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Sunday 7 August 2016

अब्लाक़ घोड़े सुवार

*क़ुरबानी के मसाइल*
*_क़ुरबानी के गोश्त के 3 हिस्से_*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     क़ुरबानी का गोश्त खुद भी खा सकते है और दूसरे शख्स गनी या फ़क़ीर को दे सकता है खिला सकता है बल्कि इस में से कुछ खा लेना क़ुरबानी करने वाले के लिये मुस्तहब है।
     बेहतर ये है कि गोश्त के 3 हिस्से करे, एक हिस्सा फ़ुक़रा के लिये और एक हिस्सा दोस्तों व अहबाब के लिये और एक हिस्सा अपने घरवालो के लिये।
*✍🏽आलमगिरी, 5/300*
     अगर सारा गोश्त खुद ही रख लिया तब भी कोई गुनाह नही। आला हज़रत अलैरहमा फरमाते है : 3 हिस्से करना सिर्फ इस्तिहबाबी अम्र है कुछ ज़रूरी नही, चाहे तो सब अपने इस्तिमाल में कर ले या सब अज़ीज़ों करिबो को दे दे, या सब मसाकिन को बाट दे।
*✍🏽फतावा रज़विय्या, 20/253*

*_वसिय्यत की क़ुरबानी का गोश्त का मसअला_*
     मन्नत या मर्हुम की वसिय्यत पर की जाने वाली क़ुरबानी का सब गोश्त फ़ुक़रा और मसाकिन को सदक़ा करना वाजिब है, न खुद खाए न मालदारों को दे।
*✍🏽बहारे शरीअत, 3/345*
*✍🏽अब्लाक़ घोड़े सुवार, 23*
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खादिमे दिने नबी ﷺ *मुहम्मद मोईन*
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*​DEEN-E-NABI ﷺ*
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