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بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ
اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ
*पांचवा इलाज*
अपने मालिको मौला की बारगाह में दस्ते दुआ दराज़ कर दीजिये और यूं अर्ज कीजिये : “ऐ मेरे मालिक! तेरा येह कमज़ोर व ना तुवां बन्दा दुन्या व आखिरत में कामयाबी के लिये इस बद गुमानी से अपने दिल को बचाना चाहता है। ऐ मेरे रब! मेरी मदद फरमा और मेरी इस कोशिश को कामयाबी की मन्ज़िल तक पहुंचा दे। ऐ अल्लाह! मुझे अपने खौफ से मामूर दिल, रोने वाली आंख और लरजने वाला बदन अता फरमा।
*छटा इलाज*
जब भी किसी मुसल्मान के बारे में दिल में बुरा गुमान आए तो उस पर तवज्जोह न दें बल्कि उसे झटकने की कोशिश करें और उस के अमल पर अच्छा गुमान क़ायम करने की कोशिश करें। मसलन कोई इस्लामी भई नात या बयान सुनते हुए अश्क बहा रहा हो और उसे देख कर आप के दिल में उस के मुतअल्लिक रियाकारी की बद गुमानी पैदा हो तो फौरन उस के इख्लास से रोने के बारे में हुस्ने ज़न काइम कर लें। अल्लाह का फरमाने अज़मत निशान है : क्यूं न हुवा जब तुम ने उसे सुना था कि मुसल्मान मर्द और मुसल्मान औरतों ने अपनो पर नेक गुमान किया होता और केहते येह खुला बोहतान है।
(पारह: 16, अन्नूरः12)
अल्लामा मुहम्मद बिन जरीर तुबरी (अल मु तवफ्फा सिने 310 हिजरी) इस आयत की तफ़सीर में लिखते हैं : यानी मोमिनीन एक दूसरे के बारे में हुस्ने ज़न क़ायम करें और उसे बयान भी करें अगचें येह गुमान यकीन के दरजे तक न पहुंचा हो।
इस आयत के तहत तफ्सीरे ख़जाइनुल इरफान में है : मुसल्मान को येही हुक्म है कि मुसल्मान के साथ नेक गुमान करे और बद गुमानी मम्नुअ है।
*✍️बद गुमानी* 46
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*DEEN-E-NABI ﷺ*
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