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Sunday 5 August 2018

*तज़किरतुल अम्बिया* #211


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*युसूफ عليه السلام की दुआ*

     याक़ूब عليه السلام के बाद 23 साल आप ज़ाहिरी हयात में रहे जब आपकी  वफात का वक़्त क़रीब आ गया तो आप आख़िरत की तरफ ज़्यादा मुतवज्जेह रहने लगे दायमी मुल्क की तरफ जाने का इश्तेयाक़ ज़्यादा होने लगा, रब के हुजूर अर्ज़ किया: ऐ मेरे रब! तूने मुझे एक सल्तनत दी और कुछ बातों का अंजाम निकालना सिखाया। ऐ आसमानों और ज़मीन के बनाने वाले! तू मेरा काम बनाने वाला है, दुन्या और आख़िरत में मुझे मुसलमान उठा और उनसे मिला जो तेरे कुर्बे खास के लायक है।

     बज़ाहिर यह मालूम होता है कि आपने मौत की तमन्ना की हालाकिं मौत की तमन्ना जायज़ नहीं तो इसका मतलब असल मे यह है कि जब आप को बज़रिये वही मालूम हो गया कि अब आपके जाने का वक़्त क़रीब आ चुका है तो आपने यह दुआ की कि ऐं अल्लाह! मुझे अपने खास कुर्बे वाले लोगों के साथ मिला। इस दुआ का ताअल्लुक़ मौत के बाद अल्लाह के मुक़र्र्बिन से लाहक़ होने के साथ है, दर हक़ीक़त मौत की दुआ नहीं।

*✍तज़किरतुल अम्बिया* 172

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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