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Wednesday 2 January 2019

तक़दीर का बयान* #03

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بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     *सुवाल* - क्या तक्दीर के मुवाफिक काम करने पर आदमी मजबूर होता है ? इस बारे में अकीदा क्या रखना चाहिये ? 

     *जवाब* - नहीं। बन्दे को अल्लाह ने नेकी, बदी के करने पर इख़्तियार दिया है। वह अपने इख्तियार से जो कुछ करता है वह सब अल्लाह के यहां लिखा हुवा है जैसा कि पहले बयान किया गया है। याद रहे कि कज़ा व कद्र के मसाइल आम अक्लों में नहीं आ सकते, इन में जियादा गौरो फिक्र करना सबबे हलाकत है, सिद्दीके अक्बर व फ़ारूके आज़म को इस मस्अले में बहस करने से मन्अ फ़रमाया गया था तो हम और आप किस गिनती में हैं! इतना समझ लिया जाए कि अल्लाह तआला ने आदमी को पथ्थर और दीगर जमादात की तरह बे हिस्सो हरकत नही पैदा किया, बल्कि इस को एक नौए इख्तियार (यानी एक तरह का महदूद इख्तियार) दिया हैं कि एक काम चाहे करे, चाहे न करे और इस के साथ ही अक्ल भी दी है कि भले, बुरे, नफ्अ, नुक्सान को पहचान सके और हर किस्म के सामान और अस्बाब मुहय्या कर दिये हैं, कि जब कोई काम करना चाहता है उसी किस्म के सामान मुहय्या हो जाते हैं और इसी बिना पर उस पर मुवाखज़ा होता है। इस सच्चे अकीदे को याद रखा जाए और दिल में बसा लिया जाए इसी पर काइम रहा जाए, गैर ज़रूरी गौरो खौज़ से बाज़ रहा जाए तो वस्वसों से छुटकारा मिल जाता है, येह अकीदा भी याद रहे कि अपने आप को बिल्कुल मजबूर समझना या बिल्कुल मुख्तार समझना दोनों गुमराही की बात हैं। 

*✍️बुन्यादी अक़ाइद और मामुलाते अहले सुन्नत* 29

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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