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Sunday 7 August 2016

तफ़सीरे अशरफी


हिस्सा-59
*_सूरए बक़रह, पारह 01_*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*आयत ⑤⑧, तर्जुमह*
और जब के हुक्म दिया हमने के दाखिल हो जाओ इस आबादी में। फिर खाते रहो उससे जहा चाहो बे खटके। और दाखिल हो दरवाज़े में सज्दा करते हुए, अर्ज़ करो मुआफ़ी हो। हम बख्श देंगे तुम्हे तुम्हारी खताओं को। और क़रीब  है के हम ज़्यादा दे ऐहसाँवालो को।

*तफ़सीर*
     और इस सफर का ये हिस्सा याद रखो के हज़रते मुसाका इरादा था के शहर "अरीहा" को, जिस पर क़ौमे आड़ मेसे बचे हुए "एमालेका" आबाद थे और "औज बिन उनुक" उनका हाकिम था, उसको बनी इसराइल फ़त्ह करके वहा से कुफ़्र को मिटा कर आबाद हो जाए और सरज़मीने शाम के हरियाले मैदानों में चैन करे।
     और ये भी इरादा था के शहर बैतूल मुक़द्दस में, जो उनका क़िबला था, हाज़िर हो और आज तक शाम के बदआमालि से जो खताए करते रहे है, उस पर मग्फिरत के तालिब हो।
     चुनांचे याद करो, जब के इस मन्शा को पूरा करने के लिये हुक्म दिया हमने के अय बनी इसराइल ! बेधड़क दाखिल हो जाओ इस शहर की आबादी में। फिर मालिमाना शान से खाते रहो उस की पैदावार से जिस वक़्त और जहां चाहो बे खटके। कोई रोक टॉक नही। और दाखिल हो तौबा के दरवाज़े में आजिज़ाना शक्ल में सज्दा करते हुए। और यु दुआ मांगो के "माफ़ी हो" यही लफ्ज़ कहो या इस्तिग़फ़ार ऐसी करो, बिस्मिल्लाह शरीफ, अल्माए तौहीद पढ़ो के तुम्हारी माफ़ी हो जाए। तुम्हारे इस अंदाज़े बंदगी को देख कर हम बख्श देंगे तुम्हे और माफ़ कर देंगे तुम्हारी खताओं को।
     इतना ही करम नहीं। बल्कि अगर तुम लोग सरापा इख्लास व पैकर एहसान (मुख्लिस और नेक) हो गए, तो हम ये करेंगे के और ज़्यादा करम फरमाएंगे। इसे याद रखो के क़रीब है के हम ज़यादा दे नेकी करने वालो को।
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खादिमे दिने नबी ﷺ *मुहम्मद मोईन*
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