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Friday 25 January 2019

सूरतुल बक़रह, रुकुअ-28, आयत, ②②⑤*

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بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

अल्लाह तुम्हें नहीं पकड़ता उन क़स्मों में जो बेईरादा ज़बान से निकल जाएं, हाँ उसपर पकड़ फ़रमाता है जो काम तुम्हारे दिलों ने किये (5) और अल्लाह बख़्शने वाला हिल्म  (सहिष्णुता) वाला है.


*तफ़सीर*

(5) क़सम तीन तरह की होती है : (1) लग्व (2) ग़मूस (3) मुनअक़िदा. लग्व यह है कि किसी गुज़री हुई बात पर अपने ख़याल में सही जानकर क़सम खाए और अस्ल में वह उसके विपरीत हो, यह माफ़ है, और इस पर कफ़्फ़ारा नहीं. ग़मूस यह है कि किसी गुज़री हुई बात पर जान बूझकर झूठी क़सम खाए, इसमें गुनाहगार होगा. मुनअक़िदा यह है कि किसी आने वाली बात पर इरादा करके क़सम खाए. क़सम को अगर तोड़े तो गुनाहगार भी है और कफ़्फ़ारा भी लाज़िम.


*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-28, आयत, ②②⑥*

      और वो जो क़सम खा बैठते हैं अपनी औरतों के पास जाने की उन्हें चार महीने की मोहलत  (अवकाश) है तो अगर इस मुद्दत में फिर आए तो अल्लाह बख़्शने वाला मेहरबान है.

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*​DEEN-E-NABI ﷺ*

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