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Thursday 19 April 2018

*तज़किरतुल अम्बिया* #117
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
*इब्राहिम عليه السلام ने मुर्दो को ज़िन्दा होते देखना चाहा*
     और जब अर्ज़ की इब्राहिम ने ऐ मेरे रब मुझे दिखा दे तू क्यों कर मुर्दा ज़िन्दा करेगा फ़रमाया क्या तुझे यक़ीन नहीं। अर्ज़ किया यक़ीन क्यों नहीं मगर में यह चाहता हूँ कि मेरे दिल को क़रार आ जाये।
     अल्लामा नुवी رحمة الله عليه ने चार वजाहत के मुताबिक़ बयान फ़रमाया,
     *पहली वजह* : आप عليه السلام को पहले इल्म इस्तिदलालि हासिल था अब आप मुर्दो को ज़िन्दा करने कि कैफियत का मुशाहीदा करना चाहते थे ताकि इल्म ज़रूरी बदिहि भी हासिल हो जाये। इसलिये कि इमाम अबू मंसूर का मज़हब यह है कि इल्म इस्तिदलालि में कभी शकुक वाके होते है लेकिन इल्म ज़रूरी शकुक से पाक होता है जो इल्म मुशाहीदा से अयानन हासिल हो वह ज़रूरी होता है।
     ख्याल रहे कि खुद नबी के लिये इस्तिदलालि या ज़रूरी में फ़र्क़ नहीं होता क्योंकि नबी का इल्म शक से पाक होता है अलबत्ता सवाल करने की वजह यह थी कि किसी को भी यह कहने का हक़ न हो कि तुमने तो मुर्दो को ज़िन्दा होते देखा नहीं तुम्हारे इल्म पर कैसे यक़ीन किया जाये।
     *दूसरी वजह* : आप عليه السلام जानना चाहते थे कि मेरा मर्तबा अल्लाह के नज़्दीक क्या है और मेरी दुआ की क़बूलिय्यत का क्या मक़ाम है। इस सूरत में मतलब यह होगा क्या तुम्हें यक़ीन नहीं तुम्हारा मर्तबा मेरे ज्ज़दिक अज़ीम है तुम मेरे पसन्दीदा हो और मेरे खलील हो।
     *तीसरी वजह* : आप عليه السلام को पहले भी शक नहीं था आपने सवाल इसलिये किया ताकि इल्मुल यक़ीन की तरफ तरक़्क़ी हो जाये क्योंकि इन दोनों में बहुत बड़ा फर्क है इसलिये की एनुल यक़ीन मुशाहीदा के बाद हासिल होता है लेकिन इल्मुल यक़ीन में मुशाहीदा की ज़रूरत नहीं।
     *चौथी वजह* : जब आपने मुशरिकीन पर यह दलील क़ायम फ़रमाई, मेरा रब वह है जो ज़िन्दा करता है और मारता है। फिर आपने अल्लाह से अर्ज़ किया तू किस तरह मुर्दो को ज़िन्दा करता है? यानी उनको मेरे सामने ज़िंदा कर में देखु ताकि मेरी दलील काफिरों पर ज़ाहिर हो जाए।

बाक़ी अगली पोस्ट में..أن شاء الله
*✍🏼तज़किरतुल अम्बिया* 96
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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