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Wednesday 4 April 2018

*मेराज शरीफ के हवाले से मुफीद मालूमात* #07
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
*ज़मीन से सिद्रतुल मुन्तहा का फ़ासिला*
     हुज़ूर ﷺ फ़रमाते है: ज़मीन से सिद्रतुल मुन्तहा तक पचास हज़ार बसर की राह है, इससे आगे मुस्तवा, इसके बाद को अल्लाह जाने! इससे आगे अर्श के 70 हिजाबात है हर हिजाब से दूसरे हिजाब तक 500 बरस का फ़ासिला और इससे आगे अर्श और इन तमाम बसअतो में फ़रिश्ते भरे हुवे है।

*दीदारे इलाही*
     मेराज की शब् आक़ा ﷺ ने अल्लाह का दीदार भी किया जैसा कि पिछली पोस्टों में बयान हो चुका, याद रहे कि दुन्या में जागती आँखों से परवरदिगार का दीदार सिर्फ और सिर्फ हमारे आक़ा ﷺ के साथ ख़ाससा है लिहाज़ा अगर कोई शख्स दुन्या में जागती हालत में दीदारे इलाही का वादा करे उस पर हुक्मे कुफ़्र है जब कि एक क़ौल इस बारे में गुमराही का भी है,
     हज़रत मुल्ला अली क़ारी رحمة الله عليه मिन्हुररौज़ में लिखते है: अगर किसी ने कहा में अल्लाह को दुन्या में आँखों से देखता हूँ ये कहना कुफ़्र है। मज़ीद लिखते है जिसने अपने लिये दीदारे खुदावन्दी का दावा किया और ये बात सराहत के साथ (बिलकुल वाज़ेह तौर पर) की और किसी तावील की गुंजाईश नहीं छोड़ी तो उस का ये ऐतिक़ाद फासिद् और दावा गलत है, वो गुमराही के गढ़े में है और दूसरे को गुमराह करता है।
     हाँ! ख्वाब में दीदारे इलाही मुमकिन है, चुनान्चे मन्कुल है की हमारे इमामे आज़म अबू हनीफा رضي الله عنه ने सो बार ख्वाब में अल्लाह के दीदार की सआदत हासिल की।
*✍🏼फ़ैज़ाने मेराज* 68
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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