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Wednesday 28 November 2018

*बद गुमानी के चन्द इलाज* #09


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

*आठवां इलाज*

     जब भी किसी से मुतअल्लिक बद गुमानी पैदा हो तो खुद को इस तरह समझाइये कि मुझ पर इस के बातिनी हालात की तफ्तीश वाजिब नहीं है, अगर येह वाकेअतन उसी शय में मुब्तला है जो मेरे दिल में आई तो येह इस का और इस के रब का मुआमला है और अगर येह उस शै से महफूज़ है तो मैं बद गुमानी में मुब्तला रह कर अज़ाबे नार का हकदार क्यूं बनू। हज़रते तल्हा बिन अब्दुल्लाह رحمة الله عليه से मरवी है  कि नबिय्ये मुकर्रम ﷺ ने फरमाया : “बेशक ज़न गलत भी हो सकता है और सहीह भी।" 

     हुज्जतुल इस्लाम इमाम मुहम्मद गज़ाली رحمة الله عليه फ़रमाते हैं : “जब तुम्हारे दिल में किसी के बारे में बद गुमानी आए तो तुम्हें चाहिये कि इस की तरफ ध्यान न दो और इस बात पर मज्बूती से काइम हो कि उस शख्स का हाल तुम से पोशीदा है और जो तुम ने उस के बारे में देखा है उस में अच्छी और बुर दोनों बातों का एहतिमाल है।"

     अल्लामा अब्दुल गनी नाबलसी رحمة الله عليه लिखते हैं : जब किसी मुसल्मान का हाल पोशीदा हो (यानी उस के नेक होने का भी एहतिमाल हो और बद होने का भी) तो उस से हुस्ने ज़न रखना मुस्तहब और उस के बारे में बद गुमानी हराम है। और जब मुआमला बहुत पेचीदा हो जाए (यानी न तो हुस्ने ज़न रखा जा सके और न बद गुमानी की शरई इजाज़त की शराहत पाई जाएं) तो मज्नून को उस के हाल पर छोड़ देना वाजिब है खुसूसन उस वक्त कि जब वह जाहिरी तौर पर आदिल (यानी नेक) हो। 

*✍️बद गुमानी* 57

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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