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Tuesday 30 October 2018

*तज़किरए इमाम अहमद रज़ा* #12


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

_*ट्रेन रुकी रही !*_

     हज़रत अय्यूब अली शाह साहिब رحمة الله عليه फरमाते हे के मेरे आक़ा आला हज़रत رحمة الله عليه एक बार पीलीभीत से बरेली शरीफ ब ज़रिआए रेल जा रहे थे। रास्ते में नवाब गन्ज के स्टेशन पर जहा गाडी सिर्फ 2 मिनिट के लिये ठहरती है।

     मगरिब का वक़्त हो चूका था, आप ने गाडी ठहरते ही तकबीर इक़ामत फरमा कर गाडी के अंदर ही निय्यत बांध ली, गालिबन 5 सख्शो ने इक्तिदा की की उनमे में भी था लेकिन अभी शरीके जमाअत नही होने पाया था के मेरी नज़र गेर मुस्लिम गार्ड पर पड़ी जो प्लेट फॉर्म पर खड़ा सब्ज़ ज़ण्डि हिला रहा था, में ने खिड़की से झांक कर देखा के लाइन क्लियर थी और गाडी छूट रही थी, मगर गाडी न चली और हुज़ूर आला हज़रत ने ब इत्मिनान तीनो फ़र्ज़ रकाअत अदा की और जिस वक़्त दाई जानिब सलाम फेरा था गाडी चल दी। मुक्तदियो की ज़बान से बे साख्ता सुब्हान अल्लाह निकल गया।

     इस करामत में काबिले गौर ये बात थी के अगर जमाअत प्लेट फॉर्म पर खड़ी होती तो ये कहा जा सकता था के गार्ड ने एक बुजुर्ग हस्ती को देख कर गाडी रोक ली होगी। ऐसा न था बल्कि नमाज़ गाडी के अंदर पढ़ी थी। इस थोड़े वक़्त में गार्ड को क्या खबर हो सकती थी के एक अल्लाह का महबूब बन्दा नमाज़ गाडी में अदा करता है।

*✍🏽हयाते आला हज़रत, 3/189*

*✍🏽तज़किरए इमाम अहमद रज़ा, 17*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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