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Sunday 20 January 2019

दुआ मांगने के मदनी फूल* #04

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بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     ★ येह दुआ करना, "खुदाया ! सब मुसलमानों के सब गुनाह बख्श दे।" जाइज़ नहीं कि इस में उन अहादीसे मुबारका की तक्ज़ीब (झुटलाना) होती है जिन में बाज़ मुसल्मान का दोजख में जाना वारीद हुवा। अलबत्ता यूं दुआ करना “सारी उम्मते मुहम्मद ﷺ की मग्फिरत (बख्रिाश) हो या सारे मुसलमानों की मग्फ़िरत हो जाइज़ है।

     ★ अपने लिये और अपने दोस्त अहबाब, अहलो माल और औलाद के लिये बद दुआ न करे, क्या मालूम कि कबूलिय्यत का वक्त हो और बद दुआ का असर ज़ाहिर होने पर नदामत हो।

     ★ जो चीज हासिल हो (यानी अपने पास मौजूद हो) उस की दुआ न करे मसलन मर्द यूं न कहे, "या अल्लाह मुझे मर्द कर दे कि इस्तिहजा (मजाक बनाना) है। अलबत्ता ऐसी दुआ जिस में शरीअत के हुक्म की तामील या आजिजी व बन्दगी का इज़हार या परवर्द गार और मदीने के ताजदार ﷺ से महब्बत या दीन या अहले दीन की तरफ रग्बत या कुफ़्रो काफिरीन से नफरत वगैरा के फवाइद निकलते हों वोह जाइज़ है अगर्चे इस अम्र का हुसूल यकीनी हो। जैसे दुरूद शरीफ़ पढ़ना, वसीले की, सिराते मुस्तक़ीम की अल्लाह व रसूल ﷺ के दुश्मनों पर गजब व लानत की दुआ करना।  

     ★ दुआ में तंगी न करे मसलन यूं न मांगे या अल्लाह तन्हा मुझ पर रहम फरमा या सिर्फ मुझे और मेरे फुल फुलां दोस्त को नेमत बख्श। बेहतर येह है कि सब मुसल्मानों को दुआ में शामिल करले इस्केक फायदा यह भी होगा कि अगर खुद उस नेक बात के हक़दार न भी हुवा तो अच्छे मुसलमानों के तुफैल पा लेगा।

     ★ हज़रते इमाम मुहम्मद ग़ज़ाली رحمة الله عليه फरमाते है : मज़बूत अक़ीदे के साथ दुआ मांगे और क़बूलिय्यत का यक़ीन रखे।

*✍️मदनी पंजसुरह* 190

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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