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بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ
اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ
दुनिया और आख़िरत के काम (12) और तुमसे यतीमों के बारे में पूछते हैं(13) तुम फ़रमाओ उनका भला करना बेहतर है और अगर अपना उनका ख़र्च मिला लो तो वो तुम्हारे भाई हैं और ख़ुदा ख़ूब जानता है बिगड़ने वाले को संवारने वाले से और अल्लाह चाहता तो तुम्हें मशक्कत (परिश्रम) में डालता बेशक अल्लाह ज़बरदस्त हिकमत वाला है.
*तफ़सीर*
(12) कि जितना तुम्हारी सांसरिक आवश्यकता के लिये काफ़ी हो, वह लेकर बाक़ी सब अपनी आख़िरत के नफ़े के लिये दान कर दो. (ख़ाज़िन)
(13) कि उनके माल को अपने माल से मिलाने का क्या हुक्म है. आयत “इन्नल लज़ीना याकुलूना अमवालल यतामा ज़ुलमन” यानी वो जो यतीमों का माल नाहक़ खाते हैं वो तो अपने पेट में निरी आग भरते हैं. (सूरए निसा, आयत दस) उतरने के बाद लोगों ने यतीमों के माल अलग कर दिये और उनका खाना पीना अलग कर दिया. इसमें ये सूरतें भी पेश आई कि जो खाना यतीम के लिये पकाया गया और उसमें से कुछ बच रहा वह ख़राब हो गया और किसी के काम न आया. इस में यतीमों का नुक़सान हुआ. ये सूरतें देखकर हज़रत अब्दुल्लाह बिन रवाहा ने हुज़ूर सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से अर्ज़ किया कि अगर यतीम के माल की हिफ़ाज़त की नज़र से उसका खाना उसके सरपरस्त अपने खाने के साथ मिलातें तो उसका क्या हुक्म है. इस पर आयत उतरी और यतीमों के फ़ायदे के लिये मिलाने की इजाज़त दी गई.
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*DEEN-E-NABI ﷺ*
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