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Tuesday 3 January 2017

*जायज़-नाजायज़ की कसौटी और 11वी शरीफ*​ #08
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_इस्लाम में हर नई चीज़ गुमराही नही_*
     *सवाल :* क्या इस्लाम में नया तरीका निकालना बुरा नही ?

     *जवाब :* इस्लाम में हर नया तरीक़ा बिदअत (गुमराही) नही। जैसा की हुज़ूर ने फ़रमाया : जो कोई इस्लाम में अच्छा तरीक़ा निकालेगा उसे उसका षवाब मिलेगा और जितने लोग उसके बाद उस पर अमल करेंगे सबके बराबर उसे षवाब मिलेगा, जबकि उनके षवाब में कोई कमी नही की जाएगी। और जो इस्लाम में कोई बुरा तरीक़ा निकालेगा उस पर उसका गुनाह होगा और जो लोग उसके बाद उस पर अमल करेंगे अबके बराबर उस पर गुनाह होगा जबकि उनके गुनाहो में कोई कमी नही की जाएगी।
*✍🏽मुस्लिम, मिश्कात*

     इस हदिष से मालुम हुआ की बिदअत की 2 किस्मे है -
◆ हसना, यानी अच्छा तरीक़ा
◆ सैइयह, यानी बुरा तरीक़ा
     अच्छा तरीक़ा निकालने वाले को उस का षवाब मिलता है और अमल करने वालो को भी, और क़यामत तक अमल करने वालो के बराबर षवाब मिलता है।
     जाहिर सी बात है बुरा तरीक़ा निकालने वाले को इसका उल्टा है, यानी उस बुरे तरीके का गुनाह होता है और क़यामत तक जितने लोग उस पर अमल करेंगे उन सबका गुनाह उस पर होगा।
     उलमा ऐ किराम ने इसे खोल कर बयान फरमा दिया है की बिदअते सैइयह वो है जो क़ुरआन, हदिष, असर और इज्मा के खिलाफ हो, यानी क़ुरआन में, अहादीस में, या सहाबा से, या इज्मा से एक हुक्म साबित है और कोई उसके खिलाफ कुछ करे, या कहे वो बुरी बिदअत, गुमराही, हराम है।
     जैसा की सही हदिष से साबित है की, हुज़ूर जुम्मा के दिन जब मिम्बर पर तशरीफ़ रखते तो हुज़ूर के सामने मस्जिद के दरवाज़े पर अज़ान होती थी। क्र हज़रत अबू बक्र और हज़रत उमर के ज़माने में भी ऐसा ही होता था।
*✍🏽अबू दाऊद, 1/179*
     अब कस अज़ान को मस्जिद के अंदर, खतीब के सर पर देना बिदअते सैइयह (गुमराही का नया तरीक़ा) है। इसलिए की ये हदिष के खिलाफ है।
     जिस नई चीज़ के निकालने से शरीअत का कोई हुक्म, हुज़ूर की कोई सुन्नत उठ जाए, इस्लाम का नुक़सान हो वो तरीक़ा गुमराही का है और उसे बिदअते सैइयह कहा गया है।

     *सवाल :* आम तोर बे पढ़े लिखे लोगो को ये कह कर बहकाया जाता है की, अगर ये चीज़े अच्छी होती इनमे षवाब होता तो हुज़ूर और सहाबा ने क्यू नही किया ?
     *जवाब :* बात दरअसल ये है की हुज़ूर अपनी उम्मत पर बहुत ही रहीम व महेरबान थे। हुज़ूर की ये ख्वाहिश हमेशा रहती थी और रही की मेरी उम्मत ज़्यादा से ज़्यादा ऐसे काम करे जो षवाब व बुलंदी ऐ दर्जात के सबब हो, चुकी किसी अच्छे तरीके के निकालने का षवाब अलग और उसपर क़यामत तक जितने लोग अमल करे उस का षवाब अलग इस लिए आमाले हसना (अच्छे व नेक काम) के निकालने का दरवाज़ा खुला रख्खा की मेरी उम्मत उनको निकल कर बेशुमार षवाबो के हक़दार हो जाये और अगर ईजाद (निकालने) का दरवाज़ा बंद फरमा देते तो उम्मत अनगिनत षवाबो से महरूम रहती।
*✍🏽जायज़-नाजायज़ की कसौटी और 11वी शरीफ, 7*​
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