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Monday 2 January 2017

*नमाज़ के वाजिबात* #02
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     क़ादए ऊला वाजिब है अगर्चे नमाज़े नफ्ल हो (दर अस्ल दो नफ्ल का हर क़ादह "क़ादए आखिरह" है और फ़र्ज़ है, अगर क़ादह न किया और भूल कर खड़ा हो गया तो जब तक उस रकअत का सज्दा न कर ले लौट आए और सज्दए सहव करे)
*✍🏽बहारे शरीअत, 4/52*
     अगर नफ्ल की तीसरी रकअत का सज्दा कर लिया तो चार पूरी कर के सज्दए सहव करे।
     सज्दए सहव इस लिये वाजिब हुवा कि अगर्चे नफ्ल में हर दो रकअत के बाद क़ादह फ़र्ज़ है मगर तीसरी या पांचवी रकअत का सज्दा करने के बाद क़ादए ऊला फ़र्ज़ के बजाए वाजिब हो गया।
     फ़र्ज़ वित्र् और सुन्नते मुअक्कदा में अत्तहिय्यात के बाद कुछ न पढ़ना, दोनों क़ादो में अत्तहिय्यत मुकम्मल पढ़ना। अगर एक लफ्ज़ भी छूटा तो वाजिब तर्क हो जाएगा और सज्दए सहव वाजिब होगा।
     फ़र्ज़, वित्र् और सुन्नते मुअक्क़दा के क़ादए ऊला में अत्तहिय्यत के बाद अगर बे ख्याली में "अल्लाहुम्म सल्ले आला मुहम्मदीन या अल्लाहुम्म सल्ले आला सय्यिदिना" कह लिया तो सज्दए सहव वाजिब हो गया और अगर जानबुझ कर कहा तो नमाज़ लैंटाना वाजिब है।
*✍🏽नमाज़ के अहकाम, 172*
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