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Saturday 28 April 2018

हज़रते ज़ैद बिन हारिषा रदिअल्लाहो तआला अन्हो का इश्के रसूल ﷺ*
#22
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْم
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     जब हुज़ूर ﷺ का निकाह हज़रते ख़दीजा रदिअल्लाहो तआला अन्हा से हुवा तो उन्होंने जैद रदिअल्लाहो तआला अन्हो को हुज़ूरे अक़दस ﷺ की ख़िदमत में ब तौरे हदिय्या पेश किया। जैद रदिअल्लाहो तआला अन्हो के वालिद को उन के फ़िराक का बहुत सदमा था और होना भी चाहिये था कि अवलाद की महब्बत फ़ितरी चीज़ है। वोह ज़ैद रदिअल्लाहो तआला अन्हो के फ़िराक में रोते और अशआर पढ़ते फिरा करते थे। अक्शर जो अशआर पढ़ते थे उन का मुख्तसर तर्जमा यह है कि "मैं ज़ैद की जुदाई में रो रहा हूं और येह भी नहीं जानता कि वोह ज़िन्दा है कि उस की उम्मीद रखूं या मौत ने उस का काम तमाम कर दिया कि उस से मायूस हो जाऊं, खुदा की कसम मुझे येह भी मा'लूम नहीं कि तुझे ऐ ज़ैद नर्म ज़मीन ने हलाक किया या किसी पहाड़ ने हलाक किया । काश मुझे येह मालूम हो जाता कि तू उम्र भर में कभी भी वापस आएगा या नही, सारी दुन्या में मेरी इन्तिहाई ग़रज़ तेरी वापसी है।
      जब आफताब तुलूअ होता है तो मुझे ज़ैद ही याद आता है और जब बारिस होने को आती है तो भी उसी की याद को भड़काती हैं। हाए मेरा ग़म और मेरी फिक्र किस क़दर तवील हो गई मैं उस की तलाश और कोशिश में सारी दुन्या में ऊंट की तेज़ रफ्तारी को काम मे लाऊंगा और दुन्या का चक्कर लगाने से न उक्ताउंगा।
अपनी सारी जिंदगी इसी में गुज़ार दूंगा। हां मेरी मौत ही आ गई तो खैर की मौत हर चीज़ को फ़ना कर देने वाली है आदमी ख़्वाह कितनी ही उम्मीदे लगाए मगर मैं अपने बा'द फुलां फुलां रिस्तेदारों और आल व अवलाद को वसिय्यत कर जाऊंगा कि वोह भी इसी तरह ज़ैद को ढूंढते रहें।"
       ग़रज़ वोह यह अशआर पढ़ते और रोते हुवे ढूंढते फ़िरा करते थे। इत्तिफाक से उन की जाम के चंद लोगों का हज को जाना हुवा और उन्हों ने ज़ैद को पहचाना। बाप का हाल सुनाया, शेर सुनाए उन की याद व फ़िराक की दास्तान सुनाई। हज़रते ज़ैद रदिअल्लाहो तआला अन्हो ने उनके हाथ तीन शेर कह भेजे जिन का मतलब येह था कि "मैं यहां मक्का में हू।"
     उन लोगों ने जा कर ज़ैद की खैर व खबर उन के बाप को सुनाई और वोह अशआर सुनाए जो ज़ैद ने कहे थे और पता बताया।
     ज़ैद के बाप और चचा फिदये की रक़म ले कर उनको ग़ुलामी से छुड़ाने की ख़ातिर मक्कए मुकर्रमा पहुंचे , तहक़ीक़ की, पता चलाया, हुज़ूर ﷺ की खिदमत में पहुंचे और अर्ज़ किया: ऐ हाशिम की अवलाद! अपनी कौम के सरदार! तुम लोग हरम के रहने वाले हो और अल्लाह के घर के पड़ोसी, तुम खुद कैदियों को रिहा कराते हो, भूकों को खाना खिलाते हो। हम अपने बेटे की तलब में तुम्हारे पास पहुंचे हैं हम पर एहसान फ़रमाओ और कर्म करम करो। फिदया क़बूल करो और इस को रिहा कर दो बल्कि जो फिदया हो उस से ज़ियादा ले लो। 
बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله
*✍🏼सहाबएकिराम का इश्के रसूलﷺ* पेज 88,89
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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