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Monday 21 November 2016

*तर्के जमाअत की वईद* #01
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     हज़रते सय्यिदुना उबैदुल्लाह बिन उमर कवारीरी फरमाते है : मेने हमेशा ईशा की नमाज़ बा जमाअत अदा की, मगर अफ़सोस ! एक मर्तबा मेरी ईशा की नमाज़ बा जमाअत फौत हो गई। इसका सबब ये हुआ की मेरे यहाँ एक मेहमान आया, उसकी मेहमान नवाज़ी में लगा रहा। फरागत के बाद जब मस्जिद पंहुचा तो जमाअत हो चुकी थी। अब में सोचने लगा की ऐसा कौनसा अमल किया जाए जिस से इस नुक्शान की तलाफि हो। यका यक मुझे अल्लाह के हबीब का ये फरमान याद आया "बा जमाअत नमाज़ मुन्फरिद की नमाज़ पर 21 दरजे फ़ज़ीलत रखती है। इस तरह 25 और 27 दरजे फ़ज़ीलत की भी हदिष भी मरवी है।
*✍🏽शाही बुखारी*

     मेने सोचा अगर में 27 मर्तबा नमाज़ पढ़ लू तो शायद जमाअत फौत हो जाने से जो कमी हुई वो पूरी हो जाए। चुनांचे मेने 27 मर्तबा ईशा की नमाज़ पढ़ी, फिर मुझे नींद आ गई। मेने अपने आप को चन्द घोड़े सुवरो के साथ देखा, हम सब कही जा रहे थे। इतने में एक घोड़े सुवार ने मुझसे कहा : "तुम अपने घोड़े को मशक्कत में न डालो, बेशक तुम हमसे नहीं मिल सकते।" मेने कहा में आपके साथ क्यू नहीं मिल सकता ? कहा : इस लिए की हम ने ईशा की नमाज़ बा जमाअत अदा की है।
*✍🏽उयुनूल हिकायत, जी, 2 स. 94*

     मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! इससे मालूम हुआ की जमाअत छूट जाने के बाद अगर कोई उस नमाज़ को 27 बार पढ़ भी ले तब भी बा जमाअत नमाज़ पठने के षवाब के बराबर नहीं पहुच सकता। यक़ीनन बा जमाअत नमाज़ की अपनी ही बरकतें है।
*✍🏽तर्के जमाअत की वईद, स. 3*
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