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Tuesday 29 November 2016

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #89
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①①③_*
     और यहूदी बोले नसरानी (ईसाई) कुछ नहीं और नसरानी बोले यहूदी कुछ नहीं (1)
हालांकि वो किताब पढ़ते हैं (2)
इसी तरह जाहिलों ने उनकी सी बात कही (3)
तो अल्लाह क़यामत के दिन उनमें फ़ैसला कर देगा जिस बात में झगड़ रहे हैं

*तफ़सीर*
     (1) नजरात के ईसाइसों का एक दल सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की ख़िदमत में आया तो यहूदी उलमा भी आए और दोनों में मुनाज़िरा यानी वार्तालाप शुरू हो गया. आवाज़ें बलन्द हुई, शोर मचा. यहूदियों ने कहा कि ईसाइयों का दीन कुछ नहीं और हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम और इन्जील शरीफ़ का इन्कार किया. इसी तरह ईसाईयों ने यहूदियों से कहा कि तुम्हारा दीन कुछ नहीं और तौरात शरीफ़ और हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम का इन्कार किया. इस बाब में यह आयत उतरी.
     (2) यानी जानकारी के बावजूद उन्होंने ऐसी जिहालत की बात की. हालांकि इन्जील शरीफ़ जिसको ईसाई मानते हैं, उसमें तौरात शरीफ़ और हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के नबी होने की पुष्टि है. इसी तरह तौरात जिसे यहूदी मानते हैं, उसमें हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम के नबी होने और उन सारे आदेशों की पुष्टि है जो आपको अल्लाह तआला की तरफ़ से अता हुए.
     (3) किताब वालों के उलमा की तरह उन जाहिलों ने जो इल्म रखते थे न किताब, जैसे कि मुर्तिपूजक, आग के पुजारी, वग़ैरह, उन्होंने हर एक दीन वाले को झुटलाना शुरू किया, और कहा कि वह कुछ नहीं. इन्हीं जाहिलों में से अरब के मूर्तिपूजक मुश्रिकीन भी हैं, जिन्होंने नबीये करीब सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम और आपके दीन की शान में ऐसी ही बातें कहीं.
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