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Tuesday 22 May 2018

*अहकामे रोज़ा* #15
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
*_आज़ा के रोज़ो की तारीफ़_*
     आज़ा का रोज़ा यानी जिस्म के तमाम हिस्सों को गुनाहो से बचाना, ये सिर्फ रोज़ा ही के लिये मख़्सूस नही बल्कि पूरी ज़िन्दगी इन आज़ा को गुनाहो से बचाना ज़रूरी है और ये जभी मुमकिन है की हमारे दिलो में ख़ौफ़ेखुदा रासिख हो जाए।
     आह ! क़यामत के उस होशरुबा मन्ज़र को याद कीजिये जब हर तरफ "नफ्सी नफ्सी" का आलम होगा। सूरज आग बरसा रहा होगा। ज़बाने शिद्दते प्यास के सबब मुह से बाहर निकल पड़ी होगी। बीवी शौहर से, माँ अपने लख्ते जिगर से और बाप अपने नुरे नज़र से नज़र बचा रहा होगा। मुजरिमो को पकड़ पकड़ कर लाया जा रहा होगा। उन के मुह पर मोहर मार दी जाएगी और उन के आज़ा उन के गुनाहो की दास्तान सुना रहा होंगे जिस का क़ुरआन की सूरए यासीन की आयत 65 में यु तज़किरा किया गया है :
     "आज हम इन के मुहो पर मोहर कर देंगे और उन के हाथ हम से बात करेंगे और उन के पाँव उन के किये की गवाही देंगे।"
     आह ! क़यामत के उस कड़े वक़्त से अपने दिल को दराइये और हर वक़्त अपने तमाम आज़ाए बदन को मासिय्यत की मुसीबत से बाज़ रखने की कोशिश फरमाइये।
     आज़ा के रोज़े की तफ़सीलात अगली पोस्ट में..أن شاء الله
*✍🏼फ़ज़ाइले रमज़ान, 125*
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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