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Thursday 9 February 2017

*उरफा (वलीलोग)की दुआऐं कुबूल न होनेकी वजह* #1
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

              हज़रत मोहियुद्दीन अब्दुल कादर जीलानी  رضي الله تعالي عنهने इर्साद फ़रमाया : एहले मआरिफतकी दुआओंकी कबूलियत और उनसे किये गए वादों की तकमील इस लिये नहीं होती के कहीं उन पर उम्मीद ग़ालिब न हो जाए। क्यों के उम्मीद व बीम (डर) हर हालत और हर मकाम पर मौजूद है और ये खौफ व रिजा परिन्दे के परों की तरह है के उसकी परवाज़ दोनों बाज़ुओं की मरहुने मिन्नत होती है। चुनान्चे बीम व रिजा के बगैर ईमानकी तकमील भी मुमकिन नहीं और हाल व मकाम के बगैर कोई आदमी उरूज़ व कमाल की मंज़िलको नहीं पा सकता।
      हर हालत और हर मकामके मुताबिक बीम व रजा लाज़मी है और आरीफ चूंके तकर्रुब खुदावन्दी का हामिल होता है इसलिये इसका हाल व मकाम ये है के वो खुदा के सिवा किसी तरफ माइल ना हो ना किसी और से आराम व सुकून ले, ना किसी और से उन्स करे।
       पस, अगर आरिफ अपनी दुआकी कबूलियत चाहता है और ख़ुदावन्द तआला से वफाए अहद तलब करता है तो ये उसके मनसब (दरजा) से कमतर बात है और इसके लिये ज़ेबा नहीं।
बाक़ी कल की पोस्ट में... इंसा अल्लाह

*✍🏽फुतूहल ग़ैब*  पेज 102,103
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मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाये यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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