिये जिस में तशरीफ़ रखा करें और दोपहर को आराम लिया करें और नमाज़ भी साए में पढ़ लिया करें, तो कुबा में हज़रते अम्मार रदिअल्लाहो तआला अन्हो ने अव्वल पथ्थर जमा किये और फिर मस्जिद बनाई। लड़ाई में निहायत जोश से शरीक होते थे।
एक मरतबा वज्द में आ कर कहने लगे: अब जा कर दोस्तों से मिलेंगे, मुहम्मदﷺ और उन की जमाअत से मिलेंगे। इतने में प्यास लगी और पानी किसी से मांगा उस ने दूध सामने किया उस को पिया और पी कर कहने लगे: मैं ने हुज़ूर ﷺ से सुना कि तू दुन्या में सब से आख़िरी चीज़ दूध पियेगा, इसके बाद शहीद हो गए, उस वक्त चैरानवे बरस की उम्र थी। बा'ज़ ने एक आधा साल कम बतलाई है।
उनकी वालिदा हज़रते सुमैया बिन्ते खुब्बात रदिअल्लाहो तआला अन्हा मज़लूमाना शहादत के इलावा और भी सख्तियां झेल चुकी है, उन की गर्मी के वक्त सख्त धूप में कंकरियों पर डाला जाता , लोहे की ज़िरह पहना कर खड़ा किया जाता ताकि धूप की गर्मी से लोहा तपने लगे। हुजूर ﷺ का उधर से गुज़र होता तो सब्र की तलकीन और जन्नत का वादा फ़रमाते यहां तक कि सब से बड़े दुश्मने इस्लाम अबू जहल के हाथों उन की शहादत हुई।
बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله
*✍🏼सहाबएकिराम का इश्के रसूलﷺ* पेज 113
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*पहला अशरा _रहमत_ का*
रमज़ान के 1 से 10 रोज़े इस दुआ को कसरत से पढ़ा कीजिये।
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
يٙا حٙـيُّ يٙا قٙـيُّـوْمُ بِـرٙ حْـمٙـتِـكٙ اٙسْـتٙـغِـيْـثُ
या हय्यु या क़य्युमु बीर-हमतीक अस्तगीषु।
*तर्जमा* : अय ज़िन्दगी अता फरमाने वाले.. अय हमेशा क़ायम रहने वाले.. तेरी रहमत से मेरी प्यास बुजा...
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*सेहरी का नायाब तोहफा*
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اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
हुज़ूर صلى الله عليه وسلم ने फ़रमाया जो कोई इस दुआ को *सहरी के वक़्त 7 मर्तबा* पढ़ेगा अल्लाह हर सीतारे के बदले ऊसे एक हज़ार नेकियां अता फ़रमाएगा, इतने ही गून्ह मिटाएगा और उसी क्द्र उस के दरजात बूलंब फरमाएगा
لٙآاِلٰهٙ اِلّٙااللّٰهُ الْحٙـيُّ الْقٙـيُّوْمُ القٓاىِٔمُ عٙلٰى كُلِّ نٙفْسِ بِمٙا كٙسٙبٙتٙ.
*तर्जमा* : अल्लाह के सिवा कोई मअबूद नही वो ज़िन्दा है हमेशा बाक़ी रहेगा और क़ायम है हर नफ़्स पर जो तुम छुपाते हो।
*रोज़े की निय्यत*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
نٙـوٙيـتُ اٙنْ اٙصُـوْ مٙ غٙـدًالِلّٰهِ تٙـعٙـالىٰ مِـنْ فٙـرْضِ رٙمٙـضٙانْ
*तर्जमा* : में ने निय्यत की कि अल्लाह के लिये इस रमज़ान का फ़र्ज़ रोज़ा कल रखूंगा।
*अगर दिन में निय्यत करे तो यु कहे*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
نٙـوٙيـتُ اٙنْ اٙصُـوْ مٙ هٰـذا الْـيٙـوْمٙ لِلّٰهِ تٙـعٙـالىٰ مِـنْ فٙـرْضِ رٙمٙـضٙانْ
*तर्जमा* : में ने निय्यत की कि अल्लाह के लिये इस रमज़ान का फ़र्ज़ रोज़ा रखूंगा।
*नोट :* जिन्हें अरबी न आती हो वो तर्जमा पढ़ के निय्यत करले।
*रमज़ान की बरक़त :*
इफ्तार और सहरी के वक़्त दुआ क़बूल होती है। यानि *इफ्तार करते वक़्त* और *सहरी खा कर*।
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*अहकामे रोज़ा* #19
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*_क़र्ज़ से नजात का अमल_*
हर नमाज़ के बाद 7 बार सूरए कुरैश (अव्वल आखिर दुरुद शरीफ) पढ़ कर दुआ मांगिये। पहाड़ जितना क़र्ज़ होगा तब भी أن شاء الله अदा हो जाएगा।
अमल ता हुसुले मुराद जारी रखिये।
*_कर्ज़ा उतारने का वज़ीफ़ा_*
اٙللّٰهُمّٙ اكْفِـنِىْ بِـحٙـلٙالِكٙ عٙنْ حٙرٙامِكٙ وٙاٙغْـنِـنِىْ بِـفٙـضْـلِكٙ عٙـمّٙـنْ سِوٙاكٙ
*तर्जमा* : या अल्लाह मुझे हलाल रिज़्क़ अता फरमा कर हराम से बचा और अपने फज़्लो करम से अपने सिवा गैरो से बे नियाज़ कर दे।
हर नमाज़ के बाद 11 बार और सुबहो, शाम 100, 100 बार रोज़ाना (अव्वल आखिर दुरुद शरीफ) पढ़िये।
*_मदनी इल्तिज़ा_*
अमल शुरू करने से क़ब्ल गुजुरे गौषे आज़म رضي الله عنه के ईसाले षवाब के लिये कम अज़ कम 11 रूपये की नियाज़ और काम हो जाने की सूरत में कम अज़ कम 25 रुपये की नियाज़ इमाम अहमद रज़ा खान رحمة الله عليه के ईसाले षवाब के लिये तक़सीम कीजिये।
*✍🏼फ़ज़ाइले रमज़ान, 165*
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*तस्बीह*
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अब तक के जितने विर्द आये वो सभी विर्द आसिनी से पढ़ ने के लिये ये तस्बीह लोड कर लीजिये।
इसे लोड करने के बाद निचे दी हुई pdf लोड कर के उसमे बताये मुताबिक़ सेटिंग्स कर लीजिये।
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*एक हज़ार दीन की नेकियां*
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फरमाने मुस्तफा ﷺ: इसको पढ़ने वाले के लिये सत्तर फ़रिश्ते एक हज़ार दीन तक नेकियां लिखते है।
جٙزٙى اللّٰهُ عٙنّٙا مُحٙمّٙدًا مٙاهُوٙاٙهْلُهُ
*✍🏽مجمع الزوائد*
*हर रात इबादत में गुज़ारने का आसान नुस्खा*
गराइबुल क़ुरआन पर एक तिवायत नक़्ल की गई है कि जो शख्स रात में इसे 3 मर्तबा पढ़ लेगा तो गोया उसने शबे क़द्र पा लिया।
لٙآاِلٰهٙ اِلّٙااللّٰهُ الْحٙلِيْمُ الْكٙرِيْمٙ، سُبٙحٰنٙ اللّٰهِ رٙبِّ السّٙمٰوٰتِ السّٙبْعِ وٙرٙبِّ الْعٙرْشِ الْعٙظِيْم
*तर्जमा* : खुदाए हलीम व करीम के सिवा कोई इबादत के लाइक नहीं। अल्लाह पाक है जो सातों आसमानों और अर्शे अज़ीम का परवर दगार है।
*✍🏽फ़ैज़ाने सुन्नत*
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*इफ्तार की दुआ*
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اٙلـلّٰـهُـمّٙ اِنّـِـىْ لٙكٙ صُـمْـتُ وٙبِـكٙ اٰمٙـنْـتُ وٙعٙـلٙـيْـكٙ تٙـوٙ كّٙـلْـتُ وٙعٙـلٰـى رِزْقِـكٙ اٙفْـطٙرْتُ
*तर्जमा* : ऐ अल्लाह में ने तेरे लिये रोज़ा रखा और तुझही पर ईमान लाया और तुझही पर भरोसा किया और तेरे दिये हुए रिज़्क़ से रोज़ा इफ्तार किया।
يا وَاسِعَ الْمَغْفِرَةِ اِغْفِرْلِي
*तर्जमा* : ऐ वसी मगफिरत वाले मेरी मगफिरत फरमा।
ये दुआ खाने के एक लुकमे के बाद पढ़े, ये सिर्फ रमज़ान के लिये नहीं बल्कि जब भी खाना खाये इस दुआ को पढ़ लिया जाये।
*नोट :* ये दुआ खजूर खाने के बाद पढ़े। जिन्हें अरबी न आती हो वो तर्जमा पढ़ले।
*रमज़ान की बरक़त :*
इफ्तार और सहरी के वक़्त दुआ क़बूल होती है। यानि *इफ्तार करते वक़्त* और *सहरी खा कर*.
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*अहकामे रोज़ा* #18
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
*_सहरी करना सुन्नत है_*
अल्लाह का करोड़ हा एहसान की उस ने हमे रोज़े जेसी अज़ीमुश्शान नेअमत अता फ़रमाई और साथ ही कुव्वत के लिये सहरी की न सिर्फ इजाज़त फ़रमाई बल्कि इस में हमारे लिये ढेरो षवाब भी रख दिया।
हमारे प्यारे आक़ा صلى الله عليه وسلم अगर्चे खाने, पीने के हमारी तरह मोहताज नही। ता हम हमारे प्यारे आक़ा صلى الله عليه وسلم हम गुलामो की खातिर सहरी फ़रमाया करते ताकि महब्बत वाले गुलाम अपने आक़ा की सुन्नत समज कर सहरी कर लिया करे। यु उन्हें दिन के वक़्त रोज़े में कुव्वत के साथ साथ सुन्नत पर अमल करने का षवाब भी हाथ आए।
बाज़ इस्लामी भाइयो को देखा गया है की कभी सहरी करने से रह जाते है तो फिख्रिया बाते बनाते है और कहते है, हमने तो सहरी के बगैर ही रोज़ा रख लिया। सहरी के बगैर रोज़ा रखना कोई कमाल तो नही जिस पर फख्र किया जा रहा है। बल्कि सहरी की सुन्नत छूटने पर नदामत होनी चाहिये, अफ़सोस करना चाहिये की हुज़ूर صلى الله عليه وسلم की एक अज़ीम सुन्नत छूट गई।
*_हज़ार साल की इबादत से बेहतर_*
हज़रते शैख़ शरफुद्दीन अल मारूफ़ बाबा बुलबुल शाह رحمة الله عليه फ़रमाते है, अल्लाह ने मुझे अपनी रहमत से इतनी ताक़त बख्शी है की में बगैर खाए, पिये और बगैर साज़ो सामान के अपनी ज़िन्दगी गुज़ार सकता हु। मगर चुकी ये उमूर हुज़ूर صلى الله عليه وسلم की सुन्नत नही है इस लिये में इन से बचत हु, _मेरे नज़दीक सुन्नत की पैरवी हज़ार साल की इबादत से बेहतर है।_
*✍🏼फ़ज़ाइले रमज़ान*
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*अहकामे रोज़ा* #17
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
*_सोने के बाद सहरी की इजाज़त न थी_*
रात को उठ कर सहरी करने की इजाज़त नही थी. रोज़ा रखने वाले को गुरुबे आफ़ताब के बाद सिर्फ उस वक़्त तक खाने पिने की इजाज़त थी जब तक वो सो न जाए. अगर सो गया तो अब बेदार हो कर खाना पीना ममनुअ था। मगर अल्लाह ने अपने प्यारे बन्दों पर एहसान अज़ीम फ़रमाते हुए सहरी की इजाज़त दी और इस का सबब यु हुवा....
*_सहरी की इजाज़त की हिकायत_*
हज़रते सरमा बिन क़ैस رضي الله عنه मेहनती शख्स थे। एक दिन बी हालते रोज़ा अपनी ज़मीन में दिन भर काम कर के शाम को घर आए। अपनी ज़ौजा से खाना तलब किया, वो पकाने में मसरूफ़ हुई। आप थके हुए थे, आँख लग गई। खाना तैयार कर के जब आप को जगाया गया तो आप ने खाने से इनकार कर दिया। क्यू की उन दिनों (गुरुबे आफ़ताब के बाद) सो जाने वाले के लिये खाना पीना ममनुअ हो जाता था। चुनान्चे खाए पाई बगैर आप ने दूसरे दिन भी रोज़ा रख लिया। आप कमज़ोरी के सबब बेहोश हो गए।
*✍🏼तफ्सिरल ख़ाज़िन, 1/126*
तो इन के हक़ में ये आयते मुक़द्दसा नाज़िल हुई : और खाओ और पियो यहा तक की तुम्हारे लिये ज़ाहिर हो जाए सपेदी का डोरा सियाही के डोरे से पो फट कर। फिर रात आने तक रोज़े पुरे करो।
पारहा, 2 अल बक़रह, 187
इससे ये मालुम हुवा की रोज़े का अज़ान फज्र से कोई तअल्लुक़ नही यानी फज्र की अज़ान के दौरान खाने पिने का कोई जवाज़ ही नही। अज़ान हो या न हो आप तक आवाज़ पहुचे या न पहुचे सुब्हे सादिक़ होते ही आप को खाना पीना बिल्कुल ही बन्द करना होगा।
*✍🏼फ़ज़ाइले रमज़ान, 155*
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
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*दीन का मज़ाक*
*हम ऐसे दौर ए जहालत में जी रहे हैं*
*जहाँ दीन का मज़ाक़ ख़ुद मुसलमान बना रहा है*
*अभी रमज़ान शरीफ का पाक मुबारक और रह़मतों वाला महीना चल रहा है*
*मगर कुछ बेशर्मों को थोड़ी बहुत भी शर्म नही है*
*वो लोग इस पर भी मज़ाक़ बनाने में नहीं चूक रहे जैसे अभी कुछ मैसेज बहुत चल रहे हैं मेरे पास भी Whatsapp पर कई मैसेज आये और शायद आपने भी पढ़े होंगे*
*जैसे*
*रोज़ा लगे तो ये दुआ पढ़ें अल चटनी वल समोसा इन्ना कबाबुल क़ीमा मिन्नका कोफ्ता वल बिरयानी या पानी या पानी या पानी*
*इस मैसेज में रोज़े का मज़ाक़ उड़ाया गया है*
*एक पठान बिना टिकट ट्रेन में सफर करने लगा टी. टी. आया तो पठान नमाज़ पढ़ने खड़ा हो गया*
*टी. टी. एक आदमी के पास में बैठकर उसका इंतज़ार करने लगा पठान गुस्से में जोर से बोला*
*निययत करता हूँ मैं 100 रकअ़त नमाज़ की लखनऊ से सहारनपुर तक अल्लाहु अकबर* टी. टी. बेहोश
*इस मैसेज में नमाज़ का मज़ाक़ उड़ाया गया हे*
*बीवी को शॉपिंग नहीं करना हो तो एअ़तेक़ाफ में बैठ जाओ*
*ऐ अल्लाह! मेरे अगले पिछले तमाम गुनाह मेरे दोस्तों के नामाए अ़माल में ड़ाल दे*
*इस मेसेज में एअ़तेक़ाफ और दुआ़ का मज़ाक़ उड़ाया गया हे*
*और अब ये नया*
*खतरनाक धमकी*
*रमज़ान में जो मुझे दुआ में भूल जाये उसके पकौड़े जल जाये ,समोसे खुल जाये , खाने में नमक ज़्यादा हो जाये और रूहअफजा में मक्खी गिर जाये , मस्जिद में उसको जगह न मिले बिरयानी में बोटी न मिले और मस्ज़िद से बाहर आये तो चप्पल भी न मिले*
*इसलिए दुआ में याद रखना
*भाई लोगो अल्लाह और उसके ग़ज़ब से डरो*
*जो ऐसे मैसेज बनाता है वो गुनाहगार*
*दूसरों को फारवर्ड करने वाला गुनाहगार*
*पढने वाला गुनाहगार*
याद रखो! अल्लाह के यहाँ तुम्हारी ऐसी पकड़ होगी कि आप सोच भी नहीं सकते
क़ुरआन की आयात और अल्लाह के पाक महीने का मज़ाक़ बना कर और लोगों से बनवा कर तुम कितना बड़ा गुनाह कर रहे हो ज़रा सोचो क्या फर्क़ रह गया तुम में और यहूद-उ-नसारा में?
मेरे इस्लामी भाइयों! ऐसे मैसेज! से बचो और नाज करो अपनी क़िस्मत पर आप सभी को दीन इस्लाम मिला
*अल्लाह सुबह़ान वा तअला सभी को कहने और सुनने से ज़्यादह अ़मल करने की तौफीक़ अता फरमाये*
Wednesday, 23 May 2018
*नमाज़े जनाज़ा का तरीका* #03
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
*_नमाज़े जनाज़ा बाइसे इब्रत है_*
हज़रते अबू ज़रرضي الله تعالي عنه गिफारि का इरशाद है, मुझसे हुज़ूरﷺ ने फ़रमाया : क़ब्रो की ज़ियारत करो ताकि आख़िरत की याद आए और मुर्दे को नहलाओ की फानी जिस्म का छूना बहुत बड़ी नसीहत है और नमाज़े जनाज़ा पढ़ो ताकि ये तुम्हे गमगीन करे क्यू की गमगीन इंसान अल्लाह के साए में होता है और नेकी का काम करता है।
*✍🏽अल मुस्तदरक लिलहकिम 1/711*
*_मैय्यत को नहलाने वगैरा की फ़ज़ीलत_*
हज़रते अली मुर्तजा शेरे खुदाرضي الله تعالي عنه से रिवायत है के हुज़ूरﷺ ने इरशाद फ़रमाया कि जो किसी मैयित को नहलाए, कफ़न पहनाए, खुशबु लगाए, जनाज़ा उठाए, नमाज़ पढ़े और जो नाक़ीस बात नज़र आए उसे छुपाए वो अपने गुनाहो से ऐसा पाक हो जाता है जैसा जिस दिन माँ के पेट से पैदा हुवा था।
*✍🏽इब्ने माजह 2/201*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम 271*
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