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Thursday 19 April 2018

*आक़ा ﷺ का महीना* #15
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
*_कब्रस्तान की हाज़री के मदनी फूल_* #01
     नबीये करीम صلى الله عليه وسلم का फरमाने अज़ीम है : मेने तुम को ज़ियारते कूबर से मना किया था, अब तुम क़ब्रो की ज़ियारत करो के वो दुन्या में बे रगबति का सबब है और आख़िरत की याद दिलाती है।
*✍🏽सुनन इब्ने माजाह, जी.2 स.252 हदिष: 1571*

     वलियुल्लाह के मज़ार शरीफ या किसी भी मुसलमान की क़ब्र की ज़ियारत को जाना चाहे तो मुस्तहब ये है के पहले अपने मकान पर गैर मकरूह वक़्त में 2 रकअत नफ्ल पढ़े, हर रकअत में सूरतुल फातिहा के बाद एक बार आयतुल कुरसी और 3 बार सूरए इखलास पढ़े और इस नमाज़ का षवाब साहिबे क़ब्र को पहोचाए, अल्लाह तआला उस फौत सुदा बन्दे की क़ब्र में नूर पैदा करेगा और इस षवाब पोहचाने वाले शख्स को बहुत ज़्यादा षवाब अता फरमाएगा।
*✍🏽फतवा आलमगिरी, जी.5 स.350*

     मज़ार शरीफ या क़ब्र की ज़्यारत के लिये जाते हुए रस्ते में फ़ुज़ूल बातो में मशगूल न हो। कब्रस्तान में आप उस रस्ते से जाए, जहां माज़ी में कभी भी मुसलमानो की क़ब्रे न थी, जो रास्ता नया बना हुवा हो उस पर न चले, रद्दुल मुहतार में है कब्रस्तान में क़ब्रे पाट कर जो नया रास्ता निकाला गया हो उस पर चलना हराम है। बल्कि नऐ रस्ते का सिर्फ गुमान ग़ालिब हो तब भी उस पर चलना ना जाइज़ व गुनाह है।
*✍🏽दुर्रे मुख्तार, जी.3 स.183*
*✍🏽आक़ा  का महीना, स.27*
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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