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Thursday 6 October 2016

*सवानहे कर्बला​* #09
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_शहादत के वाक़ीआत_*
*_कूफा को हज़रते मुस्लिम की रवानगी​​​​_* #02
     उबैदुल्लाह बिन यज़ीद बहुत मक्कार व कय्याद था, वो बसरा से रवाना हुवा और उसने अपनी फ़ौज को क़ादिसिय्या में छोड़ा और खुद हिजाज़ियो का लिबास पहन कर ऊंट पर सुवार हुवा और चन्द आदमी हमराह ले कर शब् की तारीकी में मगरिब व ईशा के दरमियान उस राह से कूफा में दाखिल हुवा जिस से हिजज़ी काफिले आया करते थे। इस मक्कारी से उस का मतलब ये था की इस वक़्त अहले कूफा में बहुत जोश है, ऐसे तौर पर दाखिल होना चाहिए की वो इब्ने ज़ियाद को न पहचाने और ये समझे की हज़रते इमाम हुसैनرضي الله تعالي عنه तशरीफ़ ले आए ताकि वो बे खतरा व अन्देशा अम्न व आफिय्यत के साथ कूफा में दाखिल हो जाए।
     चुनांचे ऐसा ही हुवा, अहले कूफा जिन को हर लम्हा हज़रते इमामे आली मक़ामرضي الله تعالي عنه की तशरीफ़ आवरी का इन्तिज़ार था, उन्हों ने धोका खाया और शब् की तारीकी में हिजाज़ी लिबास और हिजाज़ी राह से आता देख कर समझे की हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه तशरीफ़ ले आए। नारऐ मुसर्रत बुलन्द किये, गिर्दो पेश मरहबा कहते चले।
     ये मर्दुद दिल में तो जलता रहा और इस ने अंदाज़ा कर लिया की कुफियो को हज़रते इमाम की तशरीफ़ आवरी का इंतज़ार है और इन के दिल उन की तरफ माइल है मगर उस वक़्त की मस्लहत से खामोश रहा ताकि इन पर उसका मक्र खुल न जाए यहाँ तक की दारुल अम्मारा (गवर्नर हाउस) में दाखिल हो गया।
*✍🏽सवानहे कर्बला, 120*
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