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Wednesday, 10 August 2016

अब्लाक़ घोड़े सुवार

*क़ुरबानी के मसाइल*
*_अपनी क़ुरबानी की खाल बेच दी तो ?_*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

सुवाल :
किसी ने अपनी क़ुरबानी की खाल बेच कर रक़म हासिल कर ली अब वो मस्जिद में दे सकता है या नही ?

जवाब :
यहाँ निय्यत का एतिबार है। अगर अपनी क़ुरबानी की खाल अपनी ज़ात के लिये रक़म के एवज़ बेची तो यु बेचना भी नाजाइज़ है और ये रक़म इस शख्स के हक़ में माले खबीस है और इस का सदक़ा करना वाजिब है लिहाज़ा किसी शरई फ़क़ीर को दे दे। और तौबा भी करे।
     और अगर किसी कारे खैर के लिये मसलन मस्जिद में देने ही की निय्यत से बेचीं तो बेचना भी जाइज़ है और अब मस्जिद में देने में कोई हर्ज नही।
*✍🏽अब्लाक़ घोड़े सुवार, 28*
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खादिमे दिने नबी ﷺ, *मुहम्मद मोईन*
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मदनी पंजसुरह

*नमाज़ के बाद पढ़े जाने वाले अवराद*
हिस्सा-01
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     पाचो वक़्त की नमाज़ों के बाद ये अवराद पढ़ लीजिये। हर विर्द के अव्वल आंखिर दुरिद शरीफ पढ़ लीजिये।

       (1) *आयतुल कुर्सी* एक बार पढ़ने वाला मरते ही दाखिले जन्नत हो।
*✍🏽मिश्कात, 1/197*

21) *اَللّٰهُمَّ اَعِنِّى عَلٰى ذِكْرِكَ وَشُكْرِكَ وَحُسْنِ عِبَادَتِكَ*
*तर्जुमह :* ऐ अल्लाह ! तू अपने ज़िक्र, अपने शुक्र और और अपनी इबादत करने पर मेरी मदद फरमा।
*✍🏽सुनन इब्ने दाऊद, 2/123*

(3) *اَسْتَغْفِرُ اللّٰهَ الَّذِىْ لَا اِلٰهَ اِلَّا هُوَ الْحَىُّ الْقَيُّوْمُ وَاَتُوْبُ اِلَيْهِ*
*तर्जुमह :* में अल्लाह से मुआफ़ी मांगता (मांगती) हु जिस के सिवा कोई मअबूद नही वो ज़िन्दा है क़ाइम रखने वाला है और उस की बारगाह में तौबा करता (करती) हु।
इसे 3-3 बार पढे उसके गुनाह मुआफ़ हो अगर्चे वो मैदाने जिहाद से भागा हुवा हो।
*✍🏽तिर्मिज़ी, 5/336*

     (4) तस्बिहे फातिमा :
*سُبْحَانَ اللّٰهِ* 33 बार
*الْحَمْدُ لِلّٰهِ* 33 बार
*اَللّٰهُ اَكْبَرُ* 33
बार ये 99 हुए, आखिर में
*لَا اِلٰهَ اِلَّا اللّٰهُ وَحْدَهُ لَاشَرِيْكَ لَهُ، لَهُ الْمُلْكُ وَلَهُ الَحَمْدُ وَهُوَ عَلٰى كُلِّ شَىْءٍ قَدِيْرٌ*
एक बार पढ़ कर 100 का अदद पूरा करले, तो पढ़ने वाले के गुनाह बख्श दिये जाएंगे अगर्चे समुन्दर के झाग के बराबर हो।
*✍🏽मदनी पंजसुरह, 158*
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फुतूह अल ग़ैब

*ज़ातकी नफी मुखालिफते नफ्स:*
(हिस्सा 9)

 *بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

      यही वो अमर(फरमान) है जिससे शरीयतने न तो मना किया है न उसे करने का हुकम दिया है। यही अमर(काम) उस मुबाह (हलाल, दुरुस्त,पाक) में भी है जिसकी न सख्त मुमानेअत (मना करना) है, न वो वाजिब है। बल्के महमिलात (बेकार) में से है। इसमे बंदे को इख्तियार दिया गया है। इस तरह उसे मुबाह केहते हैं। लेकिन इसमें कोइ सखश तरमीम (इस्लाह, दुरुस्त) व-तन्सीख(मन्सूख करना) का इख्तियार नहीं रखता।
      जब आदमी के सब काम अल्लाहकी तरफ से होंगे। जिस कामका हुकम शरआमें है वो इसके मुताबिक और जिसका हुकम शरियतमें नहीं वो बातिनी अमर से अंजाम देगा,वो आदमी एहले हकीकत में से हो जाएगा और जिस काम में अमर बातिन नहीं वो खालिस फेअले इलाहीए तकदीर महेज़ और हालत तसलीम है।
      अगर बन्दा “हक्कुल हक” की मंजिलमें है जो मिट जाने और फना हो जाने की हालतमें है, तो वो अब्दाल है। अब्दालोंके दिल खुदा तआला के लिये  शिकसता हो चुके हैं। यही लोग मोहिद( खुदा को एक जाननेवाले) हैं। आरिफ (वली, खुदा सनास) हैं, इल्मो अमल के मालिक हैं, उमरा (दोलतमंद) के सरखील (सरदार) हैं।
बाक़ी कल की पोस्ट में... इंसा अल्लाह

*✍🏽फुतूहल ग़ैब*  पेज 25,26
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खादिमे दिने नबी ﷺ
 *फ़ैयाज़ सैय्यिद*
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Tuesday, 9 August 2016

क़ब्र में आनेवाला दोस्त

*पीछे क्या छोड़ा ?*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

हज़रते अबू हुरैराرضي الله تعالي عنه से मारवी है :
जब कोई शख्स मर जाता है तो फ़रिश्ते कहते है के इस ने आगे क्या भेजाब ?
और लोग पूछते है : इसने पीछे क्या छोड़ा ?
*✍🏽शोएबुल ईमान 7/328*

     हज़रते मुफ़्ती अहमद यार खान अलैरहमा इस हदीस क तहत फरमाते है : यानी मरते वक़्त उसके वारिसिन तो छोड़े हुए माल की फ़िक्र में होते है के क्या छोडे जा रहा है ? और फ़रिश्ते उसकी क़ब्ज़े रूह वगैरा के लिये आते है वो उसके आमाल व अक़ायद का हिसाब लगाते है।
*✍🏽मीरआतुल मनाजिह 7/84*
*✍🏽क़ब्र में आनेवाला दोस्त 13*
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खादिमे दिने नबी ﷺ, *मुहम्मद मोईन*
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*अहलो अयाल को अपना सबकुछ समझने वाले*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     हम दुन्या में तन्हा आए थे और तन्हा ही लौट जाएंगे, लेकिन इस दुन्या में हम तन्हा नही रहते बल्कि बहुत से अफ़राद मसलन माँ बाप, भाई बहन, बीवी बच्चे, अज़ीज़ों अक़ारिब क्र दोस्त अहबाब वगैरा हमारी ज़िन्दगी का हिस्सा होते है, वो हमारा और हम उनका ख़याल रखते है और रखना भी चाहिये क्यू के शरीअत ने भी इनके हुक़ूक़ बयान किये है।
     फित्रि तोर पर हमे इन से महब्बत होती है मगर अक्सर लोग अपने अहलो अयाल की महब्बत में ऐसा ग़ुम हो जाते है के फिर उन्हें क़ब्र याद रहती है न मैदाने महशर, जिसका नतीजा ये निकलता है के मुअज्ज़िन नमाज़ के लिये बुला रहा होता है मगर ये घर वालो से खुश गप्पियों में ऐसे मगन होते है के भरी महफ़िल छोड़ कर मस्जिद का रुख करने को इनका जी नही चाहता, इनके बच्चों का किसी के बच्चों से झगड़ा हो जाए तो अपनी औलाद का कुसूर होने के बा वुजूद मुआफ़ी मांगने के बजाए तू तुकार बल्कि मार धाड़ पर उतर आते है,
     शरीअत औरत से पर्दे का तकाज़ा करती है मगर ये अपने शोहर को राज़ी रखने के लिये बे पर्दगी का ईशतिहार बन कर रह जाती है, इसी तरह बाज़ नादान अपने घरवालो की फरमाइशें और ज़रूरतें पूरी करने के लिये माले हराम का वबाल भी अपने सर ले लेते है जो के सरासर क्षार का सौदा है।

*अपने आप को हलाकत में डालने वाला बद नसीब*
इन्शा अल्लाह अगली पोस्ट में....
*✍🏽क़ब्र में आनेवाला दोस्त 14*
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खादिमे दिने नबी ﷺ, *मुहम्मद मोईन*
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सिरते मुस्तफाﷺ


*_गज़्वए बनू नज़ीर_*
हिस्सा-02
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     हुज़ूरﷺ के साथ हज़रते अबू बक्र व हज़रते उमर व हज़रते अलीرضي الله تعالي عنهم भी थे। यहूदियो ने इन सब हज़रात को एक दिवार के निचे बड़े एहतिराम के साथ बिठाया और आपस में ये मशवरा किया कि छत पर से एक बहुत ही बड़ा और वज़्नी पथ्थर इन हज़रात पर गिरा दे ताकि ये सब लोग दब कर हलाक हो जाए।
     चुनांचे अम्र बिन जहाश इस मक़सद के लिये छत के ऊपर चढ़ गया, मुहाफ़िज़े हक़ीक़ी परवर दगारे आलम ने अपने हबीब को यहूदियो की इस नापाक साज़िश से बी ज़रीअए वही मुत्तलअ फरमा दिया इस लिये फौरन ही आपﷺ वहा से उठ कर चुपचाप अपने हमराहियों के साथ चले आए और मदीना तशरीफ़ ला कर सहाबए किराम को यहूदियो की इस साज़िश से आगाह फ़रमाया और अन्सार व मुहजीरिन से मशवरे के बाद उन यहूदियो के पास क़ासिद भेज दिया।
     तुम लोगो ने अपनी इस दसिसा कारी और क़ातिलाना साज़िश से मुआह्दा तोड़ दिया इस लिये अब तुम लोगो को दस दिन की मोहलत दी जाती है कि तुम इस मुद्दत में मदीने से निकल जाओ, इसके बाद जो शख्स भी तुम में का यहाँ पाया जाएगा क़त्ल कर दिया जाएगा।

बाक़ी कल की पोस्ट में..इन्शा अल्लाह
*✍🏽सिरते मुस्तफा, 297*
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*सिरते मुस्तफाﷺ*
*_गज़्वाए बनू नज़ीर_*
हिस्सा-03
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

    शनहशाहे मदीनाﷺ का ये फरमान सुन कर बनू नज़ीर के यहूदी जिला वतन होने के लिये तैयार हो गए थे मगर मुनाफ़िक़ों का सरदार अब्दुल्लाह इब्ने उब्य्य उन  यहूदियो का हामी बन गया और इस ने कहला भेजा कि तुम लोग हरगिज़ हरगिज़ मदीने से न निकलो हम दो हज़ार आदमियो से तुम्हारी मदद करने को तैयार है इसके इलावा बनू क़रिज़ा और बनू गतफन यहूदियो के दो ताक़त वर क़बिले भी तुम्हारी मदद करेंगे।
     बनू नज़ीर के यहूदियो को जब इतना बड़ा सहारा मिल गया तो वो शेर हो गए और उन्हों ने हुज़ूरﷺ के पास कहला भेजा कि हम मदीना छोड़ कर नही जा सकते आप के जो दिल में आए कर लीजिये।
     यहूदियो के इस जवाब के बाद हुज़ूरﷺ ने मस्जिदें नबवी की इमामत हज़रते इब्ने उम्मे मक्तूमرضي الله تعالي عنه के सिपुर्द फरमा कर खुद बनू नज़ीर का क़स्द फ़रमाया और उन यहूदियो के किल्ले का मुहासरा कर लिया ये मुहासरा 15 दिन तक क़ाइम रहा किला में बाहर से हर किस्म के सामानों का आना जाना बन्द हो गया और यहूदी बिलकुल ही महसूर व मजबूर हो कर रह गए मगर इन मौक़ा पर न तो मुनाफ़ीक़ो का सरदार अब्दुल्लाह बिन उब्य्य यहूदियो की मदद के लिये आया न बनू क़रिज़ा और बनू गतफान ने कोई मदद की।
   
चुनांचे इन दगाबाज़ों के बारे में क्या इरशाद फ़रमाया ये इन्शा अल्लाह कल की पोस्ट में...
*✍🏽सिरते मुस्तफा, 298*
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तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान


*_सूरए फातेहा_*
हिस्सा-01
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_शानें नज़ूल_*
     ये सूरत मक्कए मुकर्रमा या मदीनए मुनव्वरा या दोनों जगह उतरी.
     अम्र बिन शर्जील का कहना है कि नबीये करीम (सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम – उन पर अल्लाह तआला के दुरुद और सलाम हों) ने हज़रत ख़दीजा(रदियल्लाहो तआला अन्हा – उनसे अल्लाह राज़ी) से फ़रमाया : मैं एक पुकार सुना करता हूँ जिसमें इक़रा यानी ‘पढ़ों’ कहा जाता है. वरक़ा बिन नोफि़ल को खबर दी गई, उन्होंने अर्ज़ किया : जब यह पुकार आए, आप इत्मीनान से सुनें.
     इसके बाद हज़रत जिब्रील ने खि़दमत में हाजि़र होकर अर्ज़ किया, फरमाइये: बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम. अल्हम्दु लिल्लाहे रब्बिल आलमीन- यानी अल्लाह के नाम से शुरु जो बहुत मेहरबान, रहमत वाला, सब खूबियाँ अल्लाह को जो मालिक सारे जहान वालों का.
     इससे मालूम होता है कि उतरने के हिसाब से ये पहली सूरत है मगर दूसरी रिवायत से मालूम होता है कि पहले सूरए इक़रा उतरी. इस सूरत में सिखाने के तौर पर बन्दों की ज़बान में कलाम किया गया है.    
     नमाज़ में इस सूरत का पढ़ना वाजिब यानी ज़रुरी है. इमाम और अकेले नमाज़ी के लिये तो हक़ीक़त में अपनी ज़बान से, और मुक्तदी के लिये इमाम की ज़बान से.
     सही हदीस में है इमाम का पढ़ना ही उसके पीछे नमाज़ पढ़ने वाले का पढ़ना है. कुरआन शरीफ़ में इमाम के पीछे पढ़ने वाले को ख़ामोश रहने और इमाम जो पढ़े उसे सुनेने का हुक्म दिया गया है.
     अल्लाह तआला फ़रमाता है कि जब क़ुरआन पढ़ा जाए तो उसे सुनो और खा़मोश रहो.
     मुस्लिम शरीफ़ की हदीस है कि जब इमाम क़ुरआन पढ़े, तुम ख़ामोश रहो. और बहुत सी हदीसों में भी इसी तरह की बात कही गई है.
     जनाजे़ की नमाज़ में दुआ याद न हो तो दुआ की नियत से सूरए फ़ातिहा पढ़ने की इजाज़त है. क़ुरआन पढ़ने की नियत से यह सूरत नहीं पढ़ी जा सकती.
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अब्लाक़ घोड़े सुवार

*क़ुरबानी के मसाइल*
*_गरीब को खाले लेने दीजिये_*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

सुवाल :
अगर कोई शख्स हर साल गरीबो को खाल देता हो, उस पर इंफिरादि कोशिश कर के अपने मदरसे या दीगर दीनी कामो के लिये खाल लेना और गरीबो को महरूम कर देना केसा है ?

जवाब :
अगर वाक़ई कोई ऐसा गरीब मुस्तहिक़ आदमी है जिस का गुज़ारा उसी खाल या ज़कात व फीत्रा पर मौक़ूफ़ है तो अब उस को मिलने वाले इन अतिय्यात की अपने इदारे के लिये तरकिब कर के उस गरीब को महरूम करने की हरगिज़ इजाज़त नही।
     आला हज़रत अलैरहमा फरमाते है : अगर कुछ लोग अपने यहाँ की खाले हाजत मन्द यतिमो, बेवाओं, मिस्कीनों को देना चाहे कि इन की सूरते हाजत रवाई यही है, उसे कोई वाइज़ (यानी वाइज़ कहने वाला) या मदरसे वाला रोक कर मदरसे के लिये ले ले तो ये उसका ज़ुल्म होगा।
*✍🏽फतावा रज़विय्या, 20/501*
*✍🏽अब्लाक़ घोड़े सुवार, 25*
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मदनी पंजसुरह

*दुन्या व आख़िरत में सआदत मंद*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     हज़रते अब्दुल्लाह बिन अम्र अल आसرضي الله تعالي عنه ने फ़रमाया : पाच आदते ऐसी है कि कोई इन्हें इख़्तियार कर ले तो दुन्या व आख़िरत में सआदत मंद हो जाए।

1 वक़्तन फ वक़्तन *لَآ اِلٰهَ اِلَّا اللّٰهُ مُحَمَّدٌ رَّسُوٍلُ اللّٰهِ* कहता रहे।

2 जब किसी मुसीबत में मुब्तला हो (मसलन बीमार या नुक़सान हो जाए या परेशानी की खबर सुने) तो *اِنّا لِلّٰهِ وَاِنَّٓ الَيْهِ رَاجِعُوْنَ* और  *لَا حَوْلَ وَلَا قُوَّةَ اِلَّا بِاللّٰهِ الْعَلِىْ الْظِيْمِ* पढ़े।

3 जब भी नेमत मिले तो शुक्राने में *الْحَمْدُ لِلّٰهِ رَبِّ الْعٰلَمِيْنَ* कहे।

4 जब किसी जाइज़ काम का आगाज़ करे तो *بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحْيْمِ* पढ़े।

5 जब गुनाह कर बेठे तो यु कहे اَسْتَغْفِرُ اللّٰهَ الْظِيْمَ وَاَتُوْبُ اِلَيْهِ*
(में अल्लाह से मग्फिरत तलब करते हुए उसकी तरफ तौबा करता हु।)
*✍🏽मदनी पंजसुरह, 155*
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फुतूह अल ग़ैब

*ज़ातकी नफी मुखालिफते नफ्स:*
(हिस्सा 8)

 *بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

      इसलिये ऐसे काममें जलदी न करो। क्योंके के इसका मकसद, अन्जाम, खुदाकी मरज़ीका तुम्हें इल्हाम नहीं और ये भी पता नही के इसमें फितना, हिलाकत, मकर या इम्तेहान क्या चीज़ कारफरमा है। चुनान्चे उस वक्त तक सब्र से काम लो। जब अल्लाह तआला खुद ही फाइल हो जाए। जब सिर्फ फअले हककी कैफियत बाकी रेह जाएगी और तुम्हें “ताइदे हक” मिल जाएगी। ऐसे में अगर कोइ फित्ना पैश भी आए तो उसके शर (बदी-बुराइ) से तुम्हें मेहफूज़ कर दिया जाएगा। क्योंके खुदावंदे करीम अपनी मशीयत (किसमत) पर तुम्हारी पकड नहीं करेगा। बंदे को अज़ाब इसी सूरत में दिया जाता है, जब वो खुदाई कामोंमें दखल दे। अगर तुम विलायतकी रिफअतोंके खवाहिशमंद हो तो मुखलिफते नफस को शआर कर लो और अवामिर (एहकाम)की पैरवी में अपने आपको ढाल लो।
      ये पैरवी दो तरह से है। *पेहली किस्म* ये है के दुनिया के माल से खुरदोनोश के लिये सिर्फ बकद्रे किफायत लिया जाए। नफसकी लिज़्ज़तोंसे बचें और अपने ज़ाहिर और बातिन को गुनाहोंसे बचाऐं।
*दुसरी किस्म* ये है के अपने आपको बातिनी अमर(लाफानी, फरमान) पर माअमूर कर लें।
बाक़ी कल की पोस्ट में... इंसा अल्लाह

*✍🏽फुतूहल ग़ैब*  पेज 25
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 *फ़ैयाज़ सैय्यिद*
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Monday, 8 August 2016

अब्लाक़ घोड़े सुवार

*क़ुरबानी के मसाइल*
*_चंदे की रकम से इज्तिमाई क़ुरबानी के लिये गाए खरीदना_*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

सुवाल :
मज़हबी या फलाही इदारे के चंदे की रक़म से इज्तिमाई क़ुरबानी के लिये बेचने के वासिते गाए खरीदी जा सकती है या नही ?

जवाब :
चंदे की रक़म कारोबार में लगाना जाइज़ नही। इस के लिये चन्दा देने वाले से सराहतन यानी साफ़ लफ़्ज़ों में इजाज़त लेनी ज़रूरी है।
(जो इसकी इजाज़त दे सिर्फ उसी के चंदे की रक़म जाइज़ कारोबार में लगाई जा सकती है यु ही बिला इजाज़ते मालिक उसके दिये हुए चंदे की रक़म क़र्ज़ देने की भी इजाज़त नही)
*✍🏽अब्लाक़ घोड़े सुवार, 24*
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तफ़सीरे अशरफी


हिस्सा-60
*_सूरए बक़रह, पारह 01_*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*आयत ⑤⑨, तर्जुमह*
तो बदल डाला जिन्होंने ने अंधेर कर रखा था बात को उसकी दूसरी बोली से, जो सिखाई गई थी उन्हें। तो उतारा हमने उन पर, जिन्होंने अंधेर मचाया था, अज़ाबको आसमान से, के वो नाफ़रमानी करते जा रहे थे।

*तफ़सीर*
     मगर बनी इस्राइल शरारत पर उत्तर आये, तो इस वादा व करम से कोइ फायदा हासिल न किया। बल्कि सरकशी करते हुए बदल डाला हमारी बात को, हमारी तालीम के खिलाफ, उसकी दूसरी बोली से, जो सिखाई गई थी उन्हें।
     हुक्म हुआ था "हित्ततुन" का। वो मज़ाकियो की तरह "हिन्ततून" "हब्बतुन फि शअरतीन" (यानी गेहू, गेहू बालियोके दाने) बकने लगे। तो इस ना फ़रमानी पर उतारा अज़ाब हमने उन जालिमो पर, जिन्होंने इस किस्म का अंधेर मचाया था, जिससे 70,000 बनी इस्राइल मर गये।
    ये सज़ा इस लिये दी गई के वो ना फ़रमानी करते जा रहे थे। बार बार ना फ़रमानी करते जा रहे थे और हुक्म के खिलाफ चलते थे।
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खादिमे दिने नबी ﷺ, *मुहम्मद मोईन*
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मदनी पंजसुरह

*गीबत से बचने का मदनी फूल*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     हज़रते अल्लामा मजदुद्दीन फ़िरोज़आबादी अलैरहमा से मन्कुल है : जब किसी मजलिस में (यानी लोगो में) बैठो तो कहो :
*بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحْيْمِ وَصَلَّى اللّٰهُ عَلٰى مُحَمَّدٍ*
तो अल्लाह तुम पर एक फ़रिश्ता मुक़र्रर फरमा देगा जो तुम को गीबत से बाज़ रखेगा।
     और जब मजलिस से इथो तब भी यही कहो तो वो फ़रिश्ता लोगो को तुम्हारी गीबत से बाज़ रखेगा।

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 154*
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फुतूह अल ग़ैब

*ज़ातकी नफी मुखालिफते नफ्स:*
(हिस्सा 7)

 *بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

     और अगर ऐसी बातकी तरफ इशारा हो जिसे कुर्आन-व-सुन्नतने हराम या मुबाह करार दिया बल्के तुम इसको समजते ही नही हो मसलन ये के किसी खास जगाह जा कर किसी खास आदमीसे मिलना जब के खुदा तआलासे हासिल करदाह इल्म व मआरिफत के हिसाब से तुम्हें वहां जा कर किसी मर्दे सालेह से मुलाकातकी ज़ुरूरत नहीं है तो इस सिलसिले में जल्दी न करो, तवक्कूफ (ढील) करो, दिलमें सोचो के क्या ये खुदाकी तरफ से इल्हाम है।
    इंतेजार करो, अगर हुकमे इलाही हुआ तो वही इल्हाम बार बार होगा। तुम्हें इस पर अमलका हुकम दिया जाएग। या कोइ एसी निशानी ज़ाहिर होगी जो आलमे बिल्लाह इन्सानों पर ज़ाहिर हुवा करती है, और साहबाने कुव्वत व इदराक औलिया व अब्दाल पर खुलती है।

बाक़ी कल की पोस्ट में... इंसा अल्लाह
*✍🏽फुतूहल ग़ैब*  पेज 24,25
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खादिमे दिने नबी ﷺ
 *फ़ैयाज़ सैय्यिद*
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Sunday, 7 August 2016

क़ब्र में आनेवाला दोस्त

*_हम किस पर महेरबान है?_*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     इंसान वफादार दोस्त का क़द्रदान और उसी पर ज़्यादा महेरबान होता है, इसी बात के पेशे नज़र हमे ज़्यादा अह्मिययत "क़ब्र व हशर में काम आने वाले दोस्त" यानी अमल को देनी चाहिये थी मगर अफ़सोस ! ऐसा नही है, हम में से कुछ लोग माल को ज़्यादा अहम समजते है हालांके ये उस वक़्त तक हमारा साथ देता है जब तक हमारी सासे बहाल है, आँखे बन्द होते ही हमे छोड़ कर हमारे वारिसों के पास चला जाता है और क़ब्र में फूटी कोडी भी हमारे साथ नही जाती क्यू के कफ़न में थैली होती है न क़ब्र में तिजोरी !
     ज़रुरिय्याते ज़िन्दगी की तकमील के लिये माल की अहमिय्यत से इनकार नही मगर आज हमारी ग़ालिब अक्सरिय्यत मालो दौलत की महब्बत में ऐसी गिरफ्तार है के ज़्यादा से ज़्यादा माल कमाने की धुन में हराम व ना जाइज़ ज़रिये इस्तिमाल किये जाते है मसलन रिशवत और सूद का लेन देन किया जाता है, ज़खीरा अन्दोज़ी की जाती है ज़मीनो पर क़ब्ज़े किये जाते है, लोगो के कर्जे दबाए जाते है, अमानत में खियानत की जाती है, चोरी की जाती है अल ग़रज़ तिजोरी को रुपयो पैसे, सोना चान्दी से भरने के लिये नामए आमाल को खूब गुनाहो से भरा जाता है।
     ऐसा करने वालो के दिलो दिमाग पर हिर्स व लालच का इतना गलबा हो जाता है के उन्हें ये एहसास तक नही होता के एक दिन सब यही छोड़ जाना है।
*✍🏽क़ब्र में आनेवाला दोस्त  12*
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खादिमे दिने नबी ﷺ, *मुहम्मद मोईन*
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अब्लाक़ घोड़े सुवार

*क़ुरबानी के मसाइल*
*_क़ुरबानी के गोश्त के 3 हिस्से_*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     क़ुरबानी का गोश्त खुद भी खा सकते है और दूसरे शख्स गनी या फ़क़ीर को दे सकता है खिला सकता है बल्कि इस में से कुछ खा लेना क़ुरबानी करने वाले के लिये मुस्तहब है।
     बेहतर ये है कि गोश्त के 3 हिस्से करे, एक हिस्सा फ़ुक़रा के लिये और एक हिस्सा दोस्तों व अहबाब के लिये और एक हिस्सा अपने घरवालो के लिये।
*✍🏽आलमगिरी, 5/300*
     अगर सारा गोश्त खुद ही रख लिया तब भी कोई गुनाह नही। आला हज़रत अलैरहमा फरमाते है : 3 हिस्से करना सिर्फ इस्तिहबाबी अम्र है कुछ ज़रूरी नही, चाहे तो सब अपने इस्तिमाल में कर ले या सब अज़ीज़ों करिबो को दे दे, या सब मसाकिन को बाट दे।
*✍🏽फतावा रज़विय्या, 20/253*

*_वसिय्यत की क़ुरबानी का गोश्त का मसअला_*
     मन्नत या मर्हुम की वसिय्यत पर की जाने वाली क़ुरबानी का सब गोश्त फ़ुक़रा और मसाकिन को सदक़ा करना वाजिब है, न खुद खाए न मालदारों को दे।
*✍🏽बहारे शरीअत, 3/345*
*✍🏽अब्लाक़ घोड़े सुवार, 23*
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खादिमे दिने नबी ﷺ *मुहम्मद मोईन*
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सिरते मुस्तफाﷺ


*_गज़्वाए बनू नज़ीर_*
हिस्सा-01
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     हज़रते अम्र बिन उमय्या ज़मरीرضي الله تعالي عنه ने क़बिलए बनू किलाब के जिन दो शख्सों को क़त्ल कर दिया था और हुज़ूरﷺ ने उन दोनों का खून बहा अदा करने का एलान फरमा दिया था इसी मुआमले के मुतअल्लिक़ गुफ्तगू करने के लिये हुज़ूरﷺ क़बिलए बनू नज़ीर के यहूदियो के पास तशरीफ़ ले गए, क्यू की इन यहूदियो से आप का मुआह्दा था मगर यहूदी दर हक़ीक़त बहुत ही बद बातिन जेहनिययत वाली क़ौम है मुआह्दा कर लेने के बा वुजूद इन खबिशो के दिलो में मैगम्बरे इस्लाम की दुश्मनी और इनाद की आग भरी हुई थी।
      हुज़ूरﷺ इन बद बातीनो से अहले किताब होने की बिना पर अच्छा सुलूक फरमाते थे मगर ये लोग हमेशा इस्लाम की बेख कुनी और बानिये इस्लाम की दुश्मनी में मसरूफ़ रहे।
     मुसलमानो से बुग्ज़ो इनाद और कुफ्फार व मुनाफ़िक़ीन से साज़बाज और इत्तिहाद येही हमेशा इन गद्दारो का तर्ज़े अमल रहा।
चुनांचे इस मौके पर जब रसूलल्लाहﷺ उन यहूदियो के पास तशरीफ़ ले गए तो उन लोगो ने ब ज़ाहिर तो बड़े अख़लाक़ का मुज़ाहरा किया मगर अंदरुनी तौर पर बड़ी ही खौफनाक साजिश और इन्तिहाई खतरनाक स्किम का मन्सूबा बना लिया।

बाक़ी कल की पोस्ट में... انشاء الله
*✍🏽सिरते मुस्तफा, 296*
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तफ़सीरे अशरफी


हिस्सा-59
*_सूरए बक़रह, पारह 01_*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*आयत ⑤⑧, तर्जुमह*
और जब के हुक्म दिया हमने के दाखिल हो जाओ इस आबादी में। फिर खाते रहो उससे जहा चाहो बे खटके। और दाखिल हो दरवाज़े में सज्दा करते हुए, अर्ज़ करो मुआफ़ी हो। हम बख्श देंगे तुम्हे तुम्हारी खताओं को। और क़रीब  है के हम ज़्यादा दे ऐहसाँवालो को।

*तफ़सीर*
     और इस सफर का ये हिस्सा याद रखो के हज़रते मुसाका इरादा था के शहर "अरीहा" को, जिस पर क़ौमे आड़ मेसे बचे हुए "एमालेका" आबाद थे और "औज बिन उनुक" उनका हाकिम था, उसको बनी इसराइल फ़त्ह करके वहा से कुफ़्र को मिटा कर आबाद हो जाए और सरज़मीने शाम के हरियाले मैदानों में चैन करे।
     और ये भी इरादा था के शहर बैतूल मुक़द्दस में, जो उनका क़िबला था, हाज़िर हो और आज तक शाम के बदआमालि से जो खताए करते रहे है, उस पर मग्फिरत के तालिब हो।
     चुनांचे याद करो, जब के इस मन्शा को पूरा करने के लिये हुक्म दिया हमने के अय बनी इसराइल ! बेधड़क दाखिल हो जाओ इस शहर की आबादी में। फिर मालिमाना शान से खाते रहो उस की पैदावार से जिस वक़्त और जहां चाहो बे खटके। कोई रोक टॉक नही। और दाखिल हो तौबा के दरवाज़े में आजिज़ाना शक्ल में सज्दा करते हुए। और यु दुआ मांगो के "माफ़ी हो" यही लफ्ज़ कहो या इस्तिग़फ़ार ऐसी करो, बिस्मिल्लाह शरीफ, अल्माए तौहीद पढ़ो के तुम्हारी माफ़ी हो जाए। तुम्हारे इस अंदाज़े बंदगी को देख कर हम बख्श देंगे तुम्हे और माफ़ कर देंगे तुम्हारी खताओं को।
     इतना ही करम नहीं। बल्कि अगर तुम लोग सरापा इख्लास व पैकर एहसान (मुख्लिस और नेक) हो गए, तो हम ये करेंगे के और ज़्यादा करम फरमाएंगे। इसे याद रखो के क़रीब है के हम ज़यादा दे नेकी करने वालो को।
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मदनी पंजसुरह

*चार करोड़ नेकिया कमाए*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     हमारे आक़ाﷺ ने फ़रमाया : जो शख्स ये कलिमात 10 मर्तबा कहे, ऐसे आदमी के लिये चार करोड़ नेकिया लिखी जाती है।

*اَشْهَدُ اَنْ لَّااِلٰهَ اِلَّااللّٰهُ وَحْدَهُ لَاشَرٍيْكَ لَهُ اِلٰهًا وَّاحِدًا صَمَدًا لَّمْ يَتَّخِذْ صَاحِبَةً  وَّلَاوَلَدًا وَّلَمْ يَكُنْ لَّهُ كُفُوًا اَحَدٌ o*

*✍🏽तिर्मिज़ी, 5/289*
*✍🏽मदनी पंजसुरह, 153*
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फुतूह अल ग़ैब

*ज़ातकी नफी मुखालिफते नफ्स:*
(हिस्सा 6)

 *بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

     अपने हिस्सेको मख्लूक से अलाहेदा समज़ो, हुकमे इलाही बजा लाओ। किसी मआमले में खुद हुकमरान न बन बैठना। क्योंके हाकमियते असली अल्लाह तआलाकी है और क्योंके मख्लूक में तुम्हारी शमूलियत (शामिल) मुकद्दर हो चुकी है और मुकद्दर की तारीकी (अंधेरे) में किताब-व-सुन्नतकी रोशनी ले कर दाखिल होना ज़ुरूरि है। उस पर पूरी तरह अमल करना। अगर तुम्हारे दिलमें कोई वसवसा पैदा हो या इल्हामे राह (खुदा की तरफ से दिलमें आइ हुइ बात) पाए तो देखलो के वो कुर्आन-व-सुन्नतके मुताबिक है या नहीं।
     अगर ज़िना (बदकारी) करने, सूद लेने, फासिक फाजिर लोगोंसे तआल्लुकात उस्तेवार करने और इसी किस्मकी दूसरी तमन्नाऐं दिलमें जनम लें तो चूंके ये सब काम हराम है, इसलिये इनसे बचो। इस किसमके वसवसे-शैतान दिलोंमें पैदा करता है। इन्हें दिल-व-दिमागसे निकाल फेंको और किसी सूरत इन पर अमल न करो और जिन बातोंको कुर्आन व सुन्नतने मुबाह (हलाल) करार दिया है मसलन खाना, पीना, पेहनना, निकाह करना वगैरह तो इनसे भी ऐहतेराज़ (परहेज़) करो! क्योंके हाकीकतन ये भी नफसकी ख्वाहिशें हैं और तुम्हें नफस और उसकी ख्वाहिशोंकी मुखालेफत करनी है।

*✍🏽फुतूहल ग़ैब*  पेज ,24
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 *फ़ैयाज़ सैय्यिद*
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Saturday, 6 August 2016

क़ब्र में आनेवाला दोस्त

*क़ब्र में आनेवाला दोस्त*
हिस्सा-03
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     फिर हुज़ूरﷺ ने मजीद इरशाद फ़रमाया : फिर वो शख्स अपने तीसरे भाई से कहे : यक़ीनन तुम भी मेरी हालत देख रहे हो और तुम ने मेरे अहलो अयाल व माल का जवाब सुन लिया है, बताओ तुम मेरे लिये क्या कर सकते हो ?
     वो उसे तसल्ली देते हुए कहे : मेरे भाई ! में तो क़ब्र में भी तुम्हारे साथ रहूंगा और तुम्हे वहशत से बचाऊंगा और जब यौमे हिसाब आएगा तो में तेरे मीज़ान में जा बैठूंगा और उसे वज़न दार कर दूंगा। ये उसका अमल है, इस के बारे में तुम्हारा क्या ख़याल है ?
     सहाबा ने अर्ज़ की या रसूलल्लाहﷺ ! ये तो बहुत अच्छा दोस्त है
     हुज़ूरﷺ ने फ़रमाया : यही हक़ीक़त है।
*✍🏽कन्जुल आमाल 10/318*

*_वफादार कौन_*
     आप ने देखा की हमारे आक़ा ﷺ
 ने एक आसान मिसाल के ज़रिए अमल की अह्मिययत को बयान फ़रमाया। यक़ीनन माल, अहलो अयाल और आमाल में से हमारा सब से वफादार  दोस्त *अमल* है जो क़ब्र व हशर में भी हमारा मददगार होगा।
*✍🏽क़ब्र में आनेवाला दोस्त 11*
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