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Sunday 21 October 2018

*तज़किरए इमाम अहमद रज़ा* #02


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*_हैरत अंगेज़ बचपन_*

     उमुमन हर ज़माने के बच्चों का वही हाल होता है जो आज कल बच्चों का है, के सात आठ साल तक तो उन्हें किसी बात का होश नही होता और न ही वो किसी बात की तह तक पहोच सकते है.

     मगर आला हज़रत رحمة الله عليه का बचपन बड़ी अहमिय्यत का हामिल था। कमसिन और कम उम्र में होश मन्दी और क़ुव्वते हाफीजा का ये आलम था के साढ़े चार साल की नन्ही सी उम्र में क़ुरआन मुकम्मल पढ़ने की नेअमत से बारयाब हो गए। 6 साल के थे के रबीउल अव्वल के मुबारक महीने में मिम्बर पर जलवा अफ़रोज़ हो कर मिलादुन्नबी के मौजू पर एक बहुत बड़े इज्तिमा में निहायत पुर मग्ज़ तक़रीर फरमा कर उल्माए किराम और मसाईखे इज़ाम से तहसीन व आफरीन की दाद वसूल की।

     इसी उम्र में आप ने बगदाद शरीफ के बारे में सम्त मालुम कर ली फिर ता दमे हयात गौषे आज़म رضي الله عنه के मुबारक शहर की तरफ पाउ न फेलाए।

     नमाज़ से तो इश्क़ की हद तक लगाव था चुनांचे नमाज़े पंजगाना बा जमाअत तकबिरे उला का तहफ़्फ़ुज़ करते हुए मस्जिद में जा कर अदा फ़रमाया करते।

     जब किसी खातुन का सामना होता तो फौरन नज़रे नीची करते हुए सर जुका लिया करते, गोया के सुन्नते मुस्तफा का आप पर गल्बा था, जिस का इज़हार करते हुए हुज़ूरे पुरनूर ﷺ की खिदमत में यु सलाम पेश करते है :

          *नीची  नज़रो  की  शर्म  हया  पर  दुरुद*

               *उची बिनी की तफअत पे लाखो सलाम*

     आला हज़रत رحمة الله عليه ने लड़क पन में तक़वा को इस क़दर अपना लिया था के चलते वक़्त क़दमो की आहत तक सुनाई न देती थी। 7 साल के थे के माहे रमज़ान में रोज़े रखने शुरू कर दिये।

*✍🏽फतावा रज़विय्या, 30/16*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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