*जायज़-नाजायज़ की कसौटी और 11वी शरीफ* #07
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*
*_जायज़ को नाजायज़ कहने वालो पर शरीअत की तलवार_*
*सवाल :* जो लोग जायज़ को ना जायज़ कहते रहते है उनके बारे में शरीअत का क्या हुक्म है ?
*जवाब :* ऐसे कामो के बारे में जिनके करने न नकरने का हुक्म शरीअत ने नही दिया। उन पर हराम व नाजायज़ का फतवा नही लगाया जा सकता। क़ुरआन में इस से मना किया गया है, इरशाद होता है :
और न कहो ! उसे जो तुम्हारी ज़बाने झूठ बयान करती है की ये हलाल है और वो हराम है ताकि अल्लाह पर झूठ थोपो ! बेशक !! जो अल्लाह पर झूठ थोपते है वो कभी नजात नही पा सकते।
*(सुरह नहल)*
और हुज़ूरﷺ ने फ़रमाया : जो कोई जान बूझकर मुझ पर झूठ बात की निस्बत करे वो अपना ढिकना जहन्नम में बनाये।
*✍🏽बुखारी, तिर्मिज़ी, इब्ने माजा*
मुनकिरिने मामुलाते अहले सुन्नत से हमारा मुतालबा है की तुम्हारे पास अगर कोई क़ुरआनी आयत, या हदिष मौजूद हो तो अपने दावा में पेश करो ! अगर नही तो जहन्नम का हौलनाक अज़ाब का मज़ा चखने के लिये तैयार रहो !
अल्लाह उन लोगो को दिने इस्लाम की सही समझ अता फरमाये ! आमीन ! या रब्बल आलमीन !
हमारे मामुलाते हसना की अस्ल शरीअत में है अगर किसी फिरका परस्त, हठधर्मी को नज़र न आये तो उस की नज़र का कसूर और दिल का फतुर है।
*आँखे अगर है बंद तो फिर दिन भी रात है*
*इस में कसूर क्या है? भला आफताब का?*
*✍🏽जायज़-नाजायज़ की कसौटी और 11वी शरीफ, 7*
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*जवाब :* ऐसे कामो के बारे में जिनके करने न नकरने का हुक्म शरीअत ने नही दिया। उन पर हराम व नाजायज़ का फतवा नही लगाया जा सकता। क़ुरआन में इस से मना किया गया है, इरशाद होता है :
और न कहो ! उसे जो तुम्हारी ज़बाने झूठ बयान करती है की ये हलाल है और वो हराम है ताकि अल्लाह पर झूठ थोपो ! बेशक !! जो अल्लाह पर झूठ थोपते है वो कभी नजात नही पा सकते।
*(सुरह नहल)*
और हुज़ूरﷺ ने फ़रमाया : जो कोई जान बूझकर मुझ पर झूठ बात की निस्बत करे वो अपना ढिकना जहन्नम में बनाये।
*✍🏽बुखारी, तिर्मिज़ी, इब्ने माजा*
मुनकिरिने मामुलाते अहले सुन्नत से हमारा मुतालबा है की तुम्हारे पास अगर कोई क़ुरआनी आयत, या हदिष मौजूद हो तो अपने दावा में पेश करो ! अगर नही तो जहन्नम का हौलनाक अज़ाब का मज़ा चखने के लिये तैयार रहो !
अल्लाह उन लोगो को दिने इस्लाम की सही समझ अता फरमाये ! आमीन ! या रब्बल आलमीन !
हमारे मामुलाते हसना की अस्ल शरीअत में है अगर किसी फिरका परस्त, हठधर्मी को नज़र न आये तो उस की नज़र का कसूर और दिल का फतुर है।
*आँखे अगर है बंद तो फिर दिन भी रात है*
*इस में कसूर क्या है? भला आफताब का?*
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