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Wednesday 17 January 2018

*कलिमा ए आग़ाज़*  #4
   بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْم
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

      ज़रूरत है कि हम सहाबा रिज़वानुल्लाहे तआला अलैहिम अज़्मइन की महफ़िल में चले, फत्हो ज़फ़र जिन के कदम चूमती थी, इश्के रसूल ﷺ  जिन की मताए ज़िन्दगी, इत्तेबाए रसूल ﷺ जिन का सरमायाए हयात, और जहांबानी जिन की तकदीर बन चुकी थी। हम उन्हें देखे की जाते रसूल ﷺ से उनका कैसा वालिहाना तअल्लुक था। उन की बारगाह में पहुंच कर उन से दर्से महब्बत हासिल करें।
      मगर अब वोह महफिलें, वोह रफ़ाकतें, वोह सआदतें कहां नसीब? वोह बे बहा वोह जहां आरा महब्बत, वोह हशरे बद अमां शरारे इश्क हमारी खाकिस्तर में आए तो क्यूं कर आए?
      मैं कहता हूं हम अपनी निगाहे बसीरत तेज़ करें और सहाबए किराम रिज़वानुल्लाहे तआला अलैहिम अज़्मइन के वाक़िआत में उनकी चलती फिरती ज़िन्दगी देखे, बारगाहे रसूल ﷺ में उनकी मुकद्दस व बा अज़मत अदाओं का मुशाहदा करें। चश्मे तसव्वुर से लौहे दिल पर उनके पाकीज़ा इश्क का नक्शा उतारें। इस तरह गोया हम भी सहाबए रसूल ﷺ की महफ़िल में होंगे और उनका फैज़ाने इश्क कुछ हमारे ऊपर भी जल्वागर होगा।
बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله
*✍🏼सहाबएकिराम का इश्के रसूलﷺ* पेज 18,19
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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