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Tuesday 22 August 2017

➖〰 *मसाइले क़ुरबानी* 〰➖

1.जिन लोगों पर क़ुरबानी वाजिब नहीं वो अगर ज़िल्हज्ज के 10 दिनों तक बाल नाख़ून न काटें,तो क़ुरबानी का सवाब पाएंगे
*_📕 बहारे शरियत,हिस्सा 15,सफ़ह 131_*

2. साहिबे निसाब यानि जिसके पास 7.5 तोला सोना या 52.5 तोला चांदी या इसके बराबर की रक़म जो कि तक़रीबन 23000 बन रही है अगर क़ुर्बानी के दिनों में मौजूद है तो उसपर क़ुर्बानी वाजिब है,क़ुर्बानी वाजिब होने के लिये माल पर साल गुज़रना ज़रूरी नहीं
*_📕 बहारे शरियत,हिस्सा 15,सफ़ह 132_*

3. साहिबे निसाब औरत पर खुद उसके नाम से क़ुरबानी वाजिब है,मुसाफिर और नाबालिग पर क़ुर्बानी वाजिब नहीं
*_📕 बहारे शरियत,हिस्सा 15,सफ़ह 132_*

4. रहने का घर,पहनने के कपड़े,किताबें,सफर के लिए सवारियां,घरेलु सामान हाजते असलिया में दाखिल हैं
*_📕 बहारे शरियत,हिस्सा 15,सफ़ह 133_*
*_📕 फ़तावा आलमगीरी,जिल्द 1,सफह 160_*

5. हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि जो इसतेताअत रखने के बावजूद क़ुरबानी न करे तो वो हमारी ईदगाह के क़रीब न आये
*_📕 बहारे शरियत,हिस्सा 15,सफ़ह 129_*

6. 10,11,12 ज़िल्हज्ज को अल्लाह को क़ुरबानी से ज़्यादा कोई अमल प्यारा नहीं,जानवर का खून ज़मीन पर गिरने से पहले क़ुबुल हो जाता है,और क़ुरबानी करने वाले को जानवर के हर बाल के बदले 1 नेकी मिलती है
*_📕 बहारे शरियत,हिस्सा 15,सफ़ह _*

7. जिसपर हर साल क़ुरबानी वाजिब है उसे हर साल अपने नाम से क़ुरबानी करनी होगी,कुछ लोग 1 साल अपने नाम से क़ुरबानी करते हैं दूसरे साल अपने बीवी बच्चों के नाम से क़ुरबानी करते हैं,ये नाजायज़ है
*_📕 अनवारुल हदीस,सफ़ह 363_*

8. क़ुरबानी का वक़्त 10 ज़िल्हज्ज के सुबह सादिक़ से लेकर 12 के ग़ुरुबे आफताब तक है,मगर जानवर रात में ज़बह करना मकरूह है
*_📕 बहारे शरियत,हिस्सा 15,सफह 136_*

9. जानवरों की उम्र ये होनी चाहिए ऊँट 5 साल,गाए-भैंस 2 साल,बकरा-बकरी 1 साल,भेड़ का 6 महीने का बच्चा अगर साल भर के बराबर दिखता है तो क़ुरबानी हो जाएगी
*_📕 बहारे शरियत,हिस्सा 15,सफ़ह 139_*

10.काना,लंगड़ा,लागर,बीमार,जिसकी नाक या थन कटा हो,जिसका कान या दुम तिहाई से ज्यादा कटा हो,बकरी का 1 या भैंस का 2 थन खुश्क हो,इन जानवरों की क़ुरबानी नहीं हो सकती
*_📕 बहारे शरियत,हिस्सा 15,सफ़ह 139_*

11. मय्यत की तरफ से क़ुरबानी की तो गोश्त का जो चाहे करे,लेकिन किसी ने अपनी तरफ से क़ुरबानी करने को कहा और मर गया तो उसकी तरफ से की गयी क़ुरबानी का पूरा गोश्त सदक़ा करें
*_📕 बहारे शरियत,हिस्सा 15,सफ़ह 144_*

12. क़ुरबानी अगर मन्नत की है तो उसका गोश्त न खुद खा सकता है न ग़नी को दे सकता है,बल्कि पूरा गोश्त सदक़ा करे
*_📕 बहारे शरियत,हिस्सा 15,सफ़ह 144_*

13. नबी करीम सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम ने 2 मेढ़ों की क़ुरबानी की,जो कि खस्सी थे
*_📕 मुसनद अहमद,अबू दाऊद,इब्ने माजा,दारमी बहवाला बहारे शरियत,हिस्सा 15,सफह 130_*

14. क़ुरबानी का गोश्त काफिर को हरगिज़ न दे और बदमज़हब मुनाफ़िक़ तो काफ़िर से बदतर है लिहाज़ा उसको भी हरगिज़ न दें
*_📕 बहारे शरियत,हिस्सा 15,सफ़ह 144_*

15. जो जानवर को ज़बह करे बिस्मिल्लाह शरीफ वोह पढ़े किसी दुसरे के पढ़ने से जानवर हलाल न होगा
*_📕 बहारे शरियत,हिस्सा 15,सफ़ह 121_*

16. ज़बह के वक़्त जानबूझकर बिस्मिल्लाह शरीफ न पढ़ी तो जानवर हराम है,और अगर पढ़ना भूल गया तो हलाल है
*_📕 बहारे शरियत,हिस्सा 15,सफ़ह 119_*
*_📕 ज़बीहे इसालो सवाब,सफ़ह 15_*

17. ज़बह करते वक़्त जानवर की गर्दन अलग हो गई या जानबूझकर भी अलग कर दी,ऐसा करना मकरूह है मगर जानवर हलाल है
*_📕 बहारे शरियत,हिस्सा 15, सफ़ह 118_*

18. अरफा यानि 9 ज़िल्हज्ज का रोज़ा अगले व पिछले 1 साल के गुनाहों का कफ्फारा है
*_📕 बहारे शरियत,हिस्सा 5,सफ़ह 137_*

19. बेहतर है कि गोश्त के 3 हिस्से किये जायें,1 अपने लिये 1 रिश्तेदारों के लिये और 1 अपने पड़ोसियों के लिये,लेकिन अगर परिवार बड़ा है तो पूरा का पूरा भी रख सकते हैं,मगर जितना भी हो अपने गरीब पड़ोसियों का ख्याल ज़रूर रखें
*_📕 बहारे शरियत,हिस्सा 5,सफ़ह 144_*

20. बड़े जानवर के 7 हिस्सों मे अगर 1 वहाबी की शिरकत हुई तो किसी की क़ुरबानी नही होगी,इसका खास ख्याल रखें
*_📕 बहारे शरियत,हिस्सा 5,सफ़ह 142_*

21. गांव मे चुंकि ईद की नमाज़ नहीं है लिहाज़ा वहां सूरज निकलने के साथ ही क़ुर्बानी हो सकती है मगर शहर मे नमाज़े ईद से पहले हर्गिज़ नहीं हो सकती
*_📕 बहारे शरियत,हिस्सा 5,सफ़ह 137_*

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