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Wednesday 9 November 2016

*गुस्से का इलाज* #04
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सात ईमान अफ़रोज़ हिकायात_*
     *हिकायात 1 :* कीमियाए सआदत मे हुज़्ज़तुल इस्लाम हज़रते सय्यिदुना इमाम मुहम्मद ग़ज़ालि अलैरहमा नक़्ल फ़रमाते है : किसी श्ख्सने हज़रते अमीरुल मुअमिनीन सय्यिदुना उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ से सख्त कलामी की। आप ने सर झुका लिया और फ़रमाया : "क्या तुम येह चाहते हो की मुझे गुस्सा आ जाए और शैतान मुझे तकब्बुर और हुकूमत के गुरुर मे मुब्तला करे और मैं तुम को जुल्म का निसाना बनाऊ और बरोज़े क़ियामत तुम मुझ से इस का बदला लो मुझ से येह हरगिज़ नहीं होगा। " येह फ़रमा कर खामोश हो गए ।

     *हिकायत 2 :*  किसी श्ख्स ने हज़रते सय्यिदुना सलमान फारसी को गाली दी। उन्हों ने फ़रमाया : "अगर बरोज़े क़ियामत मेरे गुनाहो का पल्ला भारी है तो जो कुछ तुम ने कहा मैं उस से भी बदतर हूं और अगर मेरा वोह पल्ला हलका है तो मुझे तुम्हारी गाली की कोई परवाह नहीं ।"

     *हिकायत 3 :* किसी ने हज़रते सय्यिदुना शैख रबीअ बिन खुसैम को गाली दी। आप ने फ़रमाया : "अल्लाह तआला ने तेरे कलाम को सुन लिया है मेरे और जन्नत के दरमियान एक घाटी हाइल है मैं उसे तै करने मैं मसरूफ़ हूं अगर तै करने मे कामयाब हो गया तो मुझे तुम्हारी गाली की क्या परवाह ! और अगर मैं उसे तै करने मे नाकाम रहा तो तुम्हारी गाली मेरे लिये ना काफी हैं."

     *हिकायत 4 :* अमीरुल मुअमिनीन हज़रते सय्यिदुना अबू बक्र सिद्दीक को किसी ने गाली दी, इर्साद फ़रमाया : " मेरे तो इस तरह के और भी उयूब हैं। जो अल्लाह तआला ने तुझ से पोशीदा रखे हैं."

     *हिकायत 5 :* किसी शख्स ने सय्यिदुना श्अबी को गाली दी आप ने फ़रमाया : "अगर तू सच कहता है तो अल्लाह मेरी मग्फिरत फ़रमाए और अगर तू झुठ कहता है तो अल्लाह तेरी मग्फिरत फरमाए."

     *हिकायत 6 :* हज़रते सय्यिदुना फ़ुज़ैल बिन इयाज की ख़िदमत मे अर्ज़ की गई, हुज़ूर ! फुला आप को बुरा भला कह रहा था। फ़रमाया : खुदा की क़सम ! मै तो शैतान को नाराज़ ही करूंगा, फिर दुआ मांगी, या अल्लाह ! उस सख्स ने मेरी जो जो बुराइयां बयान की अगर वोह मुझ मे हैं तो मुझे मुआफ फ़रमा दे और मेरी इस्लाह फ़रमा।  और अगर उस ने मुझ झुठे इल्ज़ामात रखे हैं तो उस को मुआफ़ी से नवाज़ दे।

     *हिकायत 7 :* एक सख्स सय्यिदुना बक्र बिन अब्दुल्लाह मुज्नी को सरे आम बुरा भला कहे जा रहा था मगर आप खामोश थे। किसी ने अर्ज़ की, आप जवाबी कारवाई क्यूं नहीं फ़रमाते ? फ़रमाया : "मैं इस की कीसी बुराई से वाक़िफ़ ही नहीं जीस के सबब इसे बुरा कह सकू, बोहतान बांध कर सख्त गुनहगार क्यूं बनू !"

     येह हज़राते कुदस्सिया कितने भले इन्सान हुवा करते थे। उन्हें अच्छी तरह मा'लूम था कि अपने नफ़्स के वासिते गुस्सा कर के मद्दे मुक़ाबिल पर चढ़ाई करने मे भलाई नहीं है ।

     *सुन लो नुक़सान ही होता हैं बिल आखिर उन को*
     *नफ़्स के वासिते गुस्सा जो किया करते हैं*

*✍🏽गुस्से का इलाज, 11*
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