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Wednesday 19 October 2016

*सवानहे कर्बला​* #43
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_​​हज़रते इमामे आली मक़ाम की शहादत​​_* #04
     दूसरा बढ़ा और, लशकरियो को यक़ीन था की हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه पर भूक प्यास की तकलीफ हद से गुज़र चुकी है, सदमो ने ज़ईफ़ कर दिया है ऐसे वक़्त इमाम पर ग़ालिब आ जाना कुछ मुश्किल नही है।
     जब वो गुस्ताख सामने आया तो हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه ने फ़रमाया : तु मुझे जानता नही जो मेरे मुक़ाबिल इस दिलेरी से आता है, हुसैन कक बे कस व कमज़ोर देख कर होसला मन्दियो का इज़हार कर रहु हो, नामर्दो ! मेरी नज़र में तुम्हारी कोई हक़ीक़त नही।
     वो गुस्ताख ये सुन कर और तेश में आया और बजाए जवाब के हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه पर तलवार का वार किया, हज़रते इमाम ने उस का वार बचा कर कमर पर तलवार मारी, मालुम होता था खीरा था काट डाला।
     अहले शाम को अब ये इत्मीनान था की हज़रत के सिवा अब और तो कोई बाक़ी ही न रहा, कहा तक न थकेंगे। प्यास की हालत, धुप की तपिश मुज़्महल कर चुकी है, बहादुरी के जोहर दिखाने का वक़्त है। जहा तक हो एक एक मुक़ाबिल किया जाए, कोई तो कामयाब होगा। इस तरह नए नए बदम शिर सुलत हज़रते इमाम के मुक़ाबिल आते रहे मगर जो सामने आया एक ही हाथ में उसका किस्सा तमाम फ़रमाया।

बाक़ी अगली पोस्ट में.. ان شاء الله
*✍🏽सवानहे कर्बला, 167*
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